वाराणसी में 'ऑयल बॉल' तकनीक से मच्छरों के लार्वा पर नियंत्रण, प्रायोगिक अध्ययन सफल

 


-कई दिनों से जल जमाव वाले खाली प्लाटों और गड्ढों में डाली जाएंगी 'ऑयल बॉल'

-लार्वा को नहीं मिलेगी 'ऑक्सीज़न' तो नहीं पनपेंगे मच्छर

वाराणसी, 05 जुलाई (हि.स.)। जनपद में एंटी लार्वा छिड़काव और फॉगिंग से मच्छरों के लार्वा की रोकथाम और घनत्व को कम किया जा रहा है। इसी कड़ी में मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल की पहल पर मच्छरों के लार्वा की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए एक नई तकनीक इजाद की गई है।

'ऑयल बॉल के माध्यम से मच्छरों के लार्वा नियंत्रण' तकनीक का प्रायौगिक अध्ययन सफल होने के बाद इसको नगर व ग्रामीण क्षेत्र के चिन्हित हॉट स्पॉट इलाकों में उपयोग किया जाएगा। इन ऑयल बॉल को पानी से भरे उन खाली प्लाटों और गड्ढों में डाला जाएगा, जहां मच्छरों के लार्वा पनपने की बहुत अधिक संभावनाएं रहती हैं। इस पहल में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं का खास योगदान है।

जिला मलेरिया अधिकारी शरत चंद पाण्डेय के अनुसार विगत माह 15 से 20 दिन का प्रायौगिक अध्ययन किया गया, जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। यह अध्ययन सीर गोवर्धन क्षेत्र के काशीपुरम कॉलोनी के जल जमाव वाले खाली प्लाटों, नालियों और गड्ढों में किया गया था। 'ऑयल बॉल' पिंडरा ब्लॉक के पतिराजपुर गांव की स्वयं सहायता समूह 'माँ लक्ष्मी महिला समूह' अपने रोजगार सृजन को बढ़ाने के लिए तैयार कर रही हैं।

-कैसे तैयार हो रहा ऑयल बॉल

लकड़ी के बुरादे को कपड़े की पोटली में बांधकर छोटे-छोटे बॉल बनाए गए। तथा इन्हें निष्प्रयोज्य इंजन ऑयल में डुबोया जाता है। इस बॉल को ठहरे हुए जल में डाला जाता है, जिससे ऑयल की परत धीरे-धीरे पानी की सतह पर फ़ेल जाती है, इस कारण मच्छरों के लार्वा को ऑक्सीज़न की उचित मात्रा नहीं मिल पाती और लार्वा नष्ट हो जाता है। ऑयल बॉल के लार्वा नाशक के रूप में प्रयोग के लिए काशीपुरम कॉलोनी के जल जमाव वाले स्थलों में प्रायौगिक अध्ययन किया गया।

इस तरह हुआ प्रायौगिक अध्ययन

एक खाली प्लाट जिसमें कई महीनों से पानी भरा था, जिसमें लार्वा पाया गया। लार्वा घनत्व 10 था। ऑयल बॉल का प्रयोग किया गया। 24 घंटे के उपरांत ऑयल बॉल के चारों ओर ऑयल की परत पानी की सतह पर लगभग तीन मीटर की परिधि में फ़ेल गई, जिससे लार्वा की संख्या में गिरावट देखी गई। लार्वा घनत्व दो पाया गया। एक बड़ी नाली, जिसमें काफी संख्या में लार्वा थे। वहां बॉल का प्रयोग किया गया। 24 घंटे के बाद अध्ययन में देखा गया कि ऑयल बॉल 20 से 30 सेमी की परिधि में लार्वा नष्ट हुए परंतु 50 सेमी के लार्वा जीवित थे। वनस्पतियों और कचरे की वजह से नाली जाम थी, जिस वजह से ऑयल का फैलाव पूर्णरूप से नहीं हो सका। इस कारण नाली में इसका प्रयोग विफल रहा। कच्ची जमीन में दो मीटर की परिधि वाले गंदे पानी से भरे गड्ढे में ऑयल बॉल का प्रयोग किया गया। यहां वनस्पति और कचरा नहीं था। इससे ऑयल का फैलाव पानी की सतह पर दिखने लगा, जिससे लार्वा की संख्या में गिरावट देखी गई। यह प्रयोग सफल रहा।

जिला मलेरिया अधिकारी ने बताया कि इस प्रयोग के पूर्व काफी अध्ययन किया गया। अंतर्राष्ट्रीय शोध अध्ययन के प्रयोग का अध्ययन भी किया गया, जोकि मच्छरों के लार्वा को नष्ट करने में बेहद कारगर है। स्वयं सहायता समूह की ओर से निर्मित किए जा रहे एक ऑयल बॉल लगभग 50 मिली इंजन ऑयल अवशोषित करता है। इस तरह एक बीघा (करीब 50 मी लंबे और 50 मी चौड़े) वाले पानी से भरे हुए खाली प्लॉट के लिए लगभग आठ ऑयल बॉल चाहिए होंगे।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/राजेश