ज्योतिष का विरोध कर आयुर्वेद को नहीं बचाया जा सकता है : आचार्य पं अमित कुमार पाण्डेय

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अभी हाल में ही रामदेव बाबा ने  ज्योतिष शास्त्र पर जो बयान दिया है, उसके बाद काशी के विद्वानों में उनके प्रति गुस्सा है। इस बयान को लेकर कई विद्वानों ने उनकी निंदा की है। वहीं इस बयान को लेकर वाराणसी के आचार्य पं अमित कुमार पाण्डेय  ने भी उनके इस बात की निंदा कर उनके इस बयान का पलटवार किया है।

"ज्योतिष निन्दक रामदेव बाबा "

आचार्या पं. अमित कुमार पांडेय जी ने कहा कि, रामदेव बाबा आर्य समाज से दीक्षित हैं। अतः ज्योतिष का विरोध उनका सम्प्रदाय धर्म है। ज्योतिष, आयुर्वेद, भारतीय संगीत, भारतीय गणित, भारतीय वास्तु, भारतीय चित्रकला, भारतीय योग, भारतीय परिवार शैली, एक पत्नी व्रत का विरोध पश्चिम शुरू से ही करता चला आ रहा है। इसी की देखा-देखी भारत के भीतर भी बीसवीं शताब्दी से विरोध शुरू हुआ। अंग्रेजों ने जिन चीजों को नकारा कमोवेश यहां के भी सुधारकों ने उसे ही अंगीकार किया। रामदेव जी ने आयुर्वेद और योग के कारण अपार धन और यश कमाया है, अतःउसका विरोध नहीं करते पर ज्योतिष,रत्न विद्या आदि का वे विरोध करते हैं।

उन्होंने कहा कि, रामदेव जी का अध्ययन न्यूनतम है। सन 2008 में हमारा उनके साथ स्टार न्यूज पर धर्मयुद्ध हुआ था। उस शास्त्रार्थ में चैनल की ओर से निर्णायक थे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज। विवादित विषय उठाया था रामदेव ने "आदि शंकराचार्य" के कारण भारतवर्ष एक हजार वर्षों तक गुलाम रहा।

उन्होनें "ब्रह्म सत्यं जगन् मिथ्या" कहकर देशको अकर्मण्य बना दिया था।" इस शास्त्रार्थ में वे चारो खाना चित्त हुए थे।उन्होंने आदि शंकराचार्य का जन्म काल पादरी बेबर का रखा स्वीकार किया था, जिसे महान शोधकर्ता लेखक कोटा वेंकटचलम ने राजा सुधन्वा के शिलालेख के आधार पर गलत सिद्ध किया था और ईसा पूर्व 500 वर्ष सिद्ध किया था। रामदेव जी अधूरी जानकारी रख कर बड़ बोलापन दिखाते हैं, जिसके कारण उनकी गरिमा गिरती है। विवादों से संवाद में बने रहना कम्युनिस्टों की शैली है। इसी शैली को रामदेव जी अपनाते हैं।

ज्योतिष का विरोध पश्चिम करता तो है पर अपने महान ज्योतिषी टॉलमी को वैज्ञानिक कहता है। उसका ज्योतिष होना पूरी तरह से छुपा ले जाताहै। उसकी फलित ज्योतिष की किताब टेट्रा बेब्लिआस को तिरोहित कर देता है। सन 1930 के आसपास दो दर्जन नोबेल पुरस्कार प्राप्त लोगों ने ज्योतिष के विरोध में एक पुस्तक प्रकाशित की थी। इसके बावजूद सन 2000 आते आते भारतीय फलित ज्योतिष ने यूरोप में अपनी जड़ें जमा ली। आज पश्चिम में हजारों हजार लोग फलित ज्योतिष का कार्य करते हैं और महामृत्युंजय मंत्र का जप कराते हैं।


यह कम लोगों को पता है कि भारत में ज्योतिष विद्या से सर्वाधिक वार्षिक आय अर्जित करने वाले व्यक्ति बंसल हैं। आज ब्राह्मणेतर ज्योतिषियों की संख्या और आय तेजी से बढ़ी है। यह इस विद्या के फैलाव का द्योतक है।यदि भारत फलित ज्योतिष को छोड़ता है तो आगमित डॉलर मूल्य में अकादमिक ह्रास होगा जो आयुर्वेद से आने वाले धन से कम नहीं होगा। विदेशों में ज्योतिष, महामृत्युंजय मंत्र का पारस्परिक सम्बन्ध बहुत तगड़ा है। भारत की ज्वेलरी जो ग्रह से सम्बन्धित है का प्रचार तेजी से बढा है। इस प्रकार इस विद्या को हानि पहुचाने का जो भी यत्न करता है वह जाने अनजाने में हिन्दुत्व का विरोध करता है।

ज्योतिष में वर्षा, भूकम्प,बाढ़ का भविष्य कहा जाता है। उसका विरोध करना हिन्दु धर्म और पारम्परिक विज्ञान का विरोध है। अनेक पंचांगों में लिखा रहता है कि, यह वर्ष कैसा जाएगा पर रामदेव जी को पढ़ना तो है नहीं। "मुखम् अस्ति इति वक्तव्यम्" अथार्त भगवान ने मुख और प्रचार के लिए चैनल दे रखा है, अतः जो भी बोलना हो बोलो। ज्योतिष का विरोध कर आयुर्वेद को नहीं बचाया जा सकता क्योंकि ग्रह चिकित्सा अध्याय आयर्वेद का अंग है।

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