प्राण प्रतिष्ठा में खलल हैं विरोधियों के बयान : राकेश त्रिपाठी
अयोध्या, 21 जनवरी (हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आज प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर सवाल उठाने वालों पर जमकर वार किया। उन्होंने 'हिन्दुस्थान समाचार' से बातचीत की। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जो लोग श्रीरामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर सवाल उठा रहे हैं वे त्रेतायुग की आसुरी शक्तियों के समान हैं। वे राक्षसों की तरह ही हवनकुंड में अस्थियों की जगह अपने बयानों की अस्थियां डाल खलल डालने में लगे हैं, लेकिन जन मन सबकुछ समझ और देख सुन रहा है।
उन्होंने कहा कि कुछ लोग ऐसे हैं जो इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर सवाल उठा रहे हैं। भगवान को कैसे कोई ला सकता है, जैसा सवाल कर रहे हैं। उन्हें यह समझाना चाहिए कि भारतीय जनमानस जब अपने घर में गणपति को स्थापित करता है तब बहुत उल्लासित भाव से यह बताता है कि हमारे घर में गणपति विराज रहे हैं। जब नवरात्रि में माता दुर्गा की कलश स्थापना करता है, तब खुश होकर कहता है कि हमारे घर माता पधारी हैं। वह हम कभी श्याम को झूला झुलाता है, तो राम को भोग भी लगाता है। लेकिन जो हमें सबकुछ देता है, जिसकी महिमा से हमें भोजन मिलता है; भला हम उसका भोग कैसे लगा सकते हैं? लेकिन यह हमारी भक्ति भावना है। ऐसे ही अब हम श्रीरामलला को प्राण प्रतिष्ठित करने जा रहे हैं।
अपूर्ण मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के सवाल पर भी श्री त्रिपाठी खुलकर बोले। उन्होंने कहा कि इस चराचर जगत में कुछ भी पूर्ण नहीं है। ईश्वर के अतिरिक्त कुछ भी पूर्ण नहीं है। 1951 में जब सोमनाथ का मंदिर बना तब वह भी पूर्ण नहीं था, लेकिन नेहरू मंत्रिमंडल ने उसके पुनरुद्धार पर मुहर लगाई और राष्ट्रपति ने प्राण प्रतिष्ठा करवाई। 14 वर्ष बाद यह मंदिर पूर्ण हुआ था। उन्होंने संविधान के अपूर्ण होने की बात पर जोर देते हुए कहा कि बार-बार होने वाले संशोधन इसके अपूर्ण होने की गवाही दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे सवाल, व्यर्थ में किया जाने वाला कुतर्क है। किसी भी कार्य में परिष्कार की संभावनाएं रहती हैं।
उन्होंने कहा कि 500 वर्षों बाद रामलला अपने दिव्य और भव्य मंदिर में पधार रहे हैं। यह स्वप्न आज साकार होने जैसा है। जिस तरह से रामचरित मानस में भगवान के आने पर उत्साह और उल्लास था ठीक उसी प्रकार का उल्लास वर्तमान में बना है। पूरी सृष्टि पुलकित है। मीठे पकावन बनाये जा रहे हैं। घी के दीपक भी जल रहे हैं। आज वही उत्साह, उल्लास और खुशी दिख रही है। सारे देश के मंदिर सजाये गये हैं। जगह-जगह भंडारे चल रहे हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/डॉ आमोदकांत/आकाश