सामाजिक चेतना, आर्थिक उपागम व सुरक्षा के केंद्र बिंदु हैं मंदिर : प्रो. आनंद

 


- संस्कृत न जानने वालों ने किया अर्थ का अनर्थ : डॉ विवेक कौशिक

लखनऊ, 03 फरवरी (हि.स.)। श्री गुरू वशिष्ठ न्यास की ओर से शनिवार को आयोजित दो दिवसीय श्रीराम दरबार कार्यक्रम में सनातन संस्कृति पर चर्चा के साथ विद्वानों ने ज्ञान की गंगा बहाई। पहला दिन चार सत्रों में चला।

कार्यक्रम के प्रथम सत्र भारतीय यत्र संतति में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आनंद रंगनाथन ने कहा कि भारत 1947 में नहीं बना, बल्कि यह हजारों वर्षों पहले ही बनी सांस्कृतिक और भौगोलिक संरचना है। इसका वर्णन वेदों और पुराणों में भी मिलता है। भारत के मंदिर देश को जोड़ते हैं। यह सामाजिक चेतना, आर्थिक उपागम व सुरक्षा के केंद्र बिंदु हैं। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में न्यास के अध्यक्ष प्रमोद मिश्र ने न्यास के बारे में जानकारी दी।

दूसरे सत्र यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता सत्र का संचालन टीवी प्रजेंटर ऋचा अनिरुद्ध ने किया। सत्र में बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार और विचारक स्वाति गोयल शर्मा ने कहा कि फिल्मों ने समाज का काफी नुकसान किया है और महिलाओं को अपमानित किया है। समाज में कुरीतियों या समाज के ही धर्म से भटक जाने के कारण दिक्कतें आई। संघ विचारक और संस्कृत विद्वान डॉ. विवेक कौशिक ने कहा कि नासमझी में या जान-बूझकर मनु स्मृति, पुराणों और वेदों में स्त्रियों की दशा को दयनीय बताया गया है। यह संस्कृत को ठीक से न जानने का कारण है। केवल शाब्दिक अर्थ निकालकर अर्थ का अनर्थ किया गया। जबकि वास्तव में ऐसा नहीं था।

राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन ने कहा कि मीडिया पर सेंसरशिप 2014 के पहले ज्यादा थी। इमरजेंसी, अयोध्या में विवादित ढांचे के ध्वंस से पहले के समय भी इस सेंसरशिप को सबने देखा है। श्री गुरु वशिष्ठ न्यास के अध्यक्ष प्रमोद मिश्रा ने कहा कि वीर सावरकर को भुलाया गया, लेकिन विरोध करने वालों को इंदिरा गांधी को याद रखना चाहिए जिन्होंने वीर सावरकर की देशभक्ति की प्रशंसा की थी। बौद्धिक विलासियों ने सावरकर के योगदान को जितना भी झुठलाने की कोशिश की वह उतनी ही प्रखरता से लोगों के बीच प्रचारित हुआ।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/राजेश