राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक गोपाल का निधन, साझा की गयी यादें

 


सुल्तानपुर, 29 सितंबर (हि.स.)। आपातकाल का दर्द झेल चुके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व विभाग प्रचारक गोपाल का रविवार को निधन हो गया। उनके जीवन से जुड़ी यादाें पर हिन्दुस्थान समाचार ने कुछ समर्थकाें से वार्ता की, जिसमें लाेगाें ने बताया कि गोपाल जी साईकिल से जिले का कोना-कोना छान मारा था। उनका कहना था कि अब तो इस गरीबी में लगता है कि जेल गए होते तो अच्छा रहता,कम से कम बीस हजार की पेंशन तो मिलती।

पूर्व प्रचारक ने एक बार बताया था कि उस समय जिला प्रचारक रामलखन जी थे। नगर प्रचार की जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी। ओंकार भावे विभाग प्रचारक थे। पांच जिलों का विभाग होता था। प्रयागराज, प्रतापगढ़, रायबरेली, फैजाबाद तथा सुलतानपुर शामिल था, जिसका प्रयागराज केंद्र होता था। आपातकाल में भावे जी को भाभी जी बोलते थे। प्रयागराज में विभाग प्रचारक के नेतृत्व में बैठके होती थीं, वहीं से दिशा निर्देश होता था। उस समय सूचना का कोई भी यंत्र नहीं था। केवल एक दूसरे से मिली सूचनाओं के आधार पर बैठकों में शामिल होते थे। जिसमें हर सप्ताह जाना पड़ता था।

जेल में बंद लोगों के परिजनों की सहायता में लगे थे स्वयंसेवक

जेल में लोगों के बंद होने के बाद उनके परिवार में भुखमरी आ गई थी। उनके खाने-पीने की चिंता करना, उनके घर तक भोजन पहुंचाना। रुपये—पैसे पहुंचाने की व्यवस्था करना, यह सब लोग मिलकर किया करते थे। नगर के बाहर भूमिगत बैठकें होती थी, जिसमें रणनीति बनाई जाती थी कि अगले दिन कैसे काम करना है।

भारत माता के जयकारों के साथ लोग देते थे गिरफ्तारी

कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ आपातकाल के नगर के दौरान दीवानी चौराहे से सत्याग्रह शुरू होता था। संघ के स्वयंसेवक सत्याग्रह करने वालों के पास गोपनीय तरीके से माला पहुंचाते और उन्हें पहनाया जाता था। कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ नारे लगते थे। सूचना मिलते ही पुलिस प्रशासन तुरंत लोगों को गिरफ्तार कर लेती थी। भारत माता के जयकारों के साथ गिरफ्तारी देते थे। सैकड़ों लोगों को जेल की हवा खानी पड़ी।

जनसंघ के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ जितेंद्र अग्रवाल, महामंत्री सभा बहादुर सिंह, अमेठी के विधायक रहे रवींद्र प्रताप सिंह राजा भैया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राम गुलाम द्विवेदी,खांटी समाजवादी टी एन संडा,डॉ केपी सिंह, सगे भाई रामकृष्ण व आनंद जायसवाल एवं अलीगंज के पास डोमनपुर गांव सहित जिले भर से सैकड़ों लोगों को जेल की हवा खानी पड़ी।

आपातकाल के दौरान सबसे अधिक फिल्म देखा

उन्होंने बताया कि अपने जीवन काल में सबसे अधिक पिक्चर मैंने इमरजेंसी में देखी है। पिक्चर देखने के बहाने पिक्चर हॉल में योजनाएं बनती थी। पिक्चर खत्म होने के पहले ही वहां से निकलकर पान की दुकान, रिक्शा, बस, गाड़ी मोटर दुकानें आदि पर पत्रक डालकर दिया करते थे। अन्य जगहों पर गोपनीय सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता था। हमलोगों की रणनीति व कार्यप्रणाली से सुबह-सुबह पुलिस प्रशासन की नींद हराम हो जाती थी।

मलाल : जेल गए होते तो हमें भी मिलती बीस हजार की पेंशन और सुविधाएं

आपातकाल के बाद मथुरा में प्रांतीय बैठक में चौथे सरसंघचालक राजेन्द्र सिंह 'रज्जू भैया' के आदेश पर मुझे उड़ीसा में सेवा कार्य के लिए विभाग प्रचारक के तौर पर भेज दिया गया। मेरी मातृभाषा बंगाली थी, इसलिए मुझे वहां जाना सहर्ष स्वीकार था। उसके बाद बिहार भेजे गए। ऊपर से आदेश होता था कि जेल जाना बड़ी बात नहीं है। बाहर रहकर लोगों की चिंता करना, उनके परिवार की देखभाल करना हम सब की जिम्मेदारी है। अब बुढ़ौती में कोई साथ देने वाला नहीं है। एक छोटी सी दुकान से सौ पचास की कमाई बड़ी मुश्किल से हो पाती है। जेल गए होते तो हमे भी बीस हजार की पेंशन तो मिलती।

हिन्दुस्थान समाचार / दयाशंकर गुप्ता