भौतिकता और आध्यात्मवाद का उचित संतुलन ही आदर्श अवस्था : रवि राज

 


--‘कर्मयोग और स्वामी विवेकानन्द’ विषय पर व्याख्यान

प्रयागराज, 01 मार्च (हि.स.)। जीवन का सम्पूर्ण तत्व कर्मतत्व ही है। हालांकि ज्ञानतत्व, भक्तितत्व, योगतत्व का भी अपना महत्व है। विवेकानंद ने कहा है कि भारतीय परम्परा कर्म के क्षेत्र में प्रायः उदासीन रही, जिससे आध्यात्मिक प्रगति तो हुई लेकिन भौतिक प्रगति की प्रक्रिया धीमी रही। जबकि भौतिकता और आध्यात्मवाद का उचित संतुलन ही आदर्श अवस्था होती है।

यह बातें मुख्य अतिथि रवि राज ने ईश्वर शरण पीजी कॉलेज में शुक्रवार को आईसीपीआर नई दिल्ली द्वारा प्रदत्त स्टडी सर्किल योजना की विशिष्ट व्याख्यानमाला के अन्तर्गत दर्शनशास्त्र विभाग और आई.क्यू.ए.सी के संयुक्त तत्वावधान में ‘कर्मयोग और स्वामी विवेकानन्द’ पर सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि कर्म के कारण ही मनुष्य की वर्तमान स्थिति प्रकट होती है। जीव एवं ब्रह्म की एकता सम्भव है, लेकिन जीव कभी ईश्वर नहीं हो सकता है। अनुग्रह एवं निग्रह की शक्ति से पूर्ण सत्ता का नाम ही ईश्वर है।

रविराज ने कर्म को परिभाषित करते हुए कहा कि काल से परिछिन्न क्रिया, जिसका कोई कर्ता हो एवं जिसका निश्चित फल होता है वही कर्म है। कर्म के भी विविध प्रकार हैं। जैसे अकर्म, विकर्म जिसमें कर्ता एवं फल के आधार पर विभेद किया जाता है। उन्होंने कर्म योग के अन्तर्गत समाधान की अवस्था को बताया कि चित्त यदि उग्र है तो ध्यान द्वारा उसका समाधान किया जा सकता है। कर्म योग के प्रभाव से चित्त की शुद्धि होती है, वासना तिरोहित हो जाती है। रविराज ने कर्म योग के विभिन्न अंगों की विवेचना करते हुए पाँचवे तत्व दैवत्व को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि परिस्थितिवाद के दर्शन के कारण अधिकतर समस्या उत्पन्न होती है। क्योंकि परिस्थितियों को ठीक करने में व्यक्ति कर्म को विकृत कर देता है। उन्होंने कर्म को विचारपूर्ण युक्ति से करने पर जोर दिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो0 आनन्द शंकर सिंह ने किया। संचालन दर्शनशास्त्र विभाग के सहायक आचार्य डॉ0 महेन्द्र यादव एवं संयोजन व धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 अमिता पाण्डेय ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ0 रश्मि जैन, डॉ0 महेश प्रसाद राय, डॉ0 मनोज कुमार दूबे, शोधार्थी संजू चौधरी, आकांक्षा शुक्ला एवं स्नातक परास्नातक के छात्र-छात्रायें उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/पदुम नारायण