चुनौतियों से पार पाने के लिए वर्कफोर्स को स्किल्ड बनाने की जरूरत:अनिल किंजवड़ेकर
—भारतीय पेशेवरों के लिए चुनौतियां और अवसर' विषयक सत्र में शामिल हुए तमिलनाडु के पेशेवर
वाराणसी,22 दिसम्बर (हि.स.)। काशी-तमिल संगमम—2 के छठवें दिन शुक्रवार को नमोघाट पर द्वितीय अकादमिक सत्र का आयोजन हुआ। भारतीय पेशेवरों के लिए चुनौतियां और अवसर' विषयक सत्र में तमिलनाडु से आए पेशेवरों के दल ने वक्ताओं से सवाल पूछे। तमिल प्रोफेशनल और काशी प्रोफेशनल ने मिलकर ने सवालों को जवाब दिया। तमिल प्रोफेशनल दल में शामिल एक प्रतिनिधि ने कहा कि भारत सरकार की कई योजनाएं तमिलनाडु तक नहीं पहुंच पाती। इससे हम लोग योजनाओं की खासियत नहीं जान पाते। सरकार से यही उम्मीद है कि हम तक सारी केंद्रीय योजनाओं की पहुंच हो। इस सत्र में बतौर मुख्य अतिथि आर्किटेक्ट अनिल किंजवड़ेकर ने कहा कि भारत में काम करने वाली तकनीक जितनी अपडेटेड रहेगी, उतनी ही चीजें हमारे देश के विकास में सहयोग देंगी। किंजवडेकर ने राष्ट्रीय निर्माण में पेशेवरों की भूमिका पर बात की। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए अपडेट किए जाने वाले प्रोफेशनल स्किल्स और कार्यदक्षता को बताया। उन्होंने उल्लेख किया कि डाईमेनिक मार्केट टेंडेंसी और डिजिटल बाजार सामने आ रहे हैं और हमें चुनौतियों से पार पाने के लिए वर्कफोर्स को स्किल्ड बनाने की जरूरत है। इसमें डिजिटल गैप अमीरों और गरीबों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। व्यवस्थित तरीकों और वर्कफोर्स में महिलाओं को शामिल करने से चुनौतियां कम आएंगी। उन्होंने कहा कि भाषा वह है जिसे हर किसी को हर दिन सीखना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रत्येक पेशेवर के लिए अलग-अलग भाषाओं में काम करना एक बाधा है, लेकिन किसी को अपने पेशेवर कौशल के माध्यम से बोलने के लिए पर्याप्त रूप से उत्कृष्ट होना चाहिए। तमिलनाडु की कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. सेल्वी राधाकृष्ण ने काशी और शिव के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव को बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उत्तर और दक्षिण को बांटा नहीं जा सकता, बल्कि हमें शिव का ध्यान रखकर एकजुटता दिखानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगला काशी तमिल संगमम उनकी संस्कृति और परंपरा को प्रदर्शित करने के लिए पूरी तरह से तमिल में आयोजित किया जाना चाहिए। वाराणसी डॉ. कमलाकर ने कहा कि भाषा वह है जिसे हर किसी को हर दिन सीखना चाहिए। उन्होंने चिकित्सा में भाषा के महत्व को बताया।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक उत्तर भारतीय को एक दक्षिण भारतीय भाषा सीखनी चाहिए और इसी प्रकार दक्षिण भारतीयों को उत्तर भारतीय भाषा सीखनी चाहिए। अकादमिक सत्रों का समन्वयन पीजे सौंदर्यराजन ने किया।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/सियाराम