माघी पूर्णिमा पर लाखों श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी

 


- वरिष्ठ पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों ने निरंतर भ्रमण कर व्यवस्थाओं का लिया जायजा

प्रयागराज, 24 फरवरी (हि.स.)। माघी पूर्णिमा के अवसर पर गंगा, जमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में लाखों श्रद्धालुओं ने शनिवार को आस्था की डुबकी लगाई। मेला प्रशासन के अनुसार सायं 6 बजे तक लगभग 38 लाख 20 हजार स्नानार्थियों व श्रद्धालुओं ने पुण्य लाभ अर्जित किया। माघी पूर्णिमा स्नान पर्व के साथ ही तीर्थराज प्रयाग में संगम की रेती पर चल रहे माघ मेले का अनौपचारिक समापन हो गया और कल्पवास आज खत्म हो गया। वैसे मेला का समापन अंतिम स्नान पर्व 08 मार्च महाशिवरात्रि पर होगा।

मेला प्रशासन के अनुसार सुबह 10 बजे तक लगभग 18 लाख 60 हजार, दोपहर 12 बजे तक लगभग 25 लाख 50 हजार, 2 बजे तक लगभग 30 लाख, 4 बजे तक लगभग 35 लाख 50 हजार तथा सायं 6 बजे तक 38 लाख 20 हजार लोगों ने आस्था की डुबकी लगाई। इस अवसर पर श्रद्धालुओं को काई असुविधा न हो, इसके दृष्टिगत सभी वरिष्ठ अधिकारियों ने मेला क्षेत्र में भ्रमणशील रहकर सभी आवश्यक व्यवस्थायें सुनिश्चित करायी। माघ मेला क्षेत्र में अपने स्वजनों से बिछड़ने वाले लोगो के लिए खोया-पाया केन्द्र से लगातार एनाउंस कर उनके स्वजनों से उन्हें मिलाया गया। श्रद्धालुओं को मेले में भटकना न पड़े, इसके लिए संगम जाने का मार्ग वापस लौटने का मार्ग व अन्य मार्गों को प्रदर्शित करते हुए साइन बोर्ड रास्तों पर लगाये गये है। माघ मेला क्षेत्र में सुरक्षा की व्यवस्था चाक-चौबंद रही।

इस अवसर पर एडीजी जोन भानु भाष्कर, मण्डलायुक्त विजय विश्वास पंत, पुलिस आयुक्त रमित शर्मा, पुलिस महानिरीक्षक प्रेम कुमार गौतम, कुम्भ मेलाधिकारी विजय किरण आनन्द, पुलिस उपमहानिरीक्षक-वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक माघ मेला डॉ राजीव नारायण मिश्र, जिलाधिकारी नवनीत सिंह चहल, प्रभारी अधिकारी माघ मेला दयानन्द प्रसाद, अपर जिलाधिकारी मेला विवेक चतुर्वेदी सहित अन्य वरिष्ठ पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारी भ्रमणशील रहकर व्यवस्थाओं का जायजा लेते रहे।

माघी पूर्णिमा स्नान के साथ ही संगम तट पर मास पर्यंत चल रहे कल्पवास का अनुष्ठान भी आज समाप्त हो गया। पौष पूर्णिमा से यहां जमे कल्पवासी माघी पूर्णिमा स्नान के बाद अपने घर को प्रस्थान करने लगते हैं। अधिकतर कल्पवासी रविवार को घर लौटेगे, जबकि कुछ कल्पवासी त्रिजटा पर्व का स्नान कर मेला क्षेत्र छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं।

क्या है कल्पवास

संगम की रेती पर कायाकल्प हेतु किया जाने वाला तप कल्पवास कहलाता है। यह व्रत पौष पूर्णिमा के साथ शुरू हो जाता है। इस दिन गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु कल्पवास का विधि विधान से संकल्प लेते हैं। वे तीर्थ पुरोहितों के आचार्यत्व में मां गंगा, नगर देवता वेणी माधव और पुरखों का स्मरण कर व्रत शुरू करते हैं। महीने भर जमीन पर सोते हैं। पुआल और घास-फूस उनका बिछौना होता है। तीर्थपुरोहितों के आचार्यत्व में मंत्रोच्चार के बीच मां गंगा, वेणी माधव एवं पूर्वजों का स्मरण कर त्याग-तपस्या के 21 नियमों को पूरी निष्ठा से निभाते हैं।

साथ ही मेला क्षेत्र में बने अपने अस्थाई झोपड़ी या तम्बू के दरवाजे के पास ये कल्पवासी बालू में तुलसी का बिरवा लगाते हैं और जौ बोते हैं। सुबह स्नान के बाद यहां जल अर्पित करते हैं। सुबह और शाम को यहां दीपक भी जलाते हैं। कल्पवास समाप्त होने के बाद वापस जाते समय वह इसे प्रसाद स्वरूप अपने घर लेकर जाएंगे। गंगा की रेती पर मास पर्यन्त कठोर तपस्या के बाद माघी पूर्णिमा का स्नान कर ये कल्पवासी अपने घर वापस लौटते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/मोहित