दार्शनिक चिंतन का भेद आर्यों के अस्तित्व से बड़ा नहीं हो सकता: डॉ. मोक्षराज

 




वाराणसी,16 जनवरी(हि.स.)। अमेरिका स्थित भारतीय राजदूतावास में प्रथम सांस्कृतिक राजनयिक एवं भारतीय संस्कृति शिक्षक रहे योगगुरु डॉ. मोक्षराज ने कहा कि दार्शनिक चिंतन का भेद आर्यों के अस्तित्व से बड़ा नहीं हो सकता । हमें एकजुट होकर अपने पूर्वजों के इतिहास व गौरव की रक्षा करनी होगी । यह काल आपसी संघर्ष नहीं बल्कि सहयोग का है । दो दिवसीय काशी प्रवास पर आए योगगुरु डॉ. मोक्षराज ने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन के बाद एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल से उक्त बातें कही। काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी इमारत को देखकर डॉ मोक्षराज ने कहा कि समुदाय विशेष के लोग यदि इस स्थल को विश्वनाथ मंदिर, किसी गुरुकुल या केंद्र या प्रांत की सरकार को सहर्ष सौंप दें तो उनके प्रति भारतीयों का भरोसा बढ़ेगा । मूलतः भारत भारतीयों का ही है, उन्हें उनके पूर्वजों की विरासत पाने का स्वयंसिद्ध अधिकार है।

उन्होंने कहा कि हिंदू, जैन, बौद्ध व सिख आदि भारतीय मूल की सभी धार्मिक एवं दार्शनिक शाखाओं के मूल में आर्य संस्कृति अर्थात् वैदिक विचारधारा ही विद्यमान है । इनके सभी धर्मग्रंथों एवं पंथ पुस्तकों में आर्य शब्द का ही प्रयोग मिलता है । अत: इन सभी आर्यों को विधर्मियों के षड्यंत्रों से सावधान रहकर एकजुट होना होगा तथा हमें एक नये युग की शुरुआत करनी चाहिए ।

वाराणसी प्रवास में डॉ. मोक्षराज ने बनारस में रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास स्मारक, आनंद बाग स्थित महर्षि दयानंद शास्त्रार्थ स्थली, महाश्मशान हरिश्चंद्रघाट सहित सभी चौरासी घाटों का अवलोकन कर मोदी सरकार एवं योगी सरकार के ऐतिहासिक विकास कार्यों की जमकर सराहना की । डॉ. मोक्षराज की इस सांस्कृतिक यात्रा में उनकी धर्मपत्नी सुनीता चौधरी, अमेरिका के वर्जीनिया से मधुसूदन ठक्कर, लॉस एंजिल से सुरेंद्रकांत मानेक, मुम्बई से उदय सेठी, कांति सेठी एवं गुजरात से मौलिक अमलानी आदि भी साथ आए थे।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/सियाराम