श्रीमद्भागवत कथा : कथा वाचक ने श्रोताओं को बताया भागवत का सार, बोले, परमात्मा की शरण में जाने से दूर हो जाते हैं समस्त दुख
चंदौली। परमात्मा की शरण में जाने से जीव के समस्त दुखों का अंत हो जाता है। जीवात्मा परमात्मा का ही अंश है। परमात्मा से बिछड़ने की वजह से जीव दुखी होता है। जो तन को सजोए वह जीव और जो मन को सजाए वही संत है। उक्त बातें मसोई गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन सोमवार की रात कथा वाचक शिवम शुक्ला ने कही।
उन्होंने कहा कि जो अपने हृदय में निरंतर प्रभु के वास का अनुभव करे वही सर्वोच्च भक्त होता है। त्रिकाल संध्या सबको करनी चाहिए। इससे निरंतर प्रभु का स्मरण बना रहता है और जीव माया के बंधन से मुक्त रहता है। कहा कि पृथ्वी हमे सहनशीलता का पाठ पढ़ाती है तो भ्रमर सिखाता है कि कभी निराश नहीं होना चाहिए। निराशा से ग्रसित होकर विद्यार्थी अक्सर आत्महत्या कर लेता है, जो अत्यंत पाप कर्म है। परीक्षा जीवन में अंतिम नहीं होती, और अधिक उत्साह के साथ पुरूषार्थ करना चाहिए। बताया कि पिंगला नामक वैश्या अपने अंतिम समय में तन को न सजाकर मन को सजाती है। इससे उसे श्री भगवत की प्राप्ति होती है। दत्तात्रेय कहते है कि आशा ही परम दुख का कारण है। सुदामा जी आशा छोड़कर निष्काम भाव से श्रीकृष्ण के पास केवल चार मुट्ठी चावल लेकर गए थे। भगवान सिर्फ एक मुट्ठी चावल खाकर ही सुदामा को समस्त ऐश्वर्य प्रदान कर देते हैं। कुब्जा ने थोड़ा सा चंदन लगाकर भगवान का श्रृंगार किया था तो भगवान ने कुब्जा को श्रेष्ठ रूप प्रदान कर दिया।
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