कुशीनगर–गोरखपुर रेल परियोजना को फिर मिली निराशा
कुशीनगर,01 फरवरी(हि. स.)। भारत सरकार के 2024-25 के गुरुवार को पेश अंतरिम बजट में अंतर्राष्ट्रीय महत्व प्राप्त गौतम बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थल कुशीनगर को गोरखपुर रेल पथ से जोड़ने की परियोजना को जगह नहीं मिली है। परियोजना को बजट न मिलने से पर्यटन व व्यवसाय से जुड़े लोगों व बौद्ध भिक्षुओं में मायूसी छा गई है। लोग सरकार के अंतरिम बजट से काफी उम्मीद पाले हुए थे। जबकि मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल के सत्र 2017-18 में इस परियोजना को तकनीकी व वित्तीय स्वीकृति मिल चुकी है।
केंद्र सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तब कुशीनगर–गोरखपुर रेल पथ परियोजना को संसद में पेश करते हुए 1345 करोड़ के अनुमानित डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट)को अनुमोदित कर वित्तीय मंजूरी दिया था। सरकार ने लोकेशन सर्वे के लिए एक करोड़ जारी भी कर फाइनल डीपीआर बनाने का निर्देश दिया था। पूर्वोत्तर रेलवे ने फाइनल डीपीआर बनाया तो 1476 करोड़ की लागत परियोजना का विस्तृत स्वरूप उभरकर सामने आया। जिसके तहत सरदारनगर-कुशीनगर-पड़रौना 65 किमी लंबी रेल लाइन का निर्माण किया जाना था।सरदारनगर से हेतिमपुर तक बिछी सरदारनगर चीनी मिल की नैरोगेज रेल लाइन को भी परियोजना में शामिल किया गया। सांसद विजय दुबे ने बताया कि कुशीनगर रेल सेवा एक मेगा परियोजना है। जिस पर बेसिक कार्य चल रहा है। औपचारिकता में समय लग रहा है। परियोजना धरातल पर उतरेगी।
संसदीय समिति की संस्तुति भी नही आई काम:
रेलवे की स्थाई संसदीय समिति की बैठक सात सितंबर 21 को कुशीनगर के एक होटल में पूर्व कृषि मंत्री राधामोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई थी। समिति ने परियोजना पर विचार किया और भारत सरकार को अपनी संस्तुति भी भेजी। बावजूद इसके परियोजना का कार्य आगे नहीं बढ़ सका।
बौद्ध भिक्षु अशोक का कहना है कि रेल के नाम पर कुशीनगर को छला जा रहा है। केवल घोषणाओं से पर्यटन विकास नही होने वाला। सरकार को बजट में कुशीनगर रेल सेवा के लिए प्राविधान करना चाहिए था।
पंकज कुमार सिंह, महाप्रबंधक होटल रॉयल रेजीडेंसी ने इस संबंध में कहा कि परिवहन इंफ्रास्ट्रक्चर का न होना कुशीनगर के पर्यटन विकास में बड़ी बाधा है। एयरपोर्ट बना तो उड़ान नही, रेल की स्वीकृति मिली तो बजट नही। सरकार को इस विसंगति को दूर करना होगा।
हिन्दुस्थान समाचार/गोपाल/बृजनंदन