लोस चुनाव : उत्तर प्रदेश में अर्श से फर्श पर आई कांग्रेस, खाते में सिर्फ 1 सीट, वोट शेयर 47 फीसदी गिरा
लखनऊ, 27 मार्च (हि.स.)। कोई जमाना था जब देश के सबसे बड़े राज्य और देश की संसद को सर्वाधिक सांसद देने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का सिक्का चलता था। देश के पहले संसदीय चुनाव 1952 में कांग्रेस ने देशभर में कुल 489 सीटों में 479 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। उसे 364 सीटों पर जीत मिली। चार सीटों पर जमानत जब्त हुई। वोट मिले 47665951 (45.41फीसदी)। यह वह समय था जब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में देश में कांग्रेस की लहर बनी हुई थी।
पहले संसदीय चुनाव से 2019 के लोकसभा चुनाव तक आते-आते उप्र में कांग्रेस की सीटें और वोट शेयर दोनों ही जमीन पर आ चुका है। 1952 में उप्र में कांग्रेस का वोट शेयर 52.99 फीसदी था। 2019 के चुनाव में उसका वोट शेयर 6.36 फीसदी रहा। कांग्रेस के वोट शेयर में 47 फीसदी की गिरावट आयी है। 1977 और 1998 के आम चुनाव में कांग्रेस का प्रदेश में खाता ही नहीं खुल पाया था। कभी उप्र में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस के खाते में फिलवक्त सिर्फ 1 सीट है। वर्तमान में कांग्रेस उप्र में कमजोर और बिखरे संगठन, नेतृत्व के अभाव और तमाम दूसरी परेशानियों से जूझ रही है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसका शीर्ष नेतृत्व उप्र से चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है।
1952 में 86 में से 81 सीटें जीती
पहले लोकसभा चुनाव में उप्र में कांग्रेस ने 86 में से 81 सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस के खाते में कुल 9047392 (52.99 फीसदी) वोट आए। शेष पांच सीटों में 2-2 पर सोशलिस्ट पार्टी और निर्दलीय जीते और एक सीट अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने जीती।
दूसरे आम चुनाव में घटी कांग्रेस की सीटें
1957 में हुए दूसरे आम चुनाव में कांग्रेस की सीटें और वोट प्रतिशत दोनों कम हो गए। कांग्रेस ने सभी 86 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। 70 सीटों पर उसे जीत मिले। कांग्रेस के खाते में 10599639 (46.39 फीसदी) वोट आए। 16 सीटों में से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के हिस्से में चार, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और भारतीय जनसंघ के खाते में एक-एक सीट आई। बाकी सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी विजयी हुए।
तीसरे आम चुनाव में तेजी से गिरा ग्राफ
तीसरा आम चुनाव वर्ष 1962 में हुआ। इस चुनाव में उप्र में कांग्रेस की सीटों और वोट का ग्राफ तेजी से नीचे गिरा। कांग्रेस ने प्रदेश की सभी 86 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। उसे 62 सीटों पर सफलता हासिल हुई। 24 सीटों पर उसे हार का मुंह देखना पड़ा और एक सीट पर उसकी जमानत जब्त हुई। इस चुनाव में कांग्रेस को 6842472 (38.2) मत प्राप्त हुए। इस चुनाव में सीपीआई को 2, जनसंघ को 7, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 2, सोशलिस्ट पार्टी को 1, स्वतंत्र पार्टी को 3, हिन्दू महासभा को 1, रिपब्लिकन पार्टी को 3 और 5 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी विजयी हुए।
चौथे आम चुनाव में पार्टी को लगा गहरा धक्का
1967 में हुए चौथे आम चुनाव में कांग्रेस को उप्र में गहरा धक्का लगा और उसे 47 सीटों पर ही जीत हासिल हुई। 38 सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने प्रदेश की सभी 85 सीटों पर प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। दो सीटों पर उसके प्रत्याशियों की जमानत भी जब्त हुई। उसके खाते में 7285130 (33.44 फीसदी) वोट आए। इस चुनाव में भारतीय जनसंघ के खाते में 12 सीटें आई। सीपीआई ने 5, सीपीएम ने 1, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 2, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने 8, स्वतंत्र पार्टी ने 1, रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया ने 1 और 8 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की।
पांचवें आम चुनाव में प्रदर्शन सुधरा
पांचवे आम चुनाव 1971 में हुए। इस चुनाव में कांग्रेस ने अपना प्रदर्शन सुधारते हुए प्रदेश की 85 में से 73 सीटों पर कब्जा जमाया। उसके खाते में 9981309 (48.54 फीसदी) वोट आए। इस चुनाव में उसकी सीटों और वोट प्रतिशत में सुधार हुआ। प्रदेश की बाकी सीटों में से भारतीय जनसंघ ने 4, सीपीआई ने 4, इंडियन नेशनल कांग्रेस आर्गेनाइजेशन ने 1, भारतीय क्रांति दल ने 1 और 2 सीटें निर्दलीयों ने जीती।
छठे आम चुनाव में कांग्रेस के पांव उखड़ गए
आपातकाल के बाद 1977 में हुए छठे आम चुनाव में प्रदेश और देश की राजनीति में कांग्रेस का लगभग सफाया हो गया। प्रदेश की सभी 85 सीटों पर उसे हार का मुंह देखना पड़ा। सारी सीटें भारतीय लोकदल ने जीती। लोकदल के हिस्से में कुल 19530435 (68.07फीसदी) वोट आए। कांग्रेस को कुल 7170182 (24.99 फीसदी) वोट ही आए। पिछले चुनाव की तुलना में कांग्रेस के वोट प्रतिशत में लगभग 25 प्रतिशत की गिरावट आई। इस चुनाव में देश की बागडोर विपक्ष के हाथ में आई और पहली बार कोई गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा।
1980 के आम चुनाव में हालत नहीं सुधरी
केंद्र में जनता दल की सरकार ज्यादा समय चल नहीं पाई। 1980 में हुए सातवें आम चुनाव में प्रदेश की 85 में से 51 सीटों पर कांग्रेस आई ने जीत दर्ज की। उसे 10171194 (35.9 फीसदी) वोट हासिल हुए। शेष सीटों पर विपक्षी दलों ने जीत का परचम लहराया। जनता पार्टी सेक्युलर ने 29 सीटें जीती। इस चुनाव के बाद फिर एक बार देश की बागडोर कांग्रेस के हाथों में आई। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं।
1984 में कांग्रेस ने किया ऐतिहासिक प्रदर्शन
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति का भुनाने के लिए कांग्रेस ने तय समय से एक वर्ष पूर्व ही आम चुनाव करवाए। आठवीं लोकसभा के लिए 1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने उप्र की कुल 85 में से 83 सीटों पर जीत दर्ज की। उसे 17391831 (51.03 फीसदी) वोट हासिल हुए। हालांकि कांग्रेस इस चुनाव में सर्वाधिक सीटें जीतने के बावजूद 1952 में प्राप्त 52.99 फीसदी मत के रिकार्ड को तोड़ नहीं पाई। इस चुनाव में लोकदल के हिस्से में मात्र 2 सीटें आई। एक तरह से इस चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस ने विपक्ष का सफाया कर दिया। राजीव गांधी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। उन्होंने उप्र की अमेठी सीट से जीत दर्ज की थी।
1989 लोकसभा चुनाव में खाते में आई 15 सीटें
1989 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस के खाते में मात्र 15 सीटें आई। उसके खाते में 12393934 (31.77 फीसदी) वोट ही आए। इस चुनाव में जनता दल ने 54, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 8 और शेष अन्य दलों ने जीती। वास्तव में, राजीव गांधी के पांच साल के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार और घोटालों से देश में कांग्रेस के प्रति नाराजगी का माहौल था। केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।
1991 के चुनाव में दहाई से इकाई में पहुंची सीटें
1991 के आम चुनाव में कांग्रेस ने राजीव गांधी के नेतृत्व में 80 सीटों पर चुनाव लड़ा। राजीव गांधी के चेहरे के बावजूद उसकी सीटों का आंकड़ा पहली बार दहाई से इकाई में पहुंचा। कांग्रेस ने 5 सीटें जीती। 40 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हुई। उसका वोट प्रतिशत गिरकर 6755015 (18.02 फीसदी) पर पहुंच गया। भाजपा ने प्रदेश की कुल 85 में से 51 सीटें जीती। भाजपा को 12306701 (32.82 फीसदी) वोट प्राप्त हुए। जनता दल ने 22 सीटें और जनता पार्टी ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की। इस चुनाव में कांग्रेस ने अब तक अपना सबसे बुरा प्रदर्शन किया था। उसकी सीटें और वोट प्रतिशत दोनों में कमी आई थी। इस चुनाव के दौरान राजीव गांधी की हत्या हो गई थी। केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी।
1996 में भी नहीं सुधरे हालात
1996 के आम चुनाव में कांग्रेस की हालत में गिरावट जारी रही। प्रदेश की 85 में से मात्र 5 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई। 72 सीटों पर जमानत जब्त हुई। वोट मिले 3746505 मात्र 8.14 फीसदी। इस चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 52 सीटों पर जीत दर्ज कराई। भाजपा ने 33.44 फीसदी वोट प्राप्त किये। केंद्र में पहली बार भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई।
1998 में कांग्रेस का खाता नहीं खुला
केंद्र की राजनीति में मचे सियासी उठापटक के बीच 1998 में हुए आम चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस का खाता ही नहीं खुला। कांग्रेस ने कुल 85 सीटों में से 76 पर प्रत्याशी उतारे थे। उसके 69 प्रत्याशी जमानत बचाने जितने वोट भी हासिल नहीं कर सके। कांग्रेस को 3361053 (6.02 फीसदी) प्राप्त हुए। भाजपा को 57 सीटों, बसपा को 4 और समाजवादी पार्टी को 20 सीटों पर विजय हासिल हुई। भाजपा का वोट प्रतिशत 36.49 था।
इस चुनाव के एक साल बाद ही 1999 में हुए चुनाव में कांग्रेस को 10 सीटों पर विजय मिली। 47 पर उसकी जमानत जब्त हुई। उसके खाते में 8001685 (14.72 फीसदी) वोट आए। भाजपा ने 27.64 फीसदी वोट पाकर 29 सीटें जीती। वहीं बसपा ने 14 और सपा ने 26 सीटें जीती। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार का गठन हुआ।
2004 में 48 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई
2004 के आम चुनाव में कांग्रेस ने प्रदेश की 80 में से 73 पर अपने प्रत्याशी उतारे। उसके 48 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई और 9 के सिर जीत का सेहरा बंधा। कांग्रेस को मिले 6412293 यानी 12.04 फीसदी वोट। इस चुनाव में बसपा ने 19, भाजपा ने 10 और सपा ने 35 सीटों पर जीत हासिल की। केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार का गठन हुआ। मनमोहन सिंह पीएम की कुर्सी पर बैठे।
2009 में थोड़ी हालत सुधरी
209 के आम चुनाव में कांग्रेस की सीटों में बढ़ोत्तरी हुई। 80 में से 21 सीटों पर उसे जीत मिले। वोट मिले 10113521 (18.25 फीसदी)। इस चुनाव में बसपा को 20, भाजपा को 10, सपा को 23, रालोद को 5 और 1 सीट पर निर्दलीय को जीत मिली। केंद्र में यूपीए 2 सरकार का गठन हुआ।
2014 में मोदी लहर में विपक्ष हवा में उड़ गया
2014 के आम चुनाव में देशभर में चली मोदी लहर का असर उप्र के चुनाव नतीजों में भी देखने को मिला। कांग्रेस के 67 में से मात्र दो प्रत्याशी जीत पाए। कांग्रेस को 6061267 (7.53 फीसदी) वोट प्राप्त हुए। भाजपा और उसके सहयोगी उसके सहयोगी अपना दल ने 73 सीटें जीती। 71 सीटे भाजपा और 2 पर अपना दल ने कब्जा जमाया। भाजपा को 34318854 (42.63) वोट हासिल हुए। बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल का इस चुनाव में खाता नहीं खुला। सपा को पांच सीटों पर संतोष करना पड़ा। उसका वोट प्रतिशत 22.35 रहा।
2019 में एक सीट पर सिमटी कांग्रेस
2019 के आम चुनाव में कांग्रेस को ऐतिहासिक पराजय का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने 67 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और उसके खाते में सिर्फ 1 सीट आई। उसे 5457352 (6.36 फीसदी) वोट मिले। भाजपा ने 62 सीटे जीती। भाजपा को 42858171 (49.97 फीसदी) वोट मिले। बसपा के खाते में 10 सीटे आई। बसपा को 16659754 (19.42 फीसदी) वोट मिले। सपा को 5 सीटें मिली। उसे 15533620 (18.11 फीसदी) वोट प्राप्त हुए। भाजपा की सहयोगी अपना दल सोनेलाल ने दो सीटों पर जीत दर्ज की। उसके खाते में 1039478 (1.21 फीसदी) वोट आए। इस चुनाव में रायबरेली सीट से कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता पूर्व पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी जीत दर्ज की। गांधी परिवार की पुश्तैनी अमेठी सीट से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने हराया।
2024 में मात्र 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी कांग्रेस
जिस कांग्रेस का किसी जमाने में उत्तर प्रदेश ही नहीं देश में राज हुआ करता था। उसकी आज ये हालत हो गई है कि वो समाजवादी पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टी की पिछलग्गू बनकर चल रही है। इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे में सपा ने बड़ी जद्दोजहद के बाद 17 सीटें कांग्रेस को दी हैं। 63 सीटों पर सपा चुनाव लड़ रही है।
कांग्रेस जिन 17 सीटों पर इस बार चुनाव लड़ रही हैं, उन सीटों पर 2014 और 2019 के चुनाव में उसका प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा है। 2014 में रायबरेली और अमेठी उसने जीती थी। ये दोनों इस बार की 17 सीटों में शामिल हैं। बची 15 सीटों पर 2014 में 5 सीटों पर वो दूसरे, 1 सीट पर तीसरे, 5 सीटों पर चौथे स्थान पर रही थी। 4 सीटों अमरोहा, बुलंदशहर, मथुरा और फतेहपुर सीकरी में उसने प्रत्याशी नहीं उतारे थे। इस चुनाव में रालोद और कांग्रेस का गठबंधन था। ये चार सीटें रालोद के खाते में थी।
2019 में कांग्रेस को रायबरेली सीट पर जीत मिली। जिन सीटों पर इस बार कांग्रेस लड़ रही है, पिछले चुनाव में उनमें से 12 सीटों पर वो तीसरे, तीन सीटों पर दूसरे और एक सीट पर चौथे स्थान पर रही थी। इसी से साफ हो जाता है कि सपा ने सीट बंटवारे में कांग्रेस को वो सीटें दी हैं, जिनको जीत पाना टेढ़ी खीर है।
गठबंधन के साथी बदल गए
2014 के चुनाव में कांग्रेस-रालोद का गठबंधन था। इस गठबंधन का लाभ न तो कांग्रेस को मिला और न ही रालोद को। इस चुनाव में कांग्रेस के खाते में दो सीटें आई तो रालोद का तो खाता भी नहीं खुला। 2019 में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन था। कांग्रेस अकेले मैदान में थी। इस बार कांग्रेस को एकमात्र रायबरेली सीट पर जीत हासिल हुई। उसके बड़े नेता राहुल गांधी को हार का मुंह देखना पड़ा। 2024 के चुनाव में इंडिया गठबंधन में सपा-कांग्रेस का गठबंधन है। वहीं एनडीए के खेमे में भाजपा, रालोद, अपना दल सोनेलाल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और निर्बल भारतीय शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) शामिल हैं। बसपा किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है।
2024 में वजूद बचाने की चुनौती
कांग्रेस की बड़ी नेता और सर्वेसर्वा सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा की सदस्य बन चुकी है। इस बार वो रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ेंगी। अमेठी से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर संशय कायम है। हालात ऐसे हैं कि गठबंधन में सीटों के बंटवारे के लगभग एक महीने बाद भी केवल 9 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर पाई है। गांधी परिवार की गढ़ माने जाने वाली अमेठी और रायबरेली सीटों पर वो प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई है। वास्तव में, जमीनी हकीकत और संगठन की कमजोरियों के मद्देनजर कांग्रेस ने सपा की शर्तों पर गठबंधन और सीटों का बंटवारा किया है। वो मात्र 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जबकि 2014 और 2019 के चुनाव में उसने 67-67 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। वर्तमान में 80 में से मात्र 1 सीट उसके खाते में है। ऐसे में यह देखना अहम होगा कि कांग्रेस विपक्ष की चुनौतियों से कैसे निपटती है।
लोकसभा चुनाव : कांग्रेस का उप्र में प्रदर्शन
वर्ष - सीटें जीती - वोट प्रतिशत
1952 - 81 - 52.99
1957- 70- 46.39
1962 - 62 - 38.2
1967 - 47 - 33.44
1971 - 73 - 48.54
1977 - 00 - 24.99
1980 - 51 - 35.9
1984 - 82 - 51.03
1989 - 15 - 31.77
1991 - 05 - 18.02
1996 - 05 - 8.14
1998 - 00 - 6.02
1999 - 10 - 14.72
2004 - 21 - 18.25
2009 - 21 - 18.25
2014 - 02 - 7.53
2019 - 01 - 6.36
हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/मोहित