गुरु तेग बहादुर ने हिन्दुओं के संरक्षण के लिए अपना सर्वस्व बलिदान किया, उनके संघर्ष को याद रखना होगा- श्रीश देव पुजारी

श्री सद्गुरु रामसिंह महाराज पीठ, तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के तत्वावधान में बुधवार को आजादी का अमृत महोत्सव, चौरी चौरा महोत्सव, गुरु तेग बहादुर सिंह के 400 वें जन्म शताब्दी के अवसर पर "भारतीय स्वाधीनता संग्राम, "संघर्ष की गाथा" विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
 
 

वाराणसी। श्री सद्गुरु रामसिंह महाराज पीठ, तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के तत्वावधान में बुधवार को आजादी का अमृत महोत्सव, चौरी चौरा महोत्सव, गुरु तेग बहादुर सिंह के 400 वें जन्म शताब्दी के अवसर पर "भारतीय स्वाधीनता संग्राम, "संघर्ष की गाथा" विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।


 
इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि संस्कृत भारती के अखिल भारतीय महासचिव श्रीश देव पुजारी ने कहा कि आजादी दिलाने वाले स्वाधीनता सेनानियों को सदा स्मरण करते रहना चाहिए। स्वाधीनता संग्राम संघर्ष में हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने जो संघर्ष किया उस अनुपात में उन्हें विजय प्राप्त नहीं हुई, इसका कारण उनका अलग-अलग संघर्ष है। यदि ये संघर्ष मिल कर काम कर रहे होते तो, हमें लक्ष्य आसानी से प्राप्त हो जाता। पुजारी ने कहा कि यही परिस्थितियां आज भी है। अतः हमें संस्कृति के आधार पर संघटित होना ही होगा। 

उन्होंने आगे कहा कि सिक्ख गुरुओं का भारतीय संस्कृति के संरक्षण में अतुलनीय योगदान है। हमें उनके अवदान को सतत स्मरण करते रहना है। गुरु तेगबहादुर ने हिन्दुओं के संरक्षण के लिए अपना सर्वस्व बलिदान किया। नामधारी सिक्ख परम्परा भी देश की आजादी के लिए  अपना सर्वस्व बलिदान किया और गऊ रक्षा के लिए फांसी पर चढ़ा दिये गये। तोप के आगे उड़ा दिये गये। उनके संघर्ष को याद रखना है। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी  ने करते हुए कहा कि देश को आजादी दिलाने वाले स्वाधीनता सेनानियों को सदा स्मरण करते रहना चाहिए और मानव कल्याण के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले गुरु तेगबहादुर जी के बलिदानों को सतत स्मरण करते और नमन करते हैं। नामधारी सिक्ख परम्परा सामाजिक व राजनीतिक सुधारों के लिए जो कार्य किया वो आज भी प्रासंगिक हैं। सनातन संस्कृति के संरक्षण में सिक्ख गुरुओं का अवदान भी निरन्तर स्मरणीय है। गुरु जगजीत सिंह महाराज ने जिस उद्देश्य से इस पीठ की स्थापना की थी यह पीठ उस उद्देश्य पर अग्रसर हैं। वहीं मंजीत सिंह ने नामधारी सिक्ख परम्परा के स्वाधीनता संग्राम संघर्ष की गाथा को स्मरण कराया। 

मुख्य अतिथि का स्वागत और अभिनंदन कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने मुख्य अतिथि श्री श्रीशदेव पुजारी का नारिकेल, चन्दन,माला,अंग वस्त्रम व स्मृति चिन्ह देकर स्वागत और अभिनंदन किया गया। इस दौरान मंचासीन अतिथियों ने "सद्गुरु-सन्देश "नामक स्मारिका का विमोचन किया गया।

उक्त राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रारम्भ में वैदिक मंगलाचरण डॉ राजकुमार,पौराणिक मंगलाचरण पं विष्णु दत्त ने किया। मंचासीन अतिथियों के द्वारा दीपप्रज्वलन ,स्वागत भाषण तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो हरिप्रसाद अधिकारी ने और धन्यवाद ज्ञापन दर्शन संकायाध्यक्ष प्रो सुधाकर मिश्र ने किया।

सम्पूर्ण संगोष्ठी का संचालन व संयोजक पीठ की निदेशिका डॉ रेणु द्विवेदी ने किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से प्रो राम किशोर त्रिपाठी,प्रो रामपूजन पान्डेय, प्रो प्रेम नारायण सिंह,प्रो शैलेश कुमार मिश्र, प्रो राघवेन्द्र दुबे व अन्य उपस्थित थे।