विश्व इतिहास का अलौकिक एवं स्वर्णिम पृष्ठ है श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा : प्रांत कार्यवाह

 


वाराणसी,19 मार्च (हि.स.)। महाराष्ट्र के नागपुर स्थित रेशम बाग परिसर में पिछले दिनों आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया गया। प्रतिनिधि सभा में भाग लेने के बाद यहां काशी प्रांत के प्रांत कार्यवाह मुरली पाल ने पारित प्रस्ताव की जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि 22 जनवरी 2024 को श्रीरामजन्मभूमि पर श्रीरामलला के विग्रह की भव्य-दिव्य प्राण प्रतिष्ठा विश्व इतिहास का एक अलौकिक एवं स्वर्णिम पृष्ठ है। हिन्दू समाज के सैकड़ों वर्षों के सतत संघर्ष एवं बलिदान, पूज्य संतों और महापुरुषों के मार्गदर्शन में चले राष्ट्रव्यापी आंदोलन तथा समाज के विभिन्न घटकों के सामूहिक संकल्प के परिणामस्वरुप संघर्षकाल के एक दीर्घ अध्याय का सुखद समाधान हुआ। इस पवित्र दिवस को जीवन में साक्षात देखने के शुभ अवसर के पीछे शोधकर्ताओं, पुरातत्वविदों, विचारकों, विधिवेत्ताओं, संचार माध्यमों, बलिदानी कारसेवकों सहित आंदोलनरत समस्त हिन्दू समाज तथा शासन-प्रशासन का महत्त्वपूर्ण योगदान विशेष उल्लेखनीय है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में इस संघर्ष में जीवन अर्पण करनेवाले सभी हुतात्माओं के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित किया गया।

उन्होंने बताया कि श्रीराममन्दिर में अभिमंत्रित अक्षत वितरण अभियान में समाज के सभी वर्गों की सक्रिय सहभागिता रही। लाखों रामभक्तों ने सभी नगरों और अधिकांश गांवों में करोड़ों परिवारों से संपर्क किया। 22 जनवरी 2024 को भारत ही नहीं,अपितु सम्पूर्ण विश्व में अद्भुत आयोजन किये गए। गली-गली और गाँव-गाँव में स्वप्रेरणा से निकली शोभायात्राओं, घर-घर में आयोजित दीपोत्सवों तथा लहराती भगवा पताकाओं और मंदिरों-धर्मस्थलों में हुए संकीर्तनों आदि के आयोजनों ने समाज में एक नवीन ऊर्जा का संचार किया।

उन्होंने बताया कि श्री अयोध्या धाम में प्राणप्रतिष्ठा के दिन देश के धार्मिक,राजनैतिक एवं समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष नेतृत्व तथा सभी मत-पंथ-सम्प्रदाय के संत वृंद की गरिमामयी उपस्थिति थी। यह इस बात की द्योतक है कि श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप समरस, सुगठित राष्ट्रजीवन खड़ा करने का वातावरण बन गया है। यह भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारंभ का संकेत भी है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जीवन हमें सामाजिक दायित्वों के प्रति प्रतिबद्ध रहते हुए समाज व राष्ट्र के लिए त्याग करने की प्रेरणा देता है। उनकी शासन पद्धति 'रामराज्य' के नाम से विश्व इतिहास में प्रतिष्ठित हुई, जिसके आदर्श सार्वभौमिक व सार्वकालिक हैं। जीवन मूल्यों का क्षरण, मानवीय संवेदनाओं में आई कमी, विस्तारवाद के कारण बढ़ती हिंसा व क्रूरता आदि चुनौतियों का सामना करने हेतु रामराज्य की संकल्पना सम्पूर्ण विश्व के लिए आज भी अनुकरणीय है।

उन्होंने बताया कि प्रतिनिधि सभा का यह सुविचारित मत है कि सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले, जिससे राममंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य सार्थक होगा। श्रीराम के जीवन में परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/राजेश