मटर की वैज्ञानिक विधि से खेती कर भूमि उपजाऊ बनाने के साथ लाभ कमाएं किसान : डॉ राजेश राय

 


कानपुर, 01 नवम्बर(हि.स.)। मटर की वैज्ञानिक विधि से खेती करके किसान लाभ कमा सकते हैं। मटर की खेती से जहां एक ओर कम समय में पैदावार ली जा सकती है। वहीं यह भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाने में सहायक है। फसल चक्र के अनुसार यदि इसकी खेती की जाए तो इससे भूमि उपजाऊ बनती है। यह जानकारी बुधवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दलीप नगर के वैज्ञानिक डॉक्टर राजेश राय ने दी।

उन्होंने बताया कि मटर की जड़ों में मौजूद राइजोबियम जीवाणु भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायक है। उत्तर प्रदेश में 4.34 लाख हेक्टेयर में मटर उगाई जाती है जो कुल राष्ट्रीय क्षेत्र का 53.7% है। शोध छात्र प्रसून सचान ने बताया कि मटर बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर के अंतिम पखवाड़ा से नवंबर मध्य तक उचित रहता है मटर बुवाई के पूर्व राइजोबियम कल्चर से बीजों को उपचार करने के बाद ही बुआई करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है।

उन्होंने किसानों भाइयों से अपील है कि मटर के लिए 20 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 20 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। मटर की उन्नतशील प्रजातियों के बारे में जानकारी देते हुए डॉ.राय ने बताया कि केपीएमआर 400, केपीएमआर 522, अपर्णा, रचना, पूसा प्रभात जैसी प्रजातियां उत्तम होती हैं। तथा बीज दर 75 से 85 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। रोग एवं कीटों की रोकथाम के लिए बीज एवं मृदा को शोधित अवश्य करें। किसान भाई अगर उत्तम कृषि कार्य प्रबंधन करते हैं तो 25 से 30 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।

हिन्दुस्थान समाचार/राम बहादुर/बृजनंदन