किसानों के लिए सबसे अधिक लाभकारी है राई-सरसों की खेती : डॉ राजेश राय
कानपुर, 13 सितम्बर (हि.स.)। वैश्विक स्तर पर कनाडा और चीन के बाद भारत तीसरा मुख्य सरसों उत्पादक एवं सातवां सरसों के तेल का निर्यातक देश है। राई सरसों महत्वपूर्ण फसल है। राष्ट्रीय कृषि अर्थव्यवस्था में तिलहनी फसलों का द्वितीय स्थान है। यह जानकारी बुधवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर के कृषि विज्ञान केंद्र दलीप नगर के प्रसार वैज्ञानिक डॉ राजेश राय ने दी।
उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में राई-सरसों का कुल क्षेत्रफल लगभग 7.53 लाख हेक्टेयर तथा कुल उत्पादन लगभग 11.53 लाख मैट्रिक टन है। विश्वविद्यालय ने विकसित सरसों की प्रमुख प्रजातियां जैसे वरुणा, वैभव, रोहिणी, माया, कांति, वरदान,आशीर्वाद एवं बसंती हैं। जबकि तोरिया की टाइप-9, भवानी, तपेश्वरी,आजाद चेतना, पीतांबरी प्रमुख प्रजातियां हैं। जबकि पीली सरसों में पीतांबरी प्रमुख प्रजाति है।
डॉ राजेश राय ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा राई की आजाद महक एवं सरसों की आजाद चेतना जैसी प्रजातियों का विकास किया गया है। वरुणा तथा वैभव जैसी प्रजातियां अर्ध शुष्क दशा में बुवाई हेतु उत्तम होती हैं। बुवाई के लिए 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक का समय उचित रहता है। जबकि अति शीघ्र पकने वाली विश्वविद्यालय द्वारा विकसित कांति प्रजाति की राई का समय 15 सितंबर से 30 सितंबर तक है तथा विलंब की दशा में 01 नवंबर से 15 नवंबर तक वरदान व आशीर्वाद उत्तम प्रजातियां रहती हैं।
डॉ राय ने बताया कि वैसे तो विश्वविद्यालय द्वारा विकसित राई सरसों की प्रजातियां पूरे देश में उगाई जा रही हैं। उन्होंने बताया कि वरुणा प्रजाति सिंचित एवं असिंचित दोनों दशाओं के लिए संस्तुति है साथ ही साथ बदलती हुई जलवायु में तापक्रम के प्रति सहिष्णु हैं। अन्य प्रजातियों की तुलना में रोग व्याधियों कम लगती हैं।
उन्होंने बताया कि वरुणा प्रजाति का दाना मोटा एवं तेल की मात्रा अधिक 39 से 41.8 प्रतिशत होती है। सरसों के तेल का मानव स्वास्थ्य को कई प्रकार से लाभ पहुंचाता है। सरसों का तेल स्वास्थ टानिक के रूप में, रक्त निर्माण में योगदान, स्वास्थ ह्रदय, मधुमेह पर नियंत्रण, कैंसर प्रतियोगी, जीवाणु फफूंदी प्रतिरोधी, ठंड और खांसी निवारक, जोड़ों के दर्द और घटिया उपचार तथा अस्थमा निवारक के रूप में प्रयोग किया जाता है।
उन्होंने बताया कि सरसों से निकलने वाले आवशिष्ठ ठोस पदार्थ को खली कहते हैं खली में 38 से 40 फीसदी प्रोटीन पाया जाता है जो कि पशु आहार में प्रयोग करते हैं जिससे कि पशुओं को लाभ होता है।
हिन्दुस्थान समाचार/राम बहादुर/बृजनंदन