'संस्कृति संसद' के अन्तिम दिन संतों ने राजनीतिक दलों के लिए तय किया एजेंडा
संत बोले, लोकसभा चुनाव से पहले नौ सूत्रीय एजेंडे पर राजनीतिक दलों को अपना मंतव्य स्पष्ट करना होगा
वाराणसी, 05 नवम्बर (हि.स.)। धर्म नगरी काशी में आयोजित तीन दिवसीय 'संस्कृति संसद' के अन्तिम दिन रविवार को संतों ने राजनीतिक दलों के लिए लोकसभा चुनाव से पहले खास नौ सूत्रीय एजेंडा तय किया है। सिगरा स्थित रूद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में संतों ने कहा कि सनातन हिन्दू धर्मावलम्बियों की भारत के राजनीतिक दलों से बड़ी अपेक्षा है। लोकसभा चुनाव से पहले नौ सूत्रीय एजेंडे पर राजनीतिक दलों को अपना मंतव्य स्पष्ट करना होगा। राजनीतिक दलों के नजरिए को परखने के बाद ही हिंदू समाज वोट के बारे में अपना निर्णय लेगा कि किस दल को समर्थन् करना है।
सनातन हिंदू संस्कृति के पांच प्रमुख संगठनों के पदाधिकारियों ने संयुक्त रूप से प्रेस वार्ता कर बताया कि विश्व हिंदू परिषद, अखिल भारतीय संत समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, गंगा महासभा और श्रीकाशी विद्वत परिषद के आह्वान पर संस्कृति संसद में देशभर से आए 1500 संतों,महामण्डलेश्वरों एवं 127 संप्रदायों के प्रमुखों से व्यापक विमर्श के बाद लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक दलों के लिए एजेंडा तय किया गया। एजेंडे में भारतीय संविधान की धारा 30 में संशोधन कर भारत के प्रत्येक सम्प्रदाय को शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थानों को स्थापित एवं संचालित करने के समान अधिकार देने, प्रत्येक शिक्षण संस्थाओं को अपने पाठ्यक्रम निर्माण और संचालन की स्वायत्तता अनिवार्य रूप से देने की बात कही गई है। इसके अलावा वक्फ एक्ट 1995 को निरस्त करने अथवा उसमें वक्फ बोर्ड द्वारा किसी भी संपत्ति को वक्फ सम्पत्ति घोषित करने का अधिकार वापस लेने,सम्पत्ति का अधिकार और प्रक्रिया सब सम्प्रदायों के जैसी ही और उतनी ही मुसलमानों को भी रहे, संघीय कानून बनाकर हिन्दू मन्दिरों को हिन्दू समाज को वापस देने, पर्यटन मंत्रालय से अलग तीर्थाटन मंत्रालय बनाकर तीर्थों का शास्त्रीय मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए विकास करने को एजेंडे में स्थान दिया गया है। तर्क है कि तीर्थ स्थलों की शुद्धता और वहां के पर्यावरण के संरक्षण के लिए यह आवश्यक है।
लव जिहाद एवं अवैध धर्मांतरण को रोकने के लिए प्रभावी क़ानून बनाने को भी एजेंडे में शामिल किया गया है। तर्क दिया गया है कि जिहाद और इसके माध्यम से होने वाले धर्मांतरण के साथ सबसे बड़ी समस्या हिंसा की उत्पन्न हो चुकी है। हजारों मामले सामने आ चुके हैं जिनमें हिंदू बेटियो को धर्मांतरित कर विवाह किया गया और कुछ ही दिनों में उनकी हत्या कर दी गई। किसी भी दशा में धर्मांतरण कर विवाह की अनुमति नहीं होनी चाहिए। केवल विवाह के लिए धर्मांतरण रोकने के लिए प्रभावी कानून बनाया जाना अनिवार्य है।
इसी तरह भारत का प्रत्येक नागरिक बराबर है। देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाए। एक राष्ट्र, एक नागरिकता, एक कानून लागू हो, धर्मांतरित लोगों को जनजाति आरक्षण के दायरे से बाहर करने को भी एजेंडे में शामिल किया गया है। तर्क है कि जो भी लोग किसी भी कारण से धर्मांतरित हुए या हो रहे हैं उन्हें किसी दशा में आरक्षण के दायरे में नहीं रखा जा सकता। यह स्थिति स्पष्ट कर दी जानी चाहिए। इसके लिए कानून बने। इसी तरह अन्य मतावलम्बियों की तरह मन्दिर के पुजारियों को मानदेय देने,सन्त सेवा प्राधिकरण बनाकर सन्तों की भौतिक कठिनाइयों का समाधान करना भी एजेंडे में है। कहा गया है कि संत समाज भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक शक्ति और एकता का आधार है। राष्ट्र सेवा का सबसे बड़ा दायित्व संतों पर है। भारत की संस्कृति, दर्शन और अध्यात्म के साथ राष्ट्र और समाज को एक सूत्र में बांधे रखने का दायित्व संत निभा रहे हैं। संतों की सुरक्षा, उनकी देखभाल और आवश्यकताओं की पूर्ति की जिम्मेदारी राज्य/राष्ट्र की ही है। इसके लिए केंद्र और राज्यों के स्तर पर संत सेवा प्राधिकरण की स्थापना आवश्यक है।
वार्ता में अध्यक्ष,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद महन्त रवीन्द्र पुरी, स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती (महामन्त्री, अखिल भारतीय सन्त समिति), अन्तर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष विश्व हिन्दू परिषद आलोक कुमार, संगठन महामन्त्री गंगा महासभा गोविंन्द शर्मा, प्रो. रामनारायण द्विवेदी आदि शामिल रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/पदुम नारायण