स्वर्णप्राशन संस्कार से बच्चों में बढ़ती है प्रतिरोधक क्षमता : आयुर्वेदाचार्य
कानपुर, 29 जनवरी (हि.स.)। भारतीय संस्कृति में 16 संस्कार प्रचलित हैं जिनमें स्वर्णप्राशन संस्कार का अलग ही महत्व है। यह संस्कार बच्चों को जहां शारीरिक और मानसिक रुप से विकसित करने में सहायक है तो वहीं बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। यह बातें सोमवार को आयुर्वेदाचार्य डा. वंदना पाठक ने कही।
छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के स्कूल आफ हेल्थ साइंसेस अंतर्गत संचालित स्वास्थ्य केन्द्र, राजकीय बाल गृह, कानपुर और आरोग्य क्लीनिक, लाल बंगले में निशुल्क स्वर्ण प्राशन कार्यक्रम संपन्न हुआ, जिसमें लगभग 110 बच्चों ने भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डा0 वंदना पाठक, डॉ निरंकार गोयल, हरीश चन्द्र शर्मा, मोहित और उषा आदि ने दीप प्रज्वलन व धन्वन्तरि पूजन, आरती के साथ किया।
स्वर्णप्राशन के बारे में वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डा0 वंदना पाठक ने बताया कि आयुर्वेद की यह विधा बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी कारगर है।
संस्कार की महत्ता बताते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में प्रचलित 16 संस्कारों में से एक संस्कार है। यह बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से विकसित करने में विशेष रूप से सहायक है। जिन बच्चों में यह संस्कार नियमित रूप से होता है, उनमें मौसम और वातावरणीय प्रभाव के कारण होने वाली समस्याएं अन्य बच्चों की अपेक्षा कम देखी गयी हैं। स्वर्णप्राशन में प्रयुक्त होने वाली औषधि स्वर्ण भस्म, वच, गिलोय, ब्राह्मी, गौघृत, मधु आदि द्रव्यों के सम्मिश्रण से बनाया जाता है।
इस अवसर पर उपस्थित अभिभावकों और लोगों को ऋतु के अनुसार आहार-विहार और बच्चों में होने वाले रोगों पर विशेष रूप से ध्यान देने का परामर्श दिया।
हिन्दुस्थान समाचार/अजय