श्रीराम मर्यादा पुरूषोत्तम तो श्रीकृष्ण लीला पुरूषोत्तम, कथा वाचक ने श्रोताओं को सुनाया अवतारवाद का रहस्य
चंदौली। श्रीराम मर्यादा पुरूषोत्तम तो श्रीकृष्ण लीला पुरूषोत्तम हैं। राम कथा का द्वार शिव कथा व श्रीकृष्ण कथा का द्वार राम कथा मानी जाती है। श्रीकृष्ण की लीला प्रेम और माधुर्य से भरी हुई है। श्रीराम की सभी लीलाओं में मर्यादा है। इसलिए भागवत में भी मर्यादा पुरूषोत्तम की कथा पहले आती है। उक्त बातें मसोई गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दौरान शुक्रवार की रात कथा वाचक शिवम शुक्ला ने कही।
उन्होंने कहा कि श्रीराम त्याग व वैराग्य की प्रतिमूर्ति हैं। जो मोह रूपी रावण का बध करे, अहंकार रूपी कुंभकर्ण को या तो सुला दे अथवा नष्ट कर दे और काम रूपी मेघनाद पर विजय प्राप्त कर ले, उसी का हृदय राम राज्य कहलाता है। श्रीकृष्ण प्रेमरस के स्वरूप हैं। श्रीकृष्ण मन का आकर्षण कर प्रेमरस का दान करते हैं। गोपियों का मन सदैव श्रीकृष्ण में आसक्त रहता है। कहा कि शुक्रदेव सन्यासी महात्माओं के आचार्य हैं पर गोपियों की प्रशंसा करते हैं। गोपियों का वस्त्र सन्यास नहीं है, बल्कि उनका प्रेम सन्यास है। वस्त्र सन्यास से प्रेम सन्यास श्रेष्ठ है। गोपियों ने भले ही श्रीकृष्ण के लिए घर नहीं छोड़ा पर उनके मन में कभी घर नहीं रहा। उनके मन में श्रीकृष्ण का स्वरूप स्थिर है। गोपियां नाक नहीं पकड़ती, प्राणायाम नहीं करतीं, फिर भी सहज समाधि में हैं। श्रीकृष्ण लीला में इंद्रियों को सहज समाधि की ओर ले जाकर परमानंद की अनुभूति कराने के लिए ही भगवान नारायण नर रूप में गोकुल में प्रकट होते हैं। गोपियां बधाई देती हुई गाती हैं। इस दौरान अखिलेश्वरानंद पांडेय, सर्वेश्वरानंद पांडेय, अमरेश्वरानंद पांडेय, राजन पांडेय, अंबरीष पांडेय, अभिषेक पांडेय आदि रहे।
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