‘चुनावी सत्ता हस्तांरण में दिखती है भारतीय संविधान की ताकत’
लखनऊ, 26 नवंबर (हि.स.)। भारत जब आजाद हुआ तो उसी के साथ कुछ आगे और कुछ
पीछे एशिया और अफ्रीका के लगभग 50 देश आजाद हुए लेकिन उन
सारे देशों में कभी ने कभी सैन्य शासन या तख्तापलट का दौर चला। लेकिन भारत एक
मात्र ऐसा देश है जहां 18 लोकसभा के चुनाव हो चुके
हैं और 100 से अधिक विधानसभा के
चुनाव हो चुके हैं, हर बार यह चुनाव का जो सत्ता हस्तांतरण है बहुत ही शांतिपूर्ण
ढंग से हुआ है।
शिक्षाविद व संविधान विशेषज्ञ डॉ.
पीएम त्रिपाठी ने हिन्दुस्थान समाचार से बात करते हुए कहा कि यदि भारतीय संविधान
की चुनौतियों और विफलताओं पर विचार करें तो एक समय 1975 का आता है
जब आंतरिक अशांति के आधार पर इंदिरा गांधी की सरकार ने राष्ट्रीय आपात की घोषणा की।
हालांकि इसके पहले भी दो बार राष्ट्रीय आपात लग चुका था, 1962 में भारत चीन युद्ध के कारण और 1971 में भारत-पाक युद्ध के कारण। वह
आक्रमण और युद्ध के आधार पर लगे थे। इसलिए उसका राजनीतिक विरोध नहीं हुआ। 1975 का आपातकाल आंतरिक अशांति के आधार पर लगाया गया था, इसका भारी राजनीतिक
विरोध हुआ। देश में धरना प्रदर्शन हुए और लोगों के मौलिक अधिकार तक स्थगित कर दिए
गए। वह एक अध्याय छोड़ दें तो भारतीय संविधान लगातार उन्नतशील रहा है।
पीएम त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय
संविधान की जड़ें गहरी होती गई हैं। हां इतना आवश्य कहा जा सकता है कि भारत में
संविधान तो है लेकिन संविधानवाद का अभाव है। यानी कि संविधान में आस्था, संविधान
के मूल्यों में विश्वास, संविधान का अनुपालन और इसलिए यह संविधानवाद का अभाव है
क्योंकि देश में क्षेत्रवाद, भाषावाद, धर्म संप्रदाय के झगड़े, गरीबी, गैर बराबरी
असमानता जब तक की समस्याएं दूर नहीं होंगी तब तक हमारा संविधान पूर्णता सफल
संविधान की श्रेणी में नहीं आ सकता। कोई भी देश कोई भी समाज अपने आप में समग्र और
पूर्ण नहीं होता। सब में कुछ न कुछ त्रुटियां और दोष, विसंगतिया अवश्य होती हैं
लेकिन उनको न्यून करने का प्रयास अवश्य होना चाहिए।
मोदी सरकार ने संविधान दिवस मनाने
का लिया निर्णय
उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत करते हुए बताया कि प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी की सरकार ने साल 2015 में 26 नवंबर को संविधान दिवस
मनाए जाने का निर्णय लिया। इसी दिन 26 नवंबर 1949 को
भारत की संविधान सभा ने हमारा संविधान स्वीकार और अंगीकृत किया था। हमारे संविधान
को बनाने के लिए संविधान सभा के सदस्यों की कई सारी महत्वपूर्ण समितियां बनाई गई
थीं। उसमें सबसे महत्वपूर्ण समिति थी प्रारूप समिति, संघ सरकार के शक्तियों पर
समिति, राज्य सरकार के साथ शक्तियों पर समिति, सदन समिति। इस तरह से लगभग 22 समितियां
थी। इस संविधान को बनाने में लगभग 2 वर्ष 11 महीने
18 दिन लगे और तत्कालीन
मुद्रा मूल्य में 64 लख रुपये का खर्च इस पर
आया।
60 से अधिक देशों के
संविधान का हमारे संविधान निर्माता ने अध्ययन किया और बहुत सारे विषय और प्रावधान
दुनिया के अलग-अलग देशों के संविधान से लिए गए, जहां तक हमारे संविधान की उपलब्धियों
का प्रश्न है, तो हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि भारत जब आजाद हुआ तो उसी के
साथ कुछ आगे और कुछ पीछे एशिया और अफ्रीका के लगभग 50 देश आजाद हुए लेकिन उन
सारे देशों में कभी ने कभी सैन्य शासन या तख्तापलट का दौर चला। लेकिन भारत एक
मात्र ऐसा देश है जहां 18 लोकसभा के चुनाव हो चुके
हैं और 100 से अधिक विधानसभा के
चुनाव हो चुके हैं और हर बार यह चुनाव का जो सत्ता हस्तांतरण है बहुत ही
शांतिपूर्ण ढंग से हुआ है।
दूसरी
उपलब्धि की बात करें तो हमने स्वतंत्रता के बाद जब संविधान लागू किया तो सबसे पहले
जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार लागू किया। यह बहुत आसान काम नहीं था क्योंकि देश
में जमीदार एक बहुत शक्तिशाली वर्ग था। उसके पास धनबल, बाहुबल और हर तरीके की
शक्ति थी। उनसे जमीन लेकर के लाखों करोड़ों भूमिहीन वर्ग के लोगों को बांटी गई। एक
भी रक्त रंजित की घटना नहीं घटी। खून का एक बूंद नहीं बहा।
एक और महत्वपूर्ण घटना थी कि
भारत आजादी के समय लगभग 600 रियासतों में बटा था
जिसमें 500 से ज्यादा रियासतें
भारतीय क्षेत्र में आईं। बंटवारे के बाद बाकी जो थी वह पाकिस्तान में चली गईं और 500 से
अधिक देश रियासतों का विलय जिस तरीके से किया गया, जो सरदार पटेल के अथक प्रयास और
उनके पुरुषार्थ का परिणाम था, वैसे इतिहास में दूसरी मिसाल नहीं मिलती है।
तीसरी
सबसे बड़ी उपलब्ध यह रही की 1917 में रूसकी
बोल्शेविक क्रांति के बाद जो कम्युनिस्ट विचारधारा का बोलबाला पूरे विश्व में बढ़ा
तो भारत भी उससे प्रभावित हुआ। हमारे पहले प्रधानमंत्री से पंडित नेहरू ने अपने
देश में समाजवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया और मिश्रित अर्थव्यवस्था के रूप में
हमारी अर्थव्यवस्था के दशक तक चली। जहां पर सरकार ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्र पर
नियंत्रण रखा और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से योजना आयोग के माध्यम से देश के
विकास के कार्यक्रम लागू किये। बड़ी संख्या में भारत में गरीबी उन्मूलन के
कार्यक्रम चलाए गए। महिलाओं को अधिकार दिए गए। बच्चों की सुरक्षा और पोषण की
व्यवस्था की गई। शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार बनाया गया। संपत्ति के मौलिक
अधिकार को संवैधानिक और विधिक अधिकार घोषित कर दिया गया। और इस प्रकार से हम देखते
हैं कि भारतीय संविधान लागू होने के बाद एक लंबी सूची है जो हम उपलब्धियां के रूप
में देख पाते हैं।
पीएम त्रिपाठी ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा कि इतनी सारी रियासतों का भारत
में एकीकरण करना, भारत को एक राष्ट्र राज्य के रूप में बांधना हमारे संविधान की
सफलता रही। हमें अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़े वर्ग या अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों
को आरक्षण देखकर उनके, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक सशक्तिकरण के साथ-साथ सरकार और
सरकारी सेवाओं में जन भागीदारी और प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया।
संविधान की चुनौतियों के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि चुनौतियों की बात करें
तो अभी भी भारत में बहुत सारी चुनौतियां हैं। जैसे कि क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद,
भाषावाद, नक्सलवाद, धार्मिक संप्रदाय और जाति को लेकर जिस तरीके के संघर्ष चल रहे
हैं, वह भारतीय संविधान के लिए उचित नहीं है। अभी भी हमें निर्धनता, कुपोषण,
भुखमरी और इस प्रकार की समस्याओं से निजात पाना है। भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ी समस्या
है। राजनीतिक भ्रष्टाचार हो या प्रशासनिक भ्रष्टाचार हो, सरकारी सेवाओं का
भ्रष्टाचार हो या अन्य क्षेत्रों में हो, यह एक बहुत बड़ी समस्या है। भारतीय तंत्र
में जिसको दूर करने की आवश्यकता है। इस पर संविधान सफल नहीं रहा। हमने असफल रहे तो
यह हमारी गलती है, संविधान की नहीं क्योंकि भ्रष्टाचार दूर करने के लिए जो सरकारी दृष्टि
चाहिए, जो प्रशासनिक सत्यनिष्ठा चाहिए, उसका अभाव हमारे देश को प्रशासनिक और
राजनीतिक नेतृत्व प्रदान करने वाले लोगों में दिखा। इस तरह से भारत में संविधान तो
लागू हुआ संविधानवाद नहीं।
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हिन्दुस्थान समाचार / दिलीप शुक्ला