काशी तमिल संगमम् 4.0 : बीएचयू में काशी–तमिलनाडु की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता पर हुआ विशेष शैक्षणिक सत्र

 

काशी तमिल संगमम् 4.0 के तहत बीएचयू में आज एक विशेष शैक्षणिक सत्र का आयोजन किया गया, जिसमें काशी और तमिलनाडु की आध्यात्मिक एवं दार्शनिक परंपराओं पर विस्तार से चर्चा हुई। कार्यक्रम बीएचयू के शिक्षा संकाय, कमच्छा में आयोजित हुआ। इसमें तमिलनाडु से आए शिक्षण और शिक्षा क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सभी वक्ताओं ने कहा कि काशी एक ऐसी भूमि है जो सभी को अपनाती है और यहाँ आने वाला व्यक्ति आत्मिक शांति व आनंद का अनुभव करता है।

काशी और तमिलनाडु के आध्यात्मिक संबंधों पर चर्चा

वक्ताओं ने बताया कि काशी और तमिलनाडु के बीच सदियों से गहरा आध्यात्मिक रिश्ता रहा है।
जिस प्रकार काशी विश्वनाथ तमिल लोगों के लिए अत्यंत पवित्र है, उसी प्रकार काशीवासियों के लिए रामेश्वरम का विशेष महत्व है—यह दोनों संस्कृतियों के बीच सम्मान और अपनत्व की मजबूत कड़ी है।

पद्मश्री राजेश्वर आचार्य का प्रेरक संबोधन

पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने अपने उद्बोधन में ऋषि अगस्त्य और विन्ध्याचल पर्वत की प्रसिद्ध कथा सुनाई और बताया कि भारत की संस्कृति उत्तर–दक्षिण को जोड़ने वाली एक साझा धारा है।
उन्होंने कहा—
“काशी की खासियत यही है कि यहाँ अहंकार खत्म हो जाता है और व्यक्ति आध्यात्मिक सत्य के करीब पहुंचता है। काशी हमेशा से सबका स्वागत करती रही है। यहां भक्ति और सम्मान ही असली भावना है।”

उन्होंने दक्षिण भारत के मंदिरों की प्रशंसा करते हुए कहा कि वहाँ मंदिर "मूर्तियों से बनते हैं", केवल उनमें मूर्तियाँ नहीं रखी जातीं।

योगी रामसूरतकुमार की यात्रा पर चर्चा

योगी रामसूरतकुमार आश्रम की सुश्री अन्हीता सिद्धवा ने योगी रामसूरतकुमार की यात्रा के बारे में बताया—
वे मूल रूप से बलिया के थे लेकिन काशी की आध्यात्मिक ऊर्जा से प्रभावित होकर दक्षिण भारत गए और वहाँ आध्यात्मिक संदेश फैलाया।
उन्होंने कहा—
“भारत ऋषियों और संतों की भूमि है, जो हमें एकता और अध्यात्म की राह दिखाती है।”

बीएचयू कुलपति का संबोधन

कुलपति प्रो. अजीत कुमार चतुर्वेदी ने भारतीय संस्कृति की विविधता पर जोर देते हुए कहा—
“जब दो इंसान एक जैसे नहीं हो सकते, तो दो संस्कृतियाँ कैसे एक जैसी होंगी?
यह संगम समानता खोजने का नहीं, बल्कि हमारी सांझी विशेषताओं को समझने का अवसर है।”

उन्होंने बताया कि भारतीय परंपरा में मंदिर जाना सिर्फ "देखना" नहीं बल्कि "दर्शन" करना है।
उन्होंने एनी बेसेंट और सीएचएस स्कूल के योगदान को भी याद किया और इस संगम को विकसित भारत 2047 की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

आईआईटी-बीएचयू के प्रो. राकेश मिश्र का स्वागत भाषण

प्रो. मिश्र ने कहा कि काशी तमिल संगमम् ने दोनों क्षेत्रों के बीच ज्ञान, संस्कृति और विचारों के आदान-प्रदान को नई दिशा दी है।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि यह पहल "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" की भावना को और मजबूत करती है।

प्रतिनिधियों का शैक्षणिक और सांस्कृतिक भ्रमण

1. शिक्षा संकाय और सीएचबीएस का दौरा

प्रतिनिधियों ने शिक्षा संकाय और सेंट्रल हिंदू बॉयज़ स्कूल (CHBS) का भ्रमण किया।
प्राचार्या डॉ. स्वाति अग्रवाल ने विद्यालय के इतिहास और बीएचयू के विकास में उसकी भूमिका के बारे में बताया।

2. श्री रणवीर संस्कृत विद्यालय का दौरा

प्राचार्य डॉ. आनंद कुमार जैन ने उत्तर और दक्षिण की सांस्कृतिक एकता पर जोर देते हुए कहा—
"भिन्नताएँ हमारे मन में होती हैं, संस्कृति हमें जोड़ती है।"

3. IUCTE (अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केन्द्र) का अवलोकन

डॉ. कुशाग्री सिंह ने बताया कि केंद्र 31 राज्यों और 19 देशों के शिक्षकों को ट्रेनिंग दे चुका है।
सत्र के दौरान काशी दर्शन, भारतीय ज्ञान परंपरा (IKS), हिंदी प्रचार और नई शिक्षा नीति पर चर्चा हुई।

4. हिंदी विभाग का भ्रमण

विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी ने प्रतिनिधियों का स्वागत किया।
विभागीय पुस्तकालय और हिंदी साहित्य की महान विभूतियों—आचार्य रामचंद्र शुक्ल और आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी—के योगदान पर चर्चा हुई।
काशी और तमिलनाडु की संयुक्त भक्ति परंपराओं पर भी विचार रखा गया।

5. IIT-BHU के I-3 फाउंडेशन का दौरा

प्रतिनिधियों को नवाचार, उद्यमिता और वैज्ञानिक अनुसंधान से जुड़ी गतिविधियों की जानकारी दी गई।
प्रो. मेष्राम ने बताया कि उद्यमिता का उद्देश्य समाज की समस्याओं का नैतिक और स्थायी समाधान ढूँढना है।

6. महामना अभिलेखागार का भ्रमण

प्रतिनिधि यह जानकर विशेष रूप से प्रभावित हुए कि बीएचयू जनता के सहयोग और दान से बना विश्वविद्यालय है।
प्रो. ध्रुव कुमार सिंह ने अभिलेखागार से जुड़े सवालों के उत्तर दिए।
सभी ने प्रदर्शनी को गहरी रुचि के साथ देखा।

प्रतिनिधियों ने भारत कला भवन और सयाजीराव गायकवाड़ पुस्तकालय का भी अवलोकन किया।

कार्यक्रम का समापन

समापन सत्र में IUCTE के निदेशक प्रो. प्रेम नारायण सिंह ने काशी–तमिलनाडु की साझा सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विरासत पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम राष्ट्रगान और धन्यवाद ज्ञापन के साथ समाप्त हुआ।

यह शैक्षणिक सत्र काशी और तमिलनाडु की सांस्कृतिक एकता, आध्यात्मिक जुड़ाव और शैक्षणिक सहयोग का सुंदर उदाहरण बना।
कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि—

“सांस्कृतिक विविधता हमारी शक्ति है, और काशी–तमिल संगम भारत की इसी अनूठी एकता का प्रतीक है।”