कला संकाय,बीएचयू के पर्यटन प्रबंधन को यूरोपीय संघ का इरास्मस प्लस अनुदान प्राप्त
—1987 से अब तक 1.2 करोड़ से अधिक लोग इस कार्यक्रम से लाभान्वित हुए
वाराणसी,30 दिसंबर (हि.स.) । विदा होने के कगार पर खड़े वर्ष 2025 के अन्तिम सप्ताह के दिनों में उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) कला संकाय के पर्यटन प्रबंधन विभाग ने बड़ी उपलब्धि पाई है। पर्यटन प्रबंधन विभाग को यूरोपीय संघ द्वारा इरास्मस प्लस कैपैसिटी बिल्डिंग इन हायर एजुकेशन (सीबीएचई) के तहत एक महत्वपूर्ण अनुदान प्राप्त हुआ है। यह अनुदान कला संकाय को प्राप्त होने वाला पहला इरास्मस अनुदान है और साथ ही बीएचयू द्वारा अब तक प्राप्त सबसे बड़ा इरास्मस फंड भी है। यह परियोजना नवंबर 2025 से अक्टूबर 2028 तक तीन वर्षों की अवधि के लिए रूपये 7,80,000 (लगभग ₹8 करोड़) की राशि से संचालित होगी। मंगलवार को यह जानकारी विश्वविद्यालय के जनसम्पर्क कार्यालय ने दी। बताया गया कि कुलपति प्रो. अजीत कुमार चतुर्वेदी ने मानविकी क्षेत्र में प्राप्त इस अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त की। विश्वविद्यालय की ओर से रजिस्ट्रार ने आधिकारिक रूप से यूरोपीय संघ की परियोजना संधि पर हस्ताक्षर किए। कला संकाय प्रमुख प्रो. सुषमा घिल्डियाल ने बताया कि संकाय में चल रही विभिन्न अंतरराष्ट्रीय परियोजनाएँ और एमओयू नई संभावनाएँ एवं विकास के आयाम खोल रहे हैं।
—क्या है इरास्मस प्लस
यूरोप में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 1970 के दशक में एक छात्र–विनिमय कार्यक्रम (स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम) की अवधारणा विकसित हुई। इसी विचार को औपचारिक रूप देते हुए यूरोपीय समुदाय ने 1987 में आधिकारिक रूप से इरास्मस+ (यूरोपियन रीजन एक्शन स्कीम फ़ॉर द मोबिलिटी ऑफ़ यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स) कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम का नाम 15वीं शताब्दी के डच मानवतावादी विद्वान डेसिडेरियस इरास्मस ऑफ़ रॉटरडैम के सम्मान में रखा गया, जिन्होंने यूरोप के विभिन्न देशों में यात्रा कर अध्ययन और शिक्षण किया था।
—इस कार्यक्रम की शुरूआत
वर्ष 2014 में यूरोपीय संघ (ईयू) ने शिक्षा, प्रशिक्षण, युवा विकास और खेलों से संबंधित कई कार्यक्रमों को एकीकृत कर एक समग्र कार्यक्रम बनाया, जिसे इरास्मस प्लस नाम दिया गया। इसमें उच्च शिक्षा में छात्र एवं शिक्षक विनिमय, विद्यालयी शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण , वयस्क शिक्षा, युवा आदान–प्रदान एवं युवा कार्य, खेल सहयोग, क्षमता निर्माण परियोजनाएँ (जैसे सीबीएचई) शामिल है। कला संकाय प्रमुख प्रो. सुषमा घिल्डियाल के अनुसार 1987 से अब तक 12 मिलियन (1.2 करोड़ से अधिक) लोग इन कार्यक्रमों से लाभान्वित हो चुके हैं। इसे विश्व के सबसे सफल शैक्षणिक कार्यक्रमों में से एक माना जाता है। इस कार्यक्रम से विद्यार्थियों की कौशल वृद्धि,रोजगार क्षमता, अंतरसांस्कृतिक आदान–प्रदान, शैक्षणिक सहयोग, शिक्षा में नवाचार बढ़ता है।
—वैश्विक सहयोग की दिशा में एक बड़ा कदम
यह परियोजना आठ देशों के 16 संस्थानों को एक साथ लाती है। भागीदार देशों में अल्बानिया, भारत, स्पेन, ग्रीस, स्लोवेनिया, मोल्दोवा, माल्टा और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। भारत की ओर से बीएचयू और कर्नाटक विश्वविद्यालय प्रतिनिधित्व करेंगे। परियोजना का उद्देश्य धार्मिक पर्यटन, सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण और सतत क्षेत्रीय विकास के क्षेत्र में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है, जिसके लिए यूरोपीय साझेदार देशों के श्रेष्ठ प्रथाओं और विशेषज्ञता से सीखना प्रमुख लक्ष्य है। यह परियोजना विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में बढ़ते धार्मिक एवं आध्यात्मिक पर्यटन को और मजबूत करेगी। वर्ष 2025 में राज्य में 1.2 बिलियन से अधिक पर्यटक पंजीकृत हुए, जिनमें वाराणसी प्रमुख आकर्षण रहा।
—बीएचयू टीम एवं नेतृत्व
बीएचयू शोध टीम का नेतृत्व डॉ. प्रवीन राणा (परियोजना प्रमुख, पर्यटन प्रबंधन, कला संकाय) कर रहे हैं। उनके साथ डॉ. शायजू पी. जे. (पर्यटन प्रबंधन, गुणवत्ता प्रमुख), प्रो. ज्योति रोहिल्ला (शोधकर्ता, कला इतिहास) एवं डॉ. प्रियंका सिंह (शोधकर्ता बरकच्छा) कार्य करेंगे । डॉ. राणा ने बताया कि इस परियोजना के अंतर्गत अध्यापकों, विद्यार्थियों और हितधारकों को अत्याधुनिक शिक्षण अवसर प्राप्त होंगे। परियोजना के दौरान चार अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यशालाएँ एवं चार स्टडी विज़िट आयोजित की जाएँगी। प्रशिक्षण एवं बैठकें 4 देशों में होगी। इनमें अल्बानिया, मोल्दोवा, दक्षिण अफ्रीका, भारत (बीएचयू वाराणसी)है। शैक्षणिक यात्रा (स्टडी विज़िट) स्लोवेनिया, स्पेन, माल्टा, ग्रीस में होगी।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी