शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का ‘अरावली बचाओ’ अभियान को समर्थन
बोले—अरावली का विनाश ईश्वर की कृति का अपमान, संरक्षण ही एकमात्र मार्ग
वाराणसी, 21 दिसंबर (हि.स.)। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने ‘अरावली बचाओ’ अभियान को अपना पूर्ण आध्यात्मिक समर्थन एवं आशीर्वाद प्रदान किया है। उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी के केदारघाट स्थित श्रीविद्या मठ में प्रवास के दौरान शंकराचार्य ने प्रकृति संरक्षण को सनातन धर्म का मूल तत्व बताते हुए अभियान से जुड़े सभी समर्पित कार्यकर्ताओं के पुरुषार्थ की सराहना की।
अपने आशीर्वचन में शंकराचार्य ने कहा कि अरावली पर्वत श्रृंखला मात्र पत्थरों का समूह नहीं, बल्कि उत्तर भारत की जीवन-रेखा और प्राचीन भारतीय सभ्यता की जीवंत साक्षी है। उन्होंने चेतावनी दी कि पर्वतों का अनियंत्रित दोहन और वनों का अंधाधुंध कटान सीधे तौर पर प्रकृति तथा ईश्वर की कृति का अपमान है। जो समाज अपनी प्रकृति की रक्षा नहीं करता, उसका भविष्य भी सुरक्षित नहीं रह सकता।
शास्त्रों का उल्लेख करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि वेदों और पुराणों में वृक्षों एवं पर्वतों को पूजनीय माना गया है। उन्होंने मत्स्य पुराण का संदर्भ देते हुए बताया कि एक वृक्ष का संरक्षण दस पुत्रों के समान पुण्यदायी है। वहीं अथर्ववेद के भूमि सूक्त का स्मरण कराते हुए उन्होंने कहा कि पर्वतों और वनों को क्षति पहुँचाना पृथ्वी के हृदय को आहत करने जैसा है। शंकराचार्य ने आगाह किया कि अरावली पर्वत श्रृंखला का विनाश आने वाली पीढ़ियों के लिए गंभीर जल संकट और मरुस्थलीकरण जैसी विकराल समस्याओं को जन्म देगा। ऐसे में अरावली का संरक्षण केवल पर्यावरणीय दायित्व नहीं, बल्कि धार्मिक और नैतिक कर्तव्य भी है। शंकराचार्य महाराज के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय ने बताया कि श्रीविद्या मठ में प्रवास के दौरान शंकराचार्य विविध धार्मिक अनुष्ठानों में सहभागिता कर रहे हैं तथा संतों और श्रद्धालुओं को अपने ज्ञान और उपदेशों से रससिक्त कर रहे है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी