सोमेशपति के भाजपा में शामिल होने के बाद औरंगाबाद हाउस में छिड़ा वैचारिक युद्ध

 


-हम पं.कमलापति त्रिपाठी वंश के वारिस, उनकी राजनीतिक विचारधारा के विरुद्ध राजनीति नहीं कर सकते: राजेशपति

वाराणसी,06 मई (हि.स.)। कांग्रेस के पुरोधा रहे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केन्द्रीय रेल मंत्री स्व.कमलापति त्रिपाठी के पौत्र सोमेशपति त्रिपाठी भाजपा में शामिल हो गए हैं। इसको लेकर परिवार औरंगाबाद हाउस में वैचारिक युद्ध छिड़ गया है।

पंडित जी के पौत्र पूर्व एमएलसी राजेशपति त्रिपाठी ने सोमवार को इस मामले को लेकर पत्रकारों के सामने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि हम पं.कमलापति त्रिपाठी वंश के वारिस हैं, पर उस नाते हम उनकी राजनीतिक विचारधारा के विरुद्ध राजनीति नहीं कर सकते। उनका लोकतंत्र में विश्वास था, जो सभी को वैचारिक आजादी देता है। फिर भी वह तो राष्ट्रनिर्माण की गांधी-नेहरू विचार परंपरा को अटूट जीवन संस्कार मानते थे, जिसका संघ एवं भाजपा के विचारों से उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव जैसा रिश्ता है,जिसमें मेल संभव नहीं। हम उनके वंश का नाम लेकर भाजपा की राजनीति करें, तो वह उनकी वैचारिक विरासत के विरुद्ध होगा।

राजेशपति त्रिपाठी ने कहा कि अपने पितामह के वैचारिक विरासत और विश्वासों के नाते हम शेष जीवन खेती करके बिता सकते हैं, पर पितामह पं.कमलापति त्रिपाठी की वैचारिक विरासत के विरुद्ध राजनीति की नहीं सोच सकते। निजी वजहों से मैं और विधायक रहे मेरे पुत्र ललितेशपति तीन वर्ष पूर्व कांग्रेस से अलग हुये थे,पर हम दादा एवं पिता की वैचारिक विरासत से दूर नहीं हो सकते थे। हमको बड़े प्रलोभन एवं दबाव भाजपा में शामिल होने के आये, पर हम पूर्वजों के संस्कार से धोखा तो नहीं कर सकते थे।

उन्होंने बताया कि 1980 से पं.कमलापति त्रिपाठी से अनन्य भाव से जुड़ी रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आग्रह पर हम उनसे जुड़े, पर शांत घर बैठे रहे। विगत विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मड़िहान सीट ललितेशपति के पक्ष में तृणमूल कांग्रेस को छोड़ी,पर हम चुनाव से भी पृथक रहे। पं.कमलापति त्रिपाठी के विचारों की विरासत के तकाजों पर जब 'इंडी' गठबंधन बना, ममता बनर्जी एवं अखिलेश यादव ने ललितेशपति को भदोही से चुनाव लड़ने को कहा और उसके साथ सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी का आशीर्वाद भी जुड़ा, तब चुनाव में ललितेशपति भदोही से उतरे हैं।

राजेशपति ने कहा कि पं.कमलापति त्रिपाठी धर्मनिष्ठ थे, पर धर्म की राजनीति को पाप मानते थे। देश की राजनीति में आज जो खतरे महसूस किये जा रहे, उसे दक्षिणपंथी फासिस्ट एवं सांप्रदायिक राजनीति का उभरता गंभीर खतरा बता कर कमलापति त्रिपाठी ने 1988 में ही आगाह किया था। उन्होंने 22 सितंबर, 1988 को उस उभरते खतरे के खिलाफ पत्र एवं बयान द्वारा लोकतंत्र एवं समाजवादी विचारों में विश्वास वाली लोकतांत्रिक एवं वामपंथी ताकतों का एकजुट होने के लिये आह्वान किया था। उनकी उस दूरदृष्टि की अनदेखी हुई, पर आज उसी खतरे का सामना करने के लिये समान विचारों के सभी घटकों ने 'इंडी' गठबंधन बनाया है, जैसा वह उस वक्त चाहते थे। उन्होंने कहा कि 'इंडी' गठबंधन की 2024 के चुनाव में सफलता कमलापति त्रिपाठी की वैचारिक विरासत से जुड़ा हमारा युगधर्म है।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/राजेश