बुन्देलखण्ड की कुलदेवी को जल चढ़ाने उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
झांसी, 09 अप्रैल(हि.स.)। सृष्टि के सृजन दिवस भारतीय नवसंवत्सर वासंतिक नवरात्रि के पहले दिन, मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की गई। शैल का अर्थ होता है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री भी कहा जाता है। पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है।
मान्यता है कि श्रद्धा पूर्वक विधि-विधान के साथ मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा उपासना की जाती है, उसी से सभी मनोकामानएं पूरी होती हैं और कष्टों से मुक्ति मिलती है। इनकी आरधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
मंगलवार की सुबह ब्रह्ममुहूर्त के प्रारंभ होते ही देवी मंदिरों में पूजा अर्चना का क्रम शुरू हो गया। मंगला आरती के बाद महानगर के प्रसिद्ध मंदिरों में सुबह से ही महिला श्रद्धालु हाथों में जल कलश व पूजा की थाली लेकर जल चढ़ाने की होड़ लगी रही। महानगर समेत जिले भर के मंदिर जयकारा शेरावाली का बोल सांचे दरबार की जय से गुंजायमान हो गए।
पंचकुइयां माता मंदिर के महंत हरिशंकर चतुर्वेदी ने बताया कि पंचकुइयां मंदिर में मां शीतला व संकटा माता विराजमान हैं। इन्हें बुन्देलखण्ड की कुलदेवी भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि नवरात्रि में 9 दिनों तक सुबह 4 बजे मंगला आरती होती है। और उसके बाद से साढ़े 12 बजे तक के लिए माता की प्रतिमाओं को जल चढ़ाने के लिए खोल दिया जाता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां जल चढ़ाने व पूजा अर्चना करने आते हैं। उसके बाद करीब 3 घंटे माता का विश्राम होता है। जबकि मंदिर में विद्वान ब्राह्मणों के द्वारा दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।
इन मंदिरों पर हजारों श्रद्धालु चढ़ाते हैं जल
बुन्देलखण्ड की कुलदेवी पंचकुइयां माता मंदिर के अलावा भी सीपरी स्थित लहर की देवी मंदिर, कैमासिन माता मंदिर, मैमासिन माता मंदिर, खटकियाने की काली मैया, लक्ष्मी गेट स्थित काली माता मंदिर,मऊरानीपुर में बड़ी माता मंदिर, भदरवारा की माता,ध्वार की माता,कटेरा के पास स्थित जैत माता मंदिर आदि जिले में कुछ ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन को जाते हैं।
ऐसा है माता का स्वरूप
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शैलपुत्री का स्वरूप बेहत शांत और सरल है। माता ने दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल धारण किया हुआ है। यह नंदी नामक बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी है। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं जो योग, साधना-तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। मां अपने भक्तों की हमेशा मनोकामना पूरी करती हैं और साधक का मूलाधार चक्र जागृत होने में सहायता मिलती है।
हिन्दुस्थान समाचार/महेश/राजेश