अखिल भारतीय संत समिति की मांग, सरकारी नियन्त्रण से मुक्त हो मंदिर

 


वाराणसी, 29 जून (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सनातनी हिन्दू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग अखिल भारतीय संत समिति ने की है। समिति के राष्ट्रीय महामन्त्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में कहा है कि भारतीय संविधान सर्वपंथ समभाव (धर्म निरपेक्ष) है। परंतु इस देश के किसी भी मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा प्रबंधन परिषद पर सरकारी आधिपत्य नहीं है। बल्कि उसी समाज के मतावलंबियों का स्वतंत्र प्रबंधन तन्त्र है। परन्तु संपूर्ण भारतवर्ष में जितने भी प्रसिद्ध सनातनी हिन्दू मंदिर हैं, उन सभी के प्रबंधन पर एन-केन-प्रकारेण सरकारी तन्त्र का कब्जा है जो कि असंवैधानिक है।

स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा सनातन मतावलंबी अपने हिन्दू मंदिरों में दान इसलिए नहीं करता है कि उसका धन किसी मुस्लिम, ईसाई अथवा अन्य किसी मतावलंबी के काम आये। वह हजारों-हजार वर्ष से अपने मंदिरों में अपनी आय का एक निश्चित हिस्सा इसलिए दान करता है कि हिन्दू मंदिरों के इस आय से हिन्दू समाज के शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार, संपर्क एवं संस्कृति की रक्षा हो सके। परंतु सरकारी ट्रष्टों के अधीन हिन्दू मंदिर दुर्दशा के आँसू रो रहे हैं। उसका एकमात्र कारण मंदिरों के अंदर गैर धार्मिक, राजनैतिक व्यक्तियों का ट्रष्टी के रूप में होना है।

स्वामी जितेन्द्रानंद ने कहा कि संवैधानिक रूप से धर्म स्वतंत्रता अगर मूल अधिकार है तो हमारे मठ-मंदिरों पर कोई सरकार नियंत्रण स्थापित कर कैसे बैठ सकती है। हमारे इस दृष्टिकोण का उच्चतम न्यायालय ने भी समर्थन किया है। 2024 में उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु के एक मंदिर के प्रबंधन को लेकर दायर एक याचिका में यह निर्णय दिया है कि मंदिरों का प्रबंधन सरकार का काम नहीं है, मंदिरों का प्रबंधन, जो समर्पित हिन्दू समाज है वही करेगा। मंदिर-मंस्जिद-चर्च-गुरुद्वारा प्रबंधन किसी सेक्यूलर सरकार का काम नहीं है। यह उस आस्थावान समाज का काम है जो अपने-अपने पूजा स्थलों के प्रति श्रद्धा रखता है और दान स्वरूप धन खर्च करता है। वही समाज अपने पूजा स्थलों का संरक्षण एवं प्रबंधन करेगा। उन्होंने कहा कि सनातन हिन्दू समाज 128 सम्प्रदायों के अंदर सम्मिलित रूप से काम करता है, उसकी पूजा पद्धतियां भिन्न हो सकती हैं । परंतु वेद सभी के मूल में है। ऐसे में भारतीय संविधान के दायरे में हिन्दू समाज के धर्म स्वतंत्रता के मूल अधिकार की रक्षा की जरूरत है।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/बृजनंदन