साम्प्रदायिकता आज देश की समस्या बन चुकी : प्रो. संतोष भदौरिया

 


- संगोष्ठी ‘भारतीय संघीय लोकतंत्र में निर्वाचन : मुद्दे और चुनौतियां’ समापन

प्रयागराज, 16 दिसम्बर (हि.स.)। आज जातिवाद सबसे बड़ा कारण बन हमारे बीच खड़ा है। राजनीति पर सवार होकर आई साम्प्रदायिकता आज देश की समस्या बन चुकी है। हमारा भूगोल और विविधता यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है। हम विविध धर्मों, भाषाओं, खानपान, रहन सहन और विश्वास करने वाले लोकतंत्र में हैं।

यह बातें इलाहाबाद विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के प्रो. संतोष सिंह भदौरिया ने शनिवार को ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज में राजनीति विज्ञान में आईसीएसएसआर नई दिल्ली द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारतीय संघीय लोकतंत्र में निर्वाचन : मुद्दे और चुनौतियां’ के समापन सत्र में सम्बोधित करते हुए कही।

उन्होंने कहा कि जब हम संघीय लोकतंत्र की बात करते हैं तो हमें याद करना होगा कि इस समय हम लोग अमृतकाल में जी रहे हैं। बहुत कुछ बदला है और बहुत कुछ बदलना बाकी है। हमने लोकतंत्र के स्वप्न बहुत देखे, हमारे देश के तमाम राजनेताओं ने भी देखे। हम उम्मीद में जीने वाले एवं अंधकार को मिटा देने वाले समाज हैं। प्रो. भदौरिया ने कहा कि पार्टियों के बीच राजनीतिक संघर्ष लगातार बढ़ रहा है। गांधी आचरण की राजनीति करने वाले व्यक्ति थे। उन्हें संसदीय व्यवस्था में बहुत विश्वास नहीं था। दलित स्त्री, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग और हाशिये के समाज की पीड़ा को लोकतंत्र के बहाने व्यक्त किया और कहा कि इन हाशिये के लोगों की आवाज जब दबा दी जायेगी वहां सच्चा लोकतंत्र नहीं बन सकता। राजनीति का जो जटिल चरित्र है वह उसमें बहुत बड़ा स्वार्थ निहित है। चुनाव प्रचार की हमने आक्रामक शैली देखी है। इसे संयमित और नियंत्रित करना होगा। वर्ण और भेदभाव के तरीके समाप्त करना होगा।

वक्ता प्रो.शशिकान्त पाण्डेय, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ राजनीति विज्ञान ने कहा कि लोकतंत्र हमारे पास एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है। कहीं भी विश्व में लोकतंत्र की यात्रा सीधी और सपाट नहीं रहती। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र विचार है, विमर्श है, आस्था और विश्वास है, प्रेम और भाईचारा है। भारत में जो लोकतंत्र 1952 में तैयार हुआ उसकी पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार हो चुकी थी। उन्होंने कहा कि अन्य देशों की अपेक्षा भारतीय लोकतंत्र बहुत बड़ा है। यह भारत अपने आप में एक बड़ा प्रयोग कर रहा है।

अध्यक्षता करते हुए अर्थशास्त्र विभाग के संयोजक डॉ अजय कुमार श्रीवास्तव ने लोकतंत्र में होने वाले तमाम चुनौतियों को सामने रखा और अर्थव्यवस्था और राजनीति के बीच होने वाले विविध प्रसंगों को रेखांकित किया। प्रो. मनोज कुमार दूबे ने बताया कि कार्यक्रम की संक्षिप्तिका डॉ विजय तिवारी ने प्रस्तुत किया। संचालन डॉ अखिलेश त्रिपाठी और धन्यवाद ज्ञापन राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक डॉ अखिलेश पाल ने किया।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/मोहित