पराली : आसमान से है सरकार की नजर, किसान भी हो रहे जागरूक

 


लखनऊ, 09 नवम्बर (हि.स.)। पराली पर सरकार की नजर आसमान से है। पराली के नाम पर कोई किसानों को तंग न करे, इस पर भी सरकार ने ध्यान दिया है। इसके लिए सरकार सेटेलाइट से निगरानी कर उसके अनुसार अधिकारियों को आदेश और निर्देश दे रही है। इस बार अगस्त माह से ही उत्तर प्रदेश कृषि विभाग इसे रोकने की पूरी तैयारी में लग गया। इसका परिणाम भी देखने का मिला और प्रदेश में अवशिष्ट जलाने की घटनाएं बहुत कम सुनने को मिली। विभाग ने जगह-जगह जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए। किसानों में इससे भी जागरूकता आयी है।

धान की पराली का प्रबंधन बड़ी समस्या है, ज़्यादातर किसान इसे जला देते हैं। जिससे कई तरह के नुकसान होते हैं। पराली जलाने के नुकसान पराली जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है, जिसके कारण मिट्टी में मौजूद छोटे जीवाणु और केंचुआ आदि मर जाते हैं। नतीजतन, मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है।

कृषि विशेषज्ञ डा. मुनीष का कहना है कि एक टन पराली जलाने से वातावरण में 3 किलोग्राम पर्टिकुलेट मैटर, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड, 1460 किलोग्राम डाई ऑक्साइड,199 किलोग्राम राख, 2 किलोग्राम सल्फर डाईऑक्साइड निकलता है। इन गैसों के कारण सामान्य हवा की गुणवत्ता में कमी आती है, जिससे आँखों में जलन, त्वचा रोग और फेफड़ों की बीमारियों का ख़तरा रहता है। फसल अवशेषों को जलाने से उनके जड़, तना, पत्तियों में पाए जाने वाले लाभदायक पोषक तत्व भी जलकर ख़त्म हो जाते हैं।

उद्यान निदेशक अनीस श्रीवास्तव का कहना है कि प्रदेश में सीबीजी (संपीड़ित बायोगैस) प्लांट और दूसरे फसल अवशेष आधारित जैव ऊर्जा इकाइयों पर धान की पराली खरीदी जा रही है। किसान यहाँ पराली बेच सकते हैं। निराश्रित गौ आश्रय को पराली दान कर सकते हैं, जो सर्दियों में उनके चारे और बिछावन के काम आ जाती है। डिकंपोजर के इस्तेमाल से जल्द से जल्द फसल अवशेष सड़ा सकते हैं, जिससे मिट्टी में कार्बन अंश की वृद्धि होती है। कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई करने पर फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि यंत्र सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, क्रॉप रीपर, रीपर कम बाइंडर का इस्तेमाल करें।

हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/बृजनंदन