कलौंजी की खेती कर कम लागत में अधिक मुनाफा कमाएं किसान : डॉ. सुशील कुमार सिंह

 


रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ की सलाह—120 दिन में तैयार हो जाती है फसलप्रति हेक्टेयर दो से ढाई लाख रुपए तक हो सकता है लाभ

झांसी, 5 दिसंबर (हि.स.)। रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. सुशील कुमार सिंह ने क्षेत्र के किसानों को कम लागत, कम जोखिम और अधिक लाभ वाली मसाला फसल कलौंजी की खेती अपनाने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि देश में लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती होती है और बुंदेलखंड की मिट्टी इस फसल के लिए अत्यंत उपयुक्त मानी गई है।

उन्होंने बताया कि कलौंजी की बुवाई का सही समय नवंबर के अंतिम सप्ताह से 10 दिसंबर तक है। 5–25°C तापमान फसल की जमावट और बढ़वार के लिए उपयुक्त माना गया है। बुंदेलखंड क्षेत्र की कावड़ और पढ़ुआ मिट्टी इसके लिए सबसे बेहतर पाई गई है।

डॉ. सिंह ने कहा कि बुवाई से पहले खेत में 10–15 टन सड़ी गोबर खाद मिलाएं। कतार से कतार की दूरी 30–35 सेमी रखें और 5–7 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है।

मुख्य प्रजातियाँ में पंतकृष्णा, अजमेर कलौंजी-1, आजाद कलौंजी, ए.एन.-20 और काला जीरा है। पहली सिंचाई 30–35 दिन बाद करें। फसल 120–130 दिन में तैयार हो जाती है और 10–12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।

डॉ. सिंह के मुताबिक, उचित प्रबंधन के साथ किसान 2–2.5 लाख रुपये तक का शुद्ध लाभ कमा सकते हैं। साथ ही, यह फसल सामान्यतः कीट व रोगों से सुरक्षित रहती है और चना, मसूर जैसी रबी फसलों के साथ अंतरवर्तीय फसल के रूप में भी उगाई जा सकती है।

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि कम लागत, कम जोखिम और अधिक मुनाफे के कारण कलौंजी की खेती बुंदेलखंड के किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी विकल्प बन सकती है।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / महेश पटैरिया