भारतीयता तभी आ सकती है, जब वेद की रक्षा हो:श्रीकांत शर्मा
काशी-तमिल संगमम में आध्यात्मिक ग्रुप की चर्चा-परिचर्चा
वाराणसी,24 दिसम्बर (हि.स.)। काशी तमिल संगमम-2 में रविवार को नमोघाट पर तमिल आध्यात्मिक ग्रुप से जुड़े सदस्यों ने एकेडमिक सत्र मंदिरों के लिए कला, संस्कृति और धर्म' विषय पर काशी के विद्वानों से परिचर्चा के साथ सवाल भी दागा। परिचर्चा में प्रमुख वक्ता श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य अर्चक पंडित श्रीकांत शर्मा ने मंदिर से जुड़ी जानकारियां साझा की। मुख्य अर्चक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक कथन का उल्लेख किया, जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा था कि काशी की पुरातनता को बिगाड़े बिना नए कलेवर में कैसे इसे सजाया, संवारा, निखारा जा सकता है, उसका यह काशी-तमिल संगमम देदीप्यमान उदाहरण है।
मुख्य अर्चक ने कहा कि तमिलनाडु से आए लोग एक वृहद काशी को देख रहे हैं। श्रीकांत शर्मा ने कहा कि सनातन धर्म के बारे में तमिलनाडु से एक प्रहार किया गया, जो पूरे देश का विषय बना, उसका उत्तर यही हो सकता है सनातन धर्म यही है कि सत्य बोलो, प्रिय बोलो, लेकिन अप्रिय सत्य न बोलो। इसमें कहां से कोई विशेष संप्रदाय की बात आ जाती है। सत्य क्या है, वेद है, जो अपौरूषेय हो। भारतीयता तभी आ सकती है, जब वेद की रक्षा हो। धर्म की रक्षा और कोई कुठाराघात न हो। कार्यक्रम में डॉ. हृदयरंजन शर्मा ने भी सत्य और धर्म की व्याख्या की। डॉ. वेंकटरामन घन पाठी ने तमिलनाडु से काशी आए मेहमानों को देवालयों और संस्कृतियों के बारे में बताया। वेंकटरामन ने कहा कि दक्षिण में काशी के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास है। हर सनातनी जो भारत में रहता है, उसको एक बार काशी अवश्य आना है। बाबा विश्वनाथ, काल भैरव और माता विशालाक्षी मंदिर में दर्शन करना होगा। तमिलनाडु से आए हुए अतिथियों ने कहा कि स्वागत और लजीज व्यंजन के साथ ही वैचारिक सत्र भी काफी शानदार रहा। दक्षिण भारत का हर खाद्य पदार्थ और रस्म आदि यहां मिल रहा है। काशी का अन्न और अभिनंदन काफी विशेष है। कार्यक्रम में सत्य, धर्म, देवालयों, सनातन, मंदिरों को आधुनिकता और विकास से जोड़ने पर समग्र चर्चा हुई। सत्य और धर्म की व्याख्या की गई। मेहमान आध्यात्मिक ग्रुप के सवालों का जवाब दिया गया।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/सियाराम