शारदीय नवरात्र : छठे दिन उदारमना कात्यायनी के दरबार में लगा श्रद्धालुओं का तांता
—दरबार में ''सांचे दरबार'' का जयकारा गूंज रहा, सुरक्षा के कड़े इंतेजाम
वाराणसी, 08 अक्टूबर (हि.स.)। शारदीय नवरात्र में बाबा विश्वनाथ की नगरी आदिशक्ति की आराधना में लीन है। चहुंओर ''सांचे दरबार'' का जयकारा गूंज रहा है। देवी मंदिरों से लगायत घरों में गुग्गुल, धूप, अगरबत्ती, कपूर, लोबान के धुएं से माहौल आध्यात्मिक हो गया है। नवरात्र के छठवें दिन मंगलवार को श्रद्धालुओं ने परम्परानुसार आदि शक्ति केे कात्यायनी स्वरूप के दरबार में हाजिरी लगाई।
सिंधियाघाट स्थित देवी के मंदिर में श्रद्धालुओं ने परिवार में वंश वृद्धि, सुख चैन के लिए आदिशक्ति से गुहार लगाई। तंग गलियों के रास्ते श्रद्धालु मंदिर परिसर में अलसुबह से ही पहुंचने लगे थे। दरबार में गूंजती घंटियों की रुनझुन आवाज और रह-रहकर गूंजता जयकारा-''सांचे दरबार की जय से पूरा वातावरण देवीमय नजर आ रहा था। जगदम्बा के भव्य स्वरूप की अलौकिक आभा निरख श्रद्धालु नर नारी निहाल हो जा रहे थे। दर्शन पूजन का क्रम भोर से पूरे दिन चलता रहा। छठवें दिन ही नगर के दुर्गाकुण्ड स्थित कुष्माण्डा देवी, चौसट्टीघाट स्थित चौसट्ठी देवी, मां महिषासुर मर्दिनी मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित मां अन्नपूर्णा मंदिर, संकठा मंदिर, माता कालरात्रि देवी मंदिर, तारा मंदिर, सिद्धेश्वरी मंदिर और कमच्छा स्थित कामाख्या मंदिर में भी श्रद्धालुओं ने मत्था टेका।
महिषासुर का वध करने वाली देवी मां कात्यायनी को महिषासुर मर्दनी के नाम से भी पुकारते हैं। मान्यता है कि मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। विवाह में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं। मां कात्यायनी का स्वभाव बेहद उदार है। वह भक्त की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। ऋषि कात्यायन माता के परम भक्त थे। इनकी तपस्या से खुश होकर ही देवी मां ने इनके घर पुत्री के रूप में होने का वरदान दिया। ऋषि कात्यायन की बेटी होने के कारण मां को कात्यायनी कहा जाता है। मां कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। एक हाथ में माता के खड्ग तो दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। दो अन्य हाथों से माता वर मुद्रा और अभय मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं। मां दुर्गा का यह स्वरूप अत्यंत दयालु और भक्तों की मन की सभी मुरादें पूरी करती हैं।
सातवें दिन कालरात्रि के दर्शन पूजन का विधान
शारदीय नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि के दर्शन पूजन का विधान है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र के कालिका गली में माता रानी का मंदिर है। आदिशक्ति का यह रूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है। माता कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही विकराल और रौद्र है। पुराणों के अनुसार माता के स्वरूप को चंड-मुंड और रक्तबीज सहित अनेकों राक्षसों का वध करने के लिए उत्पन्न किया गया था। देवी को कालरात्रि और काली के साथ चामुंडा के नाम से भी जाना जाता है। चंड-मुंड के संघार की वजह से मां के इस रूप को चामुंडा भी कहा जाता है। विकराल रूप में महाकाली की जीभ बाहर है। अंधेरे की तरह काला रंग, बाल खुले हुए गले में मुंडों की माला एक हाथ में खून से भरा हुआ पात्र, दूसरे में राक्षस का कटा सिर, हाथ में अस्त्र-शस्त्र। मान्यता है कि मां कालरात्रि का दर्शन करने मात्र से समस्त भय, बाधा दूर हो जाते है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी