अस्थमा में एलर्जी सबसे महत्वपूर्ण कारण : प्रो. जीएस तोमर

 


-विश्व अस्थमा दिवस : बचाव एवं नियंत्रण पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार

प्रयागराज, 07 मई (हि.स.)। आयुर्वेद व यूनानी चिकित्सा संकाय के पूर्व डीन प्रोफेसर जीएस तोमर ने कहा कि 'विश्व अस्थमा दिवस' हर साल मई के पहले मंगलवार को मनाया जाता है। आयुर्वेद में हजारों साल पहले चरक संहिता में इस बीमारी का जिक्र है, जिसमें इस बीमारी से बचने के उपाय भी बताए गए हैं। प्रो.तोमर ने बताया कि आयुर्वेद में इसे तमक श्वास कहा गया है। इसके प्रमुख कारणों में एलर्जी सबसे महत्वपूर्ण है।

विश्व आयुर्वेद मिशन के सहयोग से राजकीय यूनानी चिकित्सा महाविद्यालय एवं चिकित्सालय हिम्मतगंज प्रयागराज के हकीम अहमद हुसैन उस्मानी सभागार में विश्व अस्थमा दिवस 2024 की थीम 'अस्थमा शिक्षा सशक्त' के अंतर्गत अस्थमा से बचाव एवं नियंत्रण विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया।

प्रो. तोमर ने अपने शोध अनुभव का ज़िक्र करते हुए कहा कि जिन-जिन खाद्य पदार्थों से एलर्जी होती है उनकी थोड़ी-थोड़ी मात्रा प्रयोग करने से वह एलर्जन्स शरीर को सात्म्य हो जाते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार हम शरीर में एडप्टिबिलिटी डेवलप कर सकते हैं। उन्होंने रेस्पीकल्प एवं आस्थाकल्प पर अपने चिकित्साय अनुभव साझा करते हुए इन्हें अस्थमा की चिकित्सा में बहुत लाभकारी बताया। फास्ट फूड से भी अस्थमा अटैक का खतरा बढ़ जाता है।

विशिष्ट अतिथि डॉ शांति चौधरी, वरिष्ठ शोधकर्ता, मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम का उद्देश्य इस बीमारी के बारे में जनता में जागरूकता पैदा करना है। ताकि लोग निवारक उपाय अपना सकें। खासकर बच्चों को लेकर इस बात पर जोर दिया कि अस्थमा से प्रभावित बच्चों के बारे में अभिभावक स्कूल के शिक्षक को बताएं ताकि जरूरत पड़ने पर उचित कदम उठाया जा सके। उन्होंने स्वस्थ वातावरण बनाए रखने के लिए पौधे लगाने एवं आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा रखने के निर्देश दिए।

मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, प्रयागराज के पल्मोनोलॉजिस्ट प्रोफेसर तारिक महमूद ने बताया कि अस्थमा एक पुरानी बीमारी है और इससे बचा जा सकता है। दुनिया भर में इसके तीन करोड़ से ज्यादा मरीज हैं। बढ़ती आबादी, औद्योगीकरण, वायु प्रदूषण, पारिवारिक एवं आनुवंशिक कारक, अस्वास्थ्यकर आहार और धूम्रपान जैसे कारक इस बीमारी को बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर शोध करके यूनानी अनुभव को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि लोगों को इसका फायदा मिल सके। इसके लिए फार्मास्युटिकल कम्पनियां और अनुसंधान इकाइयां मिलकर काम कर सकती हैं।

होम्योपैथी पद्धति के प्रो. एसएम सिंह, पूर्व निदेशक साईनाथ पीजी इंस्टीट्यूट ऑफ होम्योपैथी ने इस बीमारी के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि व्यक्ति एवं लक्षणों अनुसार चिकित्सा होम्योपैथी की विशेषता है।

प्रसिद्ध यूनानी चिकित्सक एवं सौंदर्यशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर बरकतुल्लाह नदवी ने कहा कि यूनानी चिकित्सा पद्धति में इस बीमारी का इलाज बिल्कुल स्पष्ट है, लेकिन इसके उपचार चिकित्सा में वर्णित सिद्धांतों के अनुसार ही उपचार करना चाहिए। आमतौर पर डॉक्टर उपचार के सिद्धांतों की अनदेखी करते हैं, जिससे रोग और अधिक गम्भीर हो जाता है।

कॉलेज के प्राचार्य डॉ.वसीम अहमद ने अध्यक्षता की। कार्यक्रम का आयोजन डॉ.फिरदौस अनीस तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो.नजीब हंजला अम्मार ने किया। सेमिनार में महाविद्यालय के सभी शिक्षक, छात्र एवं छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/राजेश