हिन्दी का क्षेत्र बहुत व्यापक है : प्रो. राम किशोर शर्मा

 




- बोली और भाषा का सम्बंध चोली और दामन का साथ : डॉ. राधेश्याम सिंह

- बोलियों का विकास ही भाषा को बनाता है : देवेन्द्र प्रताप सिंह

- डॉ उदयनारायण तिवारी स्मृति व्याख्यानमाला

प्रयागराज, 28 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. राम किशोर शर्मा ने कहा कि ‘हिन्दी’ संज्ञा का प्रयोग साहित्येतिहास के संदर्भ में उसके अन्तर्गत सभी बोलियों के लिये किया जाता है। किन्तु भाषा के संदर्भ में यह प्रयोग मानक हिन्दी के लिए ही सीमित हो गया है। हिन्दी का क्षेत्र बहुत व्यापक है।

हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में शुक्रवार की सायं एकेडेमी के सभागार में डॉ उदयनारायण तिवारी स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत ‘क्षेत्रीय बोलियों का मानक हिन्दी पर प्रभाव’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रो राम किशोर शर्मा ने कहा कि पश्चिम में अम्बाला, बीकानेर, जेसलमेर, पूर्व में रामगढ़ से भागलपुर तक, उत्तर में गंगोत्री यमुनोत्री, दक्षिण में बालाघाट-दुर्ग तक हिन्दी प्रदेश है। इतने लम्बे क्षेत्र में करीब 18 क्षेत्रीय बोलियां हैं।

एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि डॉ उदयनारायण तिवारी का भाषा-विज्ञान के क्षेत्र मे विशेष योगदान था, उनकी स्मृति में हिन्दुस्तानी एकेडेमी प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को ‘डॉ उदयनारायण तिवारी स्मृति’ व्याख्यानमाला का आयोजन करती है। बोलियों का विकास ही भाषा को बनाता है।

भोजपुरी भाषा पटना डॉ. भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि भोजपुरी एक ऐसी भागीरथ है जिसके एक तट पर लोक है तो दूसरे किनारे पर शास्त्र तथा बीच में अहर्निश सांस्कृतिक प्रवाहित होती है। इसकी अभिव्यंजनामूलक अकूत शब्द सम्पदा, लोकोक्ति मुहावरों की छटा, लोककथा, लोकगाथा, की किस्सागोई नवगीत समकालीन कविता की गवंईं चाछुष विम्बधर्मिता हिन्दी के तेवर और प्राभावोत्पदकता में चार चांद लगाती है। हिन्दी पहला आंचलिक उपन्यास ‘देहाती दुनिया’ (शिवपूजन सहाय) से लेकर ‘काशी का अस्सी’ (काशीनाथ सिंह) तक कई कृतियां भोजपुरित की वजह से ही चर्चा के केन्द्र में रहीं।

अवधी भाषा के मर्मज्ञ सुलतानपुर के डॉ राधेश्याम सिंह ने कहा कि बोली और भाषा का सम्बंध चोली और दामन का होता है। भाषा आपनी बोलियों का संरक्षण करती है और बोली अपनी भाषा को समद्ध करती है। वृन्दावन से आए प्रो. कृष्ण चन्द्र गोस्वामी ने कहा कि राजभाषा के मानकीकरण की अपेक्षा हमारी भाषिक अनेकता में एकसूत्रता की अंकाक्षा का दूसरा नाम है। मध्यकाल में यह ब्रजभाषा द्वारा लगभग सम्पूर्ण उत्तरापथ में तैयार की गयी जमीन पर उस खड़ी बोली का विकास हुआ है, जो स्वतंत्रता के बाद राजभाषा बनी। बुंदेली भाषा के विद्वान वक्ता कन्नौज के डॉ चित्रगुप्त ने कहा कि जगनिक के आल्हा खण्ड से लेकर तुलसीदास और आधुनिक कवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी रचनाओं में बुन्देली का प्रयोग किया है। हिन्दी के साथ-साथ ब्रज, अवधी कन्नौजी जैसी बोलियों में बुन्देली का रस है।

इस अवसर पर हिन्दुस्तानी एकेडेमी उप्र, प्रयागराज द्वारा प्रकाशित प्रो. रामकिशोर शर्मा की पुस्तक ‘साहित्य विमर्श के विविध आयाम’ का विमोचन भी किया गया। संचालन एकेडेमी की प्रकाशन अधिकारी ज्योतिर्मयी ने एवं धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम में डॉ. मुरारजी त्रिपाठी, डॉ. उमा शर्मा, डॉ पीयूष मिश्र ‘पीयूष’, डॉ सृष्टि कुशवाहा, जितेन्द्र नारायण राय, एम.एस खान, आचार्य श्रीकांत शास्त्री, आलोक मालवीय, रवि भूषण पाण्डेय सहित शोधार्थी एवं शहर के अन्य लोग उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/मोहित