उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान व भाषा संस्थान में अध्यक्ष के पद वर्षों से खाली
--उपेक्षित अनुभव कर रहे हिन्दी भाषा के साहित्यकार
लखनऊ, 14 सितम्बर (हि.स.)। हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। सरकारी व गैरसरकारी स्तर पर इस दिन कार्यक्रम भी होते हैं। सोशल मीडिया पर देखें तो वहां भी हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के लिए तरह—तरह के लोगाें के सुझाव आते हैं। लेकिन जिन सरकारी संस्थाओं की जिम्मेदारी हिन्दी भाषा के उत्थान की है वह अप्रसांगिक हो चुके हैं।
विगत तीन वर्षों से उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में कार्यकारी अध्यक्ष का पद रिक्त चल रहा है। गोरखपुर के डाॅ. सदानन्द गुप्त को 2017 में हिन्दी संस्थान का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। इसके बाद तीन बार उनका कार्यकाल बढ़ाया गया। उनके हटने के बाद हिन्दी संस्थान में कार्यकारी अध्यक्ष का पद खाली है। यही हाल उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान का है। यहां भी तीन वर्ष से अधिक समय से निदेश की नियुक्ति नहीं हुई है। इसलिए हिन्दी भाषा के साथ—साथ राष्ट्र भाव धारा के रचनाकार पूरी तरह से उपेक्षित हो रहे हैं।
यही हाल केन्द्र सरकार का भी है। अभी जुलाई 2024 में प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी को केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा का निदेशक नियुक्त किया गया। उन्हीं के पास केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के निदेशक के साथ—साथ केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय का भी अतिरिक्त प्रभार है। केन्द्र सरकार ने तो 10 वर्ष बिना निदेशक नियुक्त किये ही व्यतीत कर दिये। अब ऐसे में हिन्दी का उत्थान कैसे होगा। यह विचारणयी प्रश्न है।
साहित्यकार डाॅ. आशीष वशिष्ठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश हिन्दी के साथ—साथ अन्य भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने वाली है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान हो या अन्य संस्थान जो भाषा को बढ़ावा देते हैं वहां पर अध्यक्ष की नियुक्ति जल्द की जानी चाहिए। लेखक डाॅ. सत्येन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि हिन्दी भाषा हमारी गौरवशाली सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। हिन्दी भाषा की उपेक्षा ठीक नहीं है। सरकार को हिन्दी संस्थान जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों में अध्यक्ष की नियुक्ति अविलम्ब करनी चाहिए।
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हिन्दुस्थान समाचार / बृजनंदन यादव