मनुष्य मात्र का सत्प्रेरक है गीता, स्वयं करना चाहिए गीता का अध्ययन : विशोकानंद भारती
वाराणसी, 05 नवम्बर (हि.स.)। निर्वाण पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद भारती ने कहा कि गीता शास्त्र मनुष्य मात्र का शास्त्र है । यदि सारी उपनिषद गाय है तो गीता उनका दुग्धामृत है और उसको दुहने वाले स्वयं भगवान श्री कृष्ण हैं। चूंकि दूध प्राणीमात्र के लिए लाभकारी होता है, अतः गीता का अध्ययन स्वयं करना चाहिए और अपने बाल बच्चों को इसे पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद भारती रविवार को बीएचयू मालवीय भवन में रविवासरीय गीता प्रवचन में ज्ञान गंगा बहा रहे थे। महामंडलेश्वर ने कहा कि गीता केवल एक ग्रंथ नहीं है अपितु वह भारतीय जीवन पद्धति का आदर्श एवं प्रत्येक मानव को सत्यपथ पर चलने के लिए सत्प्रेरक है।
अध्यक्षता करते हुए मालवीय भवन के निदेशक प्रो. राजा राम शुक्ल ने कहा कि यद्यपि सन्यास एवं कर्मयोग दोनों ही मार्ग जीवन के परम पुरुषार्थ मोक्ष को प्राप्त करा देते हैं फिर भी भगवान ने कर्म योग को ही श्रेष्ठ माना है। अतः हमें सदा अपने-अपने कर्मों का संपादन करते रहना चाहिए। प्रवचन के प्रारंभ में भजन की प्रस्तुति संगीत एवं मंच कला संकाय के मनोज तिवारी एवं शुभम मिश्रा ने की।
गीता महात्त्म्य का वाचन सत्यनारायण पांडेय ने किया। अतिथियों का स्वागत गीता समिति के सचिव प्रो. उपेंद्र कुमार त्रिपाठी , संचालन डॉ. बृजभूषण ओझा तथा धन्यवाद ज्ञापन संयुक्त सचिव डॉ. शरदिंदु कुमार त्रिपाठी ने किया। इस अवसर पर डॉ अरविंद त्रिपाठी, डॉ. अभिषेक आचार्य, दुष्यंत मिश्र, डॉ. आत्मानंद सरस्वती, आनंद चैतन्य ब्रह्मचारी, प्रो. आरपी मालिक, प्रो. लता शर्मा भी मौजूद रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/पदुम नारायण