पोलियो से बचाव के लिए ओपीवी व आईपीवी बेहद सुरक्षित व प्रभावी: सीएमओ
कानपुर, 10 दिसम्बर (हि.स.)। जन्म से लेकर पांच वर्ष तक के बच्चों को पोलियो (लकवा) से बचाव के लिए ओरल पोलियो वायरस वैक्सीन (ओपीवी) व फ्रेक्शनल इनएक्टिव पोलियो वायरस वैक्सीन (एफआईपीवी) बेहद सुरक्षित और प्रभावी है। इसलिए बच्चों का पोलियो से बचाव बेहद जरूरी है।
यह बात रविवार को जिला महिला अस्पताल डफरिन में पोलियो उन्मूलन अभियान के शुभारम्भ करते हुए कानपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आलोक रंजन ने कही।
इस दौरान सीएमओ सहित जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ यूबी सिंह ने जन्म से लेकर पांच वर्ष तक के बच्चों को पोलियो ड्राप “दो बूंद ज़िन्दगी की” पिलाई। साथ ही बताया कि 11 दिसम्बर से पंद्रह दिसम्बर तक स्वास्थ्य विभाग की टीम घर घर जाकर दवा पिलाएंगी। छूटे हुए बच्चों को दवा पिलाने के लिए 17 दिसम्बर को बी टीम चलेगी। इस दौरान मुख्य चिकित्सा अधीक्षिका डॉ सीमा द्विवेदी, एसीएमओ डॉ सुबोध प्रकाश एवं सहयोगी संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूएनडीपी सहित यूनिसेफ के प्रतिनिधि व चिकित्सालय के अधिकारी, कर्मचारी मौजूद रहे।
शहरी क्षेत्र के 10 बूथों सहित ब्लॉक सरसौल के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का जिला प्रतिरक्षण अधिकारी द्वारा निरीक्षण किया गया। इसके साथ उन्होंने वहां मौजूद अभिभावकों से आह्वान किया कि अपने बच्चों को पोलियो बचाव की खुराक अवश्य पिलायें। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी ने बताया कि जनपद में जन्म से लेकर पांच वर्ष तक के करीब 5.96 लाख बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही बताया की अभियान के दौरान उपलब्ध कराई जाने वाली दवा कोल्ड चेन में रखी जाती है जो पूरी तरह से सुरक्षित और असरदार है। नजदीकी बूथ के बारे में जानकारी के लिए लोगों को आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से संपर्क करना चाहिए।
लाभार्थियों के बोल
अपनी 10 माह की बिटिया पोलियो की ड्रॉप पिलाने पहुंचे सुतरखाना मोहल्ला निवासी उत्तम द्विवेदी ने कहा कि आज हमने अपने बच्चे को पोलियो ड्रॉप की दवा पिलवाई। सभी लोगों को अपने बच्चों को पोलियो की दवा अवश्य पिलानी चाहिए। एक अन्य लाभार्थी रामकुमार ने कहा कि आज हमने अपने बच्चों को पोलियो की ड्राप पिलवाई और सभी प्रकार के टीके सरकारी टीकाकरण केंद्र से ही लगवाएं हैं। सभी लोगों को अपने बच्चों को पोलियो की दवा अवश्य पिलानी चाहिए और नियमित टीकाकरण भी समय अनुसार अवश्य कराना चाहिए।
02 अक्टूबर 1994 को शुरू हुआ था पल्स पोलियो प्रतिरक्षण कार्यक्रम
डॉ यूबी सिंह ने बताया कि वर्ष 1994 तक वैश्विक पल्स पोलियो के 60 फीसदी मामले भारत में थे। इसे देखते हुए 02 अक्टूबर 1994 को पल्स पोलियो प्रतिरक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया था। समुदाय की सहभागिता और जन जागरूकता से यह अभियान सफल रहा और भारत में पोलियो का आखिरी मामला 13 जनवरी 2011 को पश्चिमी बंगाल के हावड़ा में पाया गया। देश को 27 मार्च 2014 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पोलियो मुक्त का प्रमाणन भी दे दिया है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान समेत दुनिया के कुछ और देशों में पोलियो का वायरस सक्रिय तौर पर मौजूद है। यही वजह है कि अब भी शून्य से पांच वर्ष तक के बच्चों को इस वायरस से प्रतिरक्षित करने के लिए पल्स पोलियो की दवा पिलवाना अनिवार्य है। इस साल पड़ोसी देश में पल्स पोलियो के छह मामले सामने आए हैं जो भारत के लिए भी चिंताजनक हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/महमूद/आकाश