फाइलेरिया से बचाव के लिए हर व्यक्ति दवा खाए : डीएमओ

 


--फाइलेरिया मरीज की आपबीती हर स्वस्थ व्यक्ति के लिए एक सबक

प्रयागराज, 01 फरवरी (हि.स.)। फाइलेरिया जिसे हाथीपांव भी कहते हैं, यह दुनिया में दूसरे नंबर की ऐसी बीमारी है जो बड़े पैमाने पर लोगों को विकलांग बना रही है। यह जान तो नहीं लेती है, लेकिन जिंदा आदमी को मृत के समान बना देती है। इस बीमारी से शारीरिक और मानसिक तौर पर मरीज को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार यह बीमारी इस कदर अपना असर दिखाती है कि व्यक्ति के लिए दैनिक क्रियाएं और रोजमर्रा के काम करना भी मुश्किल हो जाता है। पीड़ित व्यक्ति पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर हो जाता है। कुछ ऐसी ही दर्दनाक कहानी है बैजनाथ की।

जनपद के नैनी क्षेत्र के निवासी फाइलेरिया रोगी बैजनाथ की उम्र 48 वर्ष है। 19 वर्ष तक बैजनाथ बिलकुल स्वस्थ थे। यह सोचकर की वह स्वस्थ हैं उन्होंने फाइलेरिया की दवा का सेवन कभी नहीं किया। पर 20 वर्ष की उम्र में बैजनाथ के पैर में फाइलेरिया के लक्षण दिखने शुरू हुए। जांच से पता चला उन्हें लिम्फोडीमा फाइलेरिया हो गया है। जिसके चलते बैजनाथ के पांव हाथी जैसे मोटे हो गए। आज बैजनाथ की शरीर का वजन 215 किलो है। उनके एक पांव का वजन 92 किलो और दूसरे पांव का वजन 54 किलो है। फाइलेरिया की दवा न खाने की भूल ने बैजनाथ को जीवन भर के लिए विकलांग बना दिया।

बैजनाथ 27 वर्ष से बेरोजगार हैं। वह अपनी दैनिक क्रियाएं और रोजमर्रा के काम के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। बैजनाथ बताते हैं मेरे परिवार में 6 लोग हैं। मैं 19 वर्ष का था जब मेरी शादी हुई उस समय मैं स्टेशनरी की दुकान में अच्छी तंख्वाह पर काम करता था। शादी के एक वर्ष बाद मेरे दोनों पैर में अचानक सूजन आ गई। पांच वर्ष तक कई निजी अस्पतालों में इलाज कराया पर कोई आराम नहीं मिला। इलाज में लग रहे पैसों से मेरी आर्थिक हालत बिगड़ती गई, मुझे स्टेशनरी का काम छोड़ना पड़ा। जीवन के इस कठिन पड़ाव में मैंने कई बार आत्महत्या की सोची पर मेरी पत्नी ने मुझे सम्हाला और मेरा पूरा साथ दिया। मैं जनपद के स्वरूपरानी जिला अस्पताल गया जहां मुझे मालूम हुआ की मुझे फाइलेरिया है और इसका कोई इलाज नहीं है।

बैजनाथ ने बताया कि इस बीमारी ने मुझे और मेरे पूरे परिवार को बहुत मानसिक और आर्थिक चोट पहुंचाई। अपनी इस दशा के चलते 12 वर्ष तक मैने कोई काम नहीं किया। माताजी के पेंशन से ही परिवार चलता था। उसके बाद लोगों से उधार लेकर किराने की दुकान खोली। मेरे दो बेटे हैं, बड़ा बेटा पढ़ने में बहुत तेज था। वह फार्मासिस्ट बनना चाहता था पर आर्थिक तौर पर कमजोर होने के चलते मेरी वजह से उसका यह सपना अधूरा रह गया। घर का खर्च चलाने के लिए बेटा किराने की दुकान पर बैठता है। अगर मैंने फाइलेरिया की दवा खाई होती तो मुझे फाइलेरिया न होता, बल्कि मैं शारीरिक तौर पर स्वस्थ होता और अपने बच्चे के सपने को पूरा करता।

10 से 15 वर्ष बाद दिखते हैं फाइलेरिया के लक्षण

जिला मलेरिया अधिकारी आनंद सिंह बताते हैं कि “फाइलेरिया के प्रमुख लक्षण हाथ और पैर या हाइड्रोसिल (अण्डकोष) में सूजन का होना है। हाइड्रोसील का सफल इलाज संभव है पर शरीर के अन्य हिस्सों में। यह बीमारी हो जाने पर इसका सम्पूर्ण इलाज नहीं हो पाता है। रोग से प्रभावित अंग के साफ सफाई और व्यायाम से इसे सिर्फ नियंत्रित किया जा सकता है।“

--स्वस्थ व्यक्ति में भी मौजूद है फाइलेरिया

आनंद सिंह बताते हैं कि जनपद के 8 ब्लॉक शहरी (आबादी 30 लाख) फाइलेरिया उन्मूलन की ओर हैं। वहीं 13 ब्लॉक की आबादी 38 लाख है जिसमें फाइलेरिया उन्मूलन के लिए आईडीए अभियान 10 फरवरी से जागरूकता अभियान चलायेगा। क्योंकि फाइलेरिया के लक्षण दिखने में 5 से 15 वर्ष लगते हैं। इसलिए कोई अपने आपको फाइलेरिया से पूरी तरह सुरक्षित न समझे। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। झोलाछाप चिकित्सकों से बचें और अपनी जांच के लिए जनपद के तेज बहादुर सप्रू चिकित्सालय के कमरा नंबर 23 में आकर अपनी निःशुल्क जांच एवं उपचार कराएं। इस बीमारी से बचना है तो दवा ही एक और आखरी विकल्प है। जिसमें आशा घर घर जाकर फाइलेरिया से बचाव की दवा खिलाएगी। साल में एक बार दो वर्ष तक फाइलेरिया रोधी दवा सभी लोग खाएंगे तभी फाइलेरिया से जीतना सम्भव है।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/बृजनंदन