जौनपुर का नाम बदलकर यमदग्निपुरम किया जाय : जगतगुरु रामभद्राचार्य जगतगुरु रामभद्राचार्य जी

 


--ज्ञानपीठ पुरस्कार मेरा सम्मान नहीं बल्कि पूरे जनपदवासियों का सम्मान है : जगतगुरु रामभद्राचार्य

जौनपुर, 10 मार्च (हि.स.)। जगतगुरू रामभद्राचार्य ने सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार पाये जाने पर अपने अभिनंदन समारोह में जौनपुर का नाम बदलकर जमैथा गांव स्थित महर्षि यमदग्नि के तपोभूमि आश्रम के नाम पर जौनपुर का नाम यमदग्निपुरम कर दिए जाने की मांग उठाई है।

प्रख्यात विद्वान शिक्षाविद रचनाकार दार्शनिक हिंदू धर्म गुरु रामानंद सम्प्रदाय के वर्तमान चार जगतगुरु रामानंद आचार्य में से एक तुलसी पीठाधीश्वर जगतगुरु रामभद्राचार्य को भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया है। श्री भद्राचार्य की जन्मस्थली जौनपुर है। रविवार को उनका भव्य अभिनंदन समारोह जनपद के तिलकधारी महाविद्यालय के बलरामपुर हाल में आयोजित किया गया।

जगद्गुरु की आशीर्वाद यात्रा रविवार देर शाम पॉलिटेक्निक चौराहे से निकाल गई, जो नगर के विभिन्न मार्गों से होते हुए तिलकधारी महाविद्यालय के प्रांगण में आकर समाप्त हुई। रामभद्राचार्य की एक झलक पाने के लिए नगरवासी बेताब रहे। जगह-जगह तोरण द्वार लगाकर व घर की महिलाओं द्वारा पुष्प वर्षा कर आरती उतारकर उनका अभिनंदन किया गया। अपने इस अभिनंदन समारोह से अभिभूत जगतगुरु रामभद्राचार्य जी ने कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार मेरा सम्मान नहीं बल्कि पूरे जनपद वासियों का सम्मान है। मुझे 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। लेकिन ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने पर मुझे अति प्रसन्नता हुई है। जब 17 फरवरी को ज्ञानपीठ पुरस्कारों की घोषणा हुई उसे समय मैं बीमार था। लेकिन मुझे जानकारी हुई तो मेरी सारी पीड़ा खत्म हो गई। विद्या का कितना महत्व है यह अध्ययन करने से समझ में आता है। मेरे द्वारा लगभग 240 पुस्तक लिखी गई हैं। जिसमें से 130 पुस्तकें संस्कृत की हैं। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि मैं जीवन भर इस ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए खरा उतरूं। संस्कृत भाषा में पहली बार यह पुरस्कार किसी को प्राप्त हुआ है। 22000 लोगों में से एक मुझे इससे पुरस्कार के लिए चुना गया। पुरस्कार के तहत 11 लाख रुपए प्रशस्ति पत्र ताम्रपत्र व मां सरस्वती की कांस्य प्रतिमा प्रदान की गई है।

उन्होंने कहा कि जौनपुर में अनेकों साहित्यकार हुए हैं जिनमें प्रमुख रूप से रामधारी सिंह दिनकर, वरिष्ठ साहित्यकार वाचस्पति श्रीपाल सिंह क्षेम की जन्मस्थली रही है। श्री भद्राचार्य ने जौनपुर का नाम बदलकर जमैथा गांव स्थित महर्षि यमदग्नि के तपोभूमि आश्रम के नाम पर जौनपुर का नाम यमदग्निपुरम कर दिए जाने की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि मेरे माताजी के नाम से मेरे गांव का नाम साचीपुरम रखा गया है, यह मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है। सम्मान समारोह में जगतगुरु का जिलाधिकारी रविंद्र कुमार, पुलिस अधीक्षक डॉ अजय पाल शर्मा, मुख्य विकास अधिकारी साइ शीलम तेजा पूर्वांचल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो वंदना सिंह महाविद्यालय के तमाम शिक्षकों और प्रबंधकों द्वारा रामभद्राचार्य जी को सम्मानित किया गया।

हिन्दुस्थान समाचार/विश्व प्रकाश/विद्याकांत