उलेमाओ की रहनुमाई से वाकिफ मुसलमान...

 


बरेली, 2 मई (हि.स.) । शह और मात की सियासत की कठपुती बना मुसलमान अब चुनाव में कौम के ठेकेदारों के हाथों में है। पांच साल बाद एक बार फिर उनके नुमाइंदे बनकर जगह -जगह खड़े हुए उलेमा उनकी बोली लगाकर मैदान में हैं। उनका कहना है मुस्लिम उनको फ़ोन करके पूछ रहा है किस पार्टी को वोट करें। लेकिन क़ौम के ठेकेदार भूल गए कि चुनाव में मत का अधिकार बालिग़ शख्स को दिया गया हैं और वो ख़ुद इतनी सलाहियत रखता हैं कि उसे किसको वोट करना हैं यह वों बाखूबी जानता हैं।

डिजिटल मीडिया के दौर में सूफ़ी का टैग लिये मौलाना अपनी ख़ुद की परिभाषा भूल गए। खैर कोई बात नही उनको हम याद दिलाते हैं सूफ़ी का अर्थ हैं ईश्वर का ऐसा भक्त जो सभी सांसारिक बुराइयों से मुक्त हो। अरे यह क्या हुआ मौलाना ने तो यहां सूफ़ी का अर्थ ही बदल दिया।

सूफ़ी मौलवी तो राजनीति का चोला पहनने को पूरी तरह तैयार हैं। बाक़यदा प्रेस वार्ता करके चीख -चीख कर मौलाना अपनी आवाज़ लोगों तक पहुंचा रहे हैं। कि आप सब नोटा को वोट करें कोई पार्टी उनके मतलब की नही है। अरे भाई जब कोई पार्टी आपके मतलब की नही थी तों पांच साल तक आप कौन सी पार्टी की शरण में थे जो अब निकल कर बाहर आए। इन पांच सालों में अगर आपको मुस्लिमों के लिये इतनी फ़िक्र थी तों अपनी एक अलग पार्टी बनाते लोगों से मिलते हर ज़िले से अपने प्रत्याशी को खड़ा करते मुस्लिमों की आवाज़ बनते तब अच्छा लगता।

वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम युवा कह रहे हैं यही प्रेस वार्ता उन्होंने मुस्लिमों की तालीम और हक़ में की होती तो कितना अच्छा होता। उलेमा अपने माफ़ात का रास्ता चुन रहे हैं और इनको लगता मुस्लिम तबका सबसे ज़्यादा कमज़ोर हैं इनको बस बहला -फुसला कर अपनी बात मनवा लेंगे। लेकिन अब पहले ज़ैसा दौर नही हैं मुस्लिम वोटर नाबालिग़ थोड़ी हैं जो आप उसको सलाह दें रहे हैं।

किसकी नाव पर सवार होगा मुस्लिम...

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा चुनाव में 23 लाख से ज्यादा मतदाता हैं जिसमें सात लाख मुस्लिम वोटर हैं जबकि कुर्मी छह लाख, कश्यप डेढ़ लाख, मौर्य डेढ़ लाख व वैश्य पौने दो लाख बाक़ी अन्य वर्गो के मतदाता हैं। 7 लाख मुस्लिम वोटरों को देख कर मौलाना नें एक बेहतरीन सात उलेमाओं का मंच सजाया जिसमें उन्होंने अगल -बगल बैठे मौलवियों को भी एक ही पहाड़ा रट्टू तोते की तरह पढ़ाया कि नोटा को वोट करें। फिर धर्म का रोना शुरू किया हमारी मस्जिद, हमारा मदरसा ध्वस्त किया। ऐसी किसी पार्टी को वोट न करें अपना वोट नोटा को कर गड्डे में डालें। मौलाना के बाद हम सोच रहे थे दो दिन बीत गए उनकी बात का किसी नें कटाक्ष नहीं किया। लेकिन ऐसा कभी हुआ हैं एक नें ज़ैसा कहा हों और दूसरे नें उसकी मुखाल्फ़त न की हों। दूसरे नें पहले वाले उलेमा की काट कर कहा अब बारी आ गईं हैं कौम को एक जुट होनें की इनके कहने पर हरगिज़ न जाए यह कौम को बेच रहे हैं। तों मियां आप क्या कौम को खरीद रहे हैं। सब के सब एक ही थाली के चट्टे -बट्टे हैं। लेकिन अब की बार बरेली के बड़े पीर पूरी तरह से खामोश हैं उनको अपना ख़ुद का वर्चस्व बचाना हैं। लेकिन कह नही सकते रातो -रात चुनाव के वक्त उनको कौन सी बात याद आ जाए और वों भी फतवा जारी कर मुस्लिमों से किसी पार्टी का झंडा उठाकर वोट करने को लेकर अपील कर दें। फिलहाल अभी तों मौलाना के विरोध में उतरी एक ऑर्गेनाइजेशन की महिला नें मौलाना को दीन का पाठ पढ़ाया हैं। लेकिन वों भी भूल गईं जिस दीन का हवाला वों दें रही हैं उस आईने में वों कहा तक सही हैं मेकअप कर के दूसरों को हिदायत देने निकली मुस्लिम महिला नें अपने मफ़ात के लिये रसूल की हदीस बयान की। रसूल की बाक़ी हदीसों को वों भूल गईं जो महिलाओ के लिये और भी थी।

वह क्या राह दिखाएंगे जो ख़ुद भटके हुए हैं...

इस्लामिक जानकार की मानें तों मौलाना नें जो राजनीति का मंच सजाया उसमे मौलाना को छोड़कर कोई भी डिग्री धारक मौलवी नहीं था सब फितना -फसाद फैलाने वाले थे जो मौलाना के कहने पर मौलवी का रूप धारण कर पहुंचे थे। रही बात पार्टियों की तों राजनीतिक दल उनसे वोट विकास के नाम पर नहीं मांगती बल्कि उनको मज़हब के नाम पर भड़काया जाता है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों में मुस्लिम समुदाय की साक्षरता की दर 68.5 दर्ज की गई।ये भारत के बाक़ी समुदायों के मुक़ाबले सबसे कम हैं। आखिर उन रहनुमाओं को यह सब क्यों नही दिखता मुस्लिम समुदाय लगातार पिछड़ रहा हैं। शिक्षा हों या फिर नौकरी हर क्षेत्र में मुसलमान पीछे है। मीडिया रिपोर्ट में 6-14 साल की उम्र वाले 25 फ़ीसदी मुसलमान बच्चों ने तो स्कूल का मुंह नहीं देखा। जो स्कूल गए भी वो शुरुआत में ही पढ़ाई छोड़ गए। देश के नामी कॉलेजों में केवल 2 फ़ीसदी मुस्लिम पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए दाख़िला लेते हैं। ऐसा ही हाल नौकरी के क्षेत्र में है। ज़्यादातर मुस्लिम युवा सऊदी में जाकर नौकरी कर रहे वही आला दर्जे की सरकारी सेवाओं में मुसलमानों की मौजूदगी न के बराबर है।

केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा मदरसा शिक्षकों का मानदेय खत्म हो गया इस फैसले के बाद करीब 25000 मदरसा शिक्षक बेरोजगार हो गए। उस समय मुस्लिम रहनुमा कहें जाने वाले मौलवियों के पास फुर्सत नही थी ये क़ौम के हित की बात थोड़ी थी ये तों शिक्षकों की ख़ुद की समस्या थी।

मुफ़्ती सलमान अज़हरी को गिरफ्तार किया गया रहनुमा कहें जाने वाले लोग बिरादरी वाद का फितना फैलाकर अपनी रोटियां सेकतें रहे। अमा हमारा मसला थोड़ी सलमान अज़हरी को गिरफ्तार उनकी अपनी वजह से किया गया हैं हमसे क्या मतलब हम क्यों आगे आए। हालांकि सलमान अज़हरी जमानत मिलने के बावजूद जेल में बंद हैं क्योंकि गुजरात पुलिस ने उन्हें फिर से पासा एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया है।

ऐसे कई बेगुनाह मुसलमान जेल में आज भी बंद हैं जिन्हे आस हैं कि कोई उनकी उस पीड़ा को कोई समझेगा और उनकी पैरवी करने के लिये आगे आएगा। लेकिन क़ौम के ठेकेदारों को राजनीति से फुर्सत हों तब वो क़ौम के हित में सोचेंगे।

हिन्दुस्थान समाचार/देश दीपक गंगवार/बृजनंदन