नासा और इसरो ने सिद्ध कर दिया है कि ऋग्वेद सबसे प्राचीन: स्वामी विशोकानन्द भारती
—डार्विन और मैकाले का पढ़ाया गया ज्ञान सर्वथा अधूरा
वाराणसी,11 फरवरी (हि.स.)। बीकानेर राजस्थान के निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर राजगुरु स्वामी विशोकानन्द भारती ने कहा कि मैकाले की शिक्षा और मैक्समूलर द्वारा जानबूझकर वेदों की गलत व्याख्या की गयी। हमें बचपन से डार्विन और मैकाले को पढ़ाया गया है जो सर्वथा अधूरा ज्ञान है। डार्विन ने कहा कि मनुष्य बंदर की सन्तान है और उसे पहले पूँछ थी जो उपयोग न होने के कारण समाप्त हो गयी। यह ज्ञान सर्वथा गलत है और वेदों में इस प्रकार का कोई जिक्र नहीं है।
स्वामी विशोकानन्द भारती बीएचयू के वैदिक विज्ञान केन्द्र में शिक्षकों और विद्यार्थियों से संवाद कर रहे थे। आचार्य महामण्डलेश्वर ने बताया कि इस सन्दर्भ में मैने एक प्रसिद्ध चिकित्सक से कहा कि गर्भ में परीक्षण किया जाय कि बालक को पूँछ होती है या नहीं। दूसरा हमें पढ़ाया गया है कि हमें बिजली का, धातुओं का और अन्न का ज्ञान नहीं था, जो पूरी तरह से गलत है। डार्विन द्वारा कही गयी इन सभी बातों का जबाब वेदों में मिलता है। वेद परमात्मा के द्वारा प्रतिपादित स्वरूप है। परमात्मा के द्वारा सनातन धर्म प्रतिपादित है इसलिए यह सनातन है।
उन्होंने कहा कि वेद का अर्थ होता है ज्ञान । वैदिक सनातन धर्म इसलिए महान है क्योंकि परमात्मा ने इसका प्रतिपादन स्वयं किया है, जिस प्रकार से परमात्मा सनातन है उसी प्रकार से वेद भी सनातन है। उन्होंने कहा कि चारों वेदों के अतिरिक्त प्रकृति वेद का जिक्र हमारे वेदों में है। नासा और इसरो ने इस बात को सिद्ध कर दिया है कि ऋग्वेद सबसे प्राचीन है। उन्होंने कहा कि मैकाले की शिक्षा से हमारी शिक्षा और संस्कृति दोनों प्रभावित हुई। अब हम चेत गये है और अपने वेद में बताये गये तथ्यों को समाज में लाने का प्रयास कर रहे हैं। महामण्डलेश्वर स्वामी विशोकानन्द से केन्द्र के विद्यार्थियों और अतिथि शिक्षकों ने भी संवाद किया। इसके पहले केन्द्र के समन्वयक प्रो. उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी ने महामंडलेश्वर और अन्य अतिथियों का स्वागत किया।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/बृजनंदन