ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत् वाले दर्शन पर चल रही उप्र सरकार : अनुपम मिश्रा

 


लखनऊ, 04 फरवरी (हि.स.)। राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय सचिव अनुपम मिश्रा ने रविवार को कहा कि 'यावेत जीवेत सुखम जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत्' अर्थात जब तक जियो सुख से जियो, ऋण लेकर भी घी पियो। महर्षि चर्वाक ने इस श्लोक में भौतिकवाद की जो शिक्षा दी अपने समय में यह श्लोक भले ही लोगों को अधिक प्रभावित नहीं कर पाया हो, लेकिन वर्तमान समय में प्रदेश की स्थिति कुछ इसी तरह की है।

राज्यों के वित्तीय घाटे के प्रबंधन को लेकर आरबीआई से जारी रिपोर्ट को आधार बनाते हुए राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय सचिव अनुपम मिश्रा ने उत्तर प्रदेश सरकार की आर्थिक स्थिति को चिंताजनक व भयभीत करने वाला बताया। कहा कि वित्तीय घाटे के प्रबंधन को लेकर प्रदेश सरकार की हालत गंभीर है।

उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि प्रदेश की भाजपा शासित सरकार ने वर्ष 2017 में जब सत्ता संभाली, तब से वित्तीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसकी भरपाई प्रदेश सरकार बाहरी स्रोतों से उधार लेकर करने की कोशिश कर रही है, जो वित्तीय घाटे को पाटने का सबसे खराब तरीका माना जाता है। पहले भी राज्य वित्तीय घाटे को पाटने के लिए एनएसएसएफ यानी नेशनल सोशल सिक्योरिटी फंड से उधार लेते थे और 80 प्रतिशत तक वित्तीय घाटे को पाटने का यही एकमात्र जरिया होता था।

वर्ष 2017 से लेकर 2022 तक 1,72703 करोड़ रुपये नया कर्ज, 48 प्रतिशत तक भुगतान शेष

अनुपम मिश्रा ने आरोप लगाया कि उप्र सरकार जिस तरह से नए कर्ज ले रही है, वह जनता को कंगाल बनाकर छोड़ेगी। भाजपा शासित उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2017 से लेकर 2022 तक 1,72703 करोड़ रुपये नया कर्ज लिया है और चुकाया सिर्फ 42,120 करोड़ रुपया है। कुल बकाए कर्ज का 48 प्रतिशत तक भुगतान अगले सात वर्षों में प्रदेश सरकार को करना है, जो एक भयानक स्थिति में प्रदेश की अर्थव्यवस्था को खड़ा कर देगी। रिजर्व बैंक ने भी भावी खतरे से आगाह किया है कि सरकार अपनी अदूरदर्शिता के कारण प्रदेश को बड़े कर्ज में डूबा रही है।

बढ़ते कर्ज को बताया चिंताजनक

वर्ष 2024 में 7.84 लाख करोड़ रुपये का कर्ज चढ़ जाएगा, जो पिछले वर्ष से 40 प्रतिशत अधिक है और आज उत्तर प्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति पर 26 हजार रुपये से अधिक का कर्ज सरकार की ग़लत नीतियों के कारण चढ़ गया है। अभी हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्दा मुद्राकोष ने भी भारत सरकार और राज्यों पर बढ़ते कर्ज को चिंताजनक बताया था। वहीं सरकार के वित्त मंत्रालय ने आईएमएफ की रिपोर्ट को खारिज कर दिया, लेकिन बात खारिज करने से नहीं बनेगी। इसके लिए ठोस उपाय करने होंगे। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना होगा।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/राजेश