ठंड और कोहरे में कठिन अंतरगृही परिक्रमा पर नंगे पाव निकले श्रद्धालु,राह की दुश्वारियों पर आस्था भारी

 


वाराणसी,26 दिसम्बर(हि.स.)। मार्गशीष मास (अगहन) के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर मंगलवार तड़के ही पापों का शमन करने के लिए कड़ाके की ठंड और धुंध के बीच श्रद्धालु महिलाओं का जत्था कठिन अंतरगृही परिक्रमा पर नंगे पांव सिर पर गठरी रख निकल पड़ा। राह की तमाम दुश्वारियों पर आस्था पूरे राह भारी दिखी। गंगा स्नान के बाद मणिकर्णिका चक्रपुष्करिणी कुंड पर संकल्प लेकर मणिकर्णिकेश्वर महादेव के दर्शन के बाद अंतरगृही यात्रा शुरू हुई। महिलाएं सिर पर गठरी और कंधे पर झोला लिए परिक्रमा पथ पर घाटों के रास्ते हरिश्चंद्र घाट पहुंची और यहां से संकट मोचन - साकेत नगर -खोजवां- बड़ी पटिया व छोटी पटिया होते हुए मंडुवाडीह-लहरतारा,कैंट के रास्ते चौकाघाट पहुंच कर महिलाएं रात्रि विश्राम करेंगी। इसके बाद अगले दिन तड़के पुराना पुल-नक्खी घाट होते हुए सरायमोहना पहुँच कर वहां से वापस मणिकर्णिका घाट पर संकल्प छुड़ाकर यात्रा का समापन होगा। काशी में मान्यता है कि अंतरगृही यात्रा से जन्म-जन्मांतर के मनसा, वाचा, कर्मणा से किए गए पापों से मुक्ति मिल जाती है। गौरतलब हो कि काशी की प्राचीन परंपरा के अनुसार अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को काशी के अंदर अंदर 25 किमी की अंतरगृही परिक्रमा यात्रा निकलती है। पाप और भूलों के प्रायश्चित को काटने के लिए काशी की अंतरगृही यात्रा में शामिल श्रद्धालु पहले दिन चौकाघाट में विश्राम करते हैं। रात में उपलों के अहरे पर बाटी-चोखा का प्रसाद ग्रहण कर श्रद्धालु रात्रि विश्राम करते हैं। अगले दिन श्रद्धालु अपनी यात्रा यहां से फिर शुरू करते है। यात्रा में नंगे पांव चलने से माना जाता है कि व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। कहा जाता है कि त्रेतायुग में माता सीता ने अंतरगृही यात्रा की शुरुआत की थी। यात्रा की शुरुआत भी माता सीता का ध्यान करके की जाती है। इस यात्रा को प्रदक्षिणा यात्रा भी कहा जाता है। अंतरगृही यात्रा के साथ पिशाचमोचन स्थित कपर्दीश्वर महादेव के दर्शन का भी विधान है।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/सियाराम