लोस चुनाव : पेठा नगरी आगरा किसके जीवन में घोलेगी जीत की मिठास
लखनऊ, 16 अप्रैल (हि.स.)। ताजमहल और पेठे के लिए मशहूर आगरा की लोकसभा सीट भी काफी अहम मानी जाती है। आगरा में जूते का कारोबार और लैदर का काम बड़े पैमाने पर होता है। पिछले तीन चुनावों से इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कब्जा है। आगरा सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट है। पेठा नगरी आगरा की सीट पर 7 मई को तीसरे चरण का चुनाव होंगे।
आगरा लोकसभा सीट का इतिहास
ब्रज क्षेत्र में आने वाली आगरा लोकसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो एक समय पर यहां कांग्रेस का राज हुआ करता था। साल 1952 से लेकर 1971 तक इस सीट पर कांग्रेस ही जीतती रही। वर्ष 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी शंभुनाथ चतुर्वेदी ने कांग्रेस के नेता सेठ अचल सिंह को हराया। 1980 और 1984 में भी कांग्रेस ने ही इस सीट पर जीत दर्ज की थी। हालांकि इसके बाद अब तक कांग्रेस इस सीट पर जीत दर्ज करने में असफल ही रही है। 1989 में यह सीट जनता दल के कब्जे में चली गई। राम मंदिर लहर में पहली बार 1991 में भाजपा का खाता खुला और 1996, 1998 तक लगातार तीन बार कमल खिला। इसके बाद फिर हवा का रुख बदला और यह सीट सपा के खाते में चली गई। आगरा सीट 2009 से भाजपा के कब्जे में है। आगरा में कांग्रेस, जनता दल, भाजपा और सपा का एक बार से ज्यादा बार खाता खुल चुका है। लेकिन हैरत की बात है कि दलित बाहुल्य इस इलाके में बसपा का खाता भी नहीं खुला।
पिछले दो चुनावों का हाल
साल 2019 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो भाजपा प्रत्याशी एसपी बघेल ने बसपा के उम्मीदवार मनोज कुमार सोनी को मात दी थी। बघेल को 646,875 (56.46 प्रतिशत) और मनोज कुमार सोनी को 435,329 (38प्रतिशत) वोट मिले थे। कांग्रेस प्रत्याशी सिर्फ 45,149 (3.94प्रतिशत) वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहा। अब बात करें साल 2014 लोकसभा चुनावों की तो इस चुनाव में भी भाजपा के राम शंकर कठेरिया ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने बसपा के नारायण सिंह सुमन को मात दी थी। भाजपा उम्मीदवार को जहां 583,716 (54.53प्रतिशत) वोट मिले थे। तो वहीं बसपा उम्मीदवार को 283,453 (26.48प्रतिशत) वोटों मिले थे। सपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहा।
किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार
भाजपा ने आगरा लोकसभा सीट पर लगातार दूसरी बार एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतारा है। तो वहीं बसपा ने नए चेहरे पूजा अमरोही पर दांव लगाया है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन में ये सीट सपा के खाते में आई है। सपा-कांग्रेस गठबंधन की तरफ से सुरेश चंद कदम चुनाव मैदान में हैं।
आगरा सीट का जातीय समीकरण
आगरा लोकसभा उत्तर प्रदेश की सीट नंबर-18 है। यहां कुल वोटर्स 1904698 हैं। इनमें 864520 महिला और 1040090 पुरुष मतदाता हैं। वहीं थर्ड जेंडर के मतदाता 88 हैं। आगरा को दलित और मुस्लिम मतदाताओं का गढ़ भी माना जाता है। दलित वोटर होने के बाद भी यहां से बसपा को कभी फायदा नहीं मिला। जो बताता है कि यहां कास्ट फैक्टर से कहीं ज्यादा कैंडिकेट और दल मैटर करता है। जातीय समीकरण पर नजर डालें तो इस सीट पर करीब 37 फीसदी मतदाता मुस्लिम और दलित हैं। आगरा में करीब 3.15 लाख वोटर वैश्य है, अनुसूचित जाति के करीब दो लाख 80 हजार वोटर हैं। मुस्लिम वोटर्स की बात करें तो यहां करीब दो लाख 70 हजार है। एक लाख 30 हजार बघेल वोटरों की भी संख्या है। दलित-मुस्लिम वोटरों के सहारे बसपा चार बार दूसरे और चार बार तीसरे नंबर पर रही है।
विधानसभा सीटों का हाल
आगरा (सु.) लोकसभा सीट में कुल पांच विधानसभा सीटें आती हैं। एतमादपुर, आगरा कैंट (सु.), आगरा दक्षिण एवं आगरा उत्तर आगरा जिले में आती हैं तो वहीं जलेसर (सु.) सीट एटा जिले में पड़ती है। पांचों सीटों पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है।
दलों की जीत का गणित और चुनौतियां
भाजपा ने दोबारा एसपी सिंह बघेल पर ही दांव लगाया है। हालांकि एसपी सिंह बघेल का आगरा संसदीय क्षेत्र में कुछ क्षेत्रों में विरोध भी इस बार दिख रहा है, लेकिन इस विरोध को मैनेज करने में पार्टी के दिग्गज जुटे हुए हैं। भाजपा के परंपरागत वैश्य समाज के वोट के साथ पिछड़े और ब्राह्मण वोटों पर भाजपा की नजर है। अनुसूचित जाति में दीगर जातियों के वोटों को भी भाजपा साध रही है। वोटों के इन्हीं समीकरण और विकास का वास्ता देकर भाजपा ने आगरा को फिर से जीतने की तैयारी की है। वहीं विपक्ष भी अपने-अपने वोट बैंक को साधने में जुटा है।
राजनीतिक विशलेषक प्रवीण वशिष्ठ के मुताबिक, आगरा की जनता हमेशा स्पष्ट जनादेश देती रही है। जिसे जीत मिली उसे बंपर जीत मिली और जो नहीं भाया उसे खाता खोलना भी मुश्किल हो गया। वैसे भी मेट्रो वाले तोहफे ने आगरा का दिल जीत लिया है।
आगरा से कौन कब बना सांसद
1952 सेठ अचल सिंह (कांग्रेस)
1957 सेठ अचल सिंह (कांग्रेस)
1962 सेठ अचल सिंह (कांग्रेस)
1967 सेठ अचल सिंह (कांग्रेस)
1967 सेठ अचल सिंह (कांग्रेस)
1971 सेठ अचल सिंह (कांग्रेस)
1977 शंभूनाथ चतुर्वेदी (भारतीय लोकदल)
1980 निहाल सिंह (कांग्रेस आई)
1984 निहाल सिंह (कांग्रेस)
1989 अजय सिंह (जनता दल)
1991 भगवान शंकर रावत (भाजपा)
1996 भगवान शंकर रावत (भाजपा)
1998 भगवान शंकर रावत (भाजपा)
1999 राज बब्बर (सपा)
2004 राज बब्बर (सपा)
2009 डॉ. रामशंकर कठेरिया (भाजपा)
2014 डॉ. रामशंकर कठेरिया (भाजपा)
2009 सत्यपाल सिंह बघेल (भाजपा)
हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/राजेश