गंगा किनारे के गांवों में घट रही जीवांश कार्बन की मात्रा, मिट्टी के बंजर होने का खतरा, जैविक खेती विकल्प
चंदौली। गंगा के तराई इलाकों के गांवों की मिट्टी में जीवांश कार्बन की मात्रा दिनोंदिन कम होती जा रही है। नमामि गंगे योजना के तहत चयनित 46 गांवों की मिट्टी के 903 नमूनों की जांच में जीवांश कार्बन की मात्रा न्यूनतम पाई गई। विशेषज्ञों की मानें तो रासायनिक उर्वरक के अत्यधिक इस्तेमाल से ऐसी स्थिति बनी है। ऐसे में जैविक खाद ही एक मात्र विकल्प है।
जैविक खेती पर शासन का जोर है। इसको बढ़ावा देने के लिए गंगा के तराई इलाकों के नियामताबाद, धानापुर व चहनियां विकास खंड के 46 गांवों का चयन किया गया है। इन गांवों के खेत की मिट्टी की जांच 12 बिदुओं पर की गई। मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फेट, पोटास की मात्रा के साथ जीवांश कार्बन, पीएच(पावर आफ हाइड्रोजन), बोरान, सल्फर, तांबा, लोहा, जिक व मैगनीज की जांच की गई। इसमें मिट्टी में जीवांश कार्बन की मात्रा न्यून पाई गई है। मिट्टी में जीवांश कार्बन की स्थिति .75 फीसद होनी चाहिए, लेकिन यहां . दो व . तीन फीसद तक हो गई है। जीवांश कार्बन की मात्रा घटने का असर फसल पर पड़ेगा। इससे पौधों का विकास प्रभावित होगा। वहीं मिट्टी में जलसंचयन की मात्रा भी कम होगी। जिला कृषि अधिकारी बसंत कुमार दुबे ने किसानों को जैविक खेती की सलाह दी है। कहा कि किसान खेत में ढैचा जरूर उगाएं। इसको सड़ाकर हरी खाद तैयार करें। इससे मिट्टी में जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ेगी। फसल अवशेष प्रबंधन अपनाने से भी काफी लाभ होगा। फसल अवशेष को जलाने की बजाए खेत में सड़ाकर जैविक खाद बनाएं।
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