विश्व में कोविड-19 टीके के वितरण में जंगलराज नहीं होना चाहिए
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में कोरोना के खिलाफ 75 प्रतिशत टीकाकरण दस देशों में है, जबकि 130 देशों को टीके की एक भी खुराक नहीं मिली है। आर्थिक सहयोग संगठन के अनुमान के अनुसार कुछ अविकसित देशों में वर्ष 2024 तक टीकाकरण शुरू हो सकेगा।
उधर, अमीर देशों के बीच टीके से जुड़ा झगड़ा भी चल रहा है। 16 मार्च को ऑस्ट्रिया और बुल्गारिया समेत यूरोपीय संघ के 6 देशों के प्रधानमंत्रियों ने ईयू में कोविड-19 टीके के वितरण तंत्र में सुधार करने का आग्रह किया, ताकि विभिन्न सदस्यों के बीच टीकारण में मौजूद असंतुलन दूर किया जाए।
कुछ विकसित देशों ने पूर्वाग्रह और आर्थिक हित के चलते चीन और रूस में विकसित टीकों पर लांछन लगाने की कुचेष्टा की। कुछ चीन विरोधी शक्तियों ने टीका की राजनीति कर तथाकथित वैक्सीन कूटनीति भूना दिया। इससे सिर्फ समग्र मानवता के हितों को नुकसान पहुंचता है।
एक जिम्मेदार बड़े देश होने के नाते चीन हमेशा टीके के न्यायपूर्ण वितरण को बढ़ाता आया है। अब एशिया से यूरोप तक, मध्य-पूर्व से अफ्रीका और अमेरिका तक, अधिकाधिक देशों को चीन के टीके मिले और कई देशों के नेताओं ने खुले तौर पर चीनी टीका लगवाया।
वायरस की कोई राष्ट्रीय सीमा नहीं है। कोविड-19 महामारी के वैश्विक संघर्ष में टीका एक अत्यंत महत्वपूर्ण हथियार है। विकसित देशों को यथाशीघ्र ही जंगलराज छोड़कर विकासशील देशों को यथासंभव मदद देनी चाहिए।
(साभार--चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
--आईएएनएस
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