देवोत्थान एकादशी पर स्वामी अड़गड़ानंद बोले, परमात्मा में समाहित हो जाना ही एकादशी है
मीरजापुर, 23 नवम्बर (हि.स.)। देवोत्थान एकादशी पर गुरुवार को परमहंस स्वामी अड़गड़ानंद महाराज के दर्शन को उनके अनुयायियों का रेला उमड़ पड़ा। सक्तेशगढ़ स्थित परमहंस आश्रम पहुंचे भक्तों ने गुरु महाराज का आशीर्वाद लिया। वहीं सत्संग हाल में महाराजश्री ने श्रद्धालुओं के अपार समूह को अपने वचनामृत से निहाल किया।
परमहंस अड़गड़ानंद महाराज ने प्रवचन के दौरान कहा कि जीव की अनंत दशाएं हैं। जब जीव को भक्तिरूपी एकदशा मिल जाए, परमात्मा का देवत्व प्रवाहित हो जाए, उसका बोध हो जाए और वह परमात्मा में ही समाहित हो जाए, यही एकादशी का रूप है। स्वामी अड़गड़ानंद ने कहा कि भक्ति का अर्थ है भगवान से जुड़ना। भक्ति से भगवान का दर्शन, स्पर्श और विलय प्राप्त होने के बाद न जनम होगा न मृत्यु। एक दशा मिल जाएगी, फिर उस दशा में कभी परिवर्तन न आएगा, यही शुद्ध एकादशी है।
उन्होंने आगे कहा कि धर्म वह सीढ़ी है जिस पर चढ़कर इस एकरस एकदशा को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि लोगों को अपने धर्मशास्त्र से जुड़ना चाहिए। गीता रूपी धर्मशास्त्र स्वयं परमात्मा ने ही कुरुक्षेत्र में प्रसारित किया था। अड़गड़ानंद महराज ने गीता का अध्ययन करने और उसके बताए मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करने की सलाह दी। वरिष्ठ संत नारद महाराज, लाले बाबा, सोहम बाबा, तानसेन महाराज, आशीष बाबा आदि व्यवस्था में लगे रहे। वहीं देर शाम तक श्रद्धालुओं के आने-जाने का क्रम लगातार चलता रहा।
हिन्दुस्थान समाचार/गिरजा शंकर/बृजनंदन