भगवान शंकर व श्रीराम सनातन धर्म के सम्वाहक : शंकराचार्य वासुदेवानंद

 


- सनातन धर्म ही सबसे पहला आदि मानव धर्म है

प्रयागराज, 05 जुलाई (हि.स.)। श्रीमज्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के सानिध्य में शनिवार को भगवान रामलला के मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम चला। शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने बताया कि भगवान राम स्वयं भगवान शंकरजी के आराध्य हैं और शंकरजी को भगवान राम भी ऐसा ही मानते हैं। भगवान शंकर व भगवान श्रीराम सनातन धर्म के सम्वाहक हैं।

शंकराचार्य ने कहा कि सनातन धर्म ही सबसे पहला आदि मानव धर्म है। जिसमें जीव मात्र, प्राणि मात्र के प्रति दया भाव, सेवा भाव, प्रेम व समर्पण भा रखना बताया व सिखाया गया है। जीवनशैली, जीवन प्रक्रिया और मानवीय संस्कार भी सर्वप्रथम सनातन धर्म ने सिखाया है। आज भी संसार में जितने भी नामित धर्म हैं उनके मूल में कहीं न कहीं सनातन धर्म की जीवनचर्या, दिनचर्या और यहां तक की पूजा करने का तरीका व संस्कार भी सनातन धर्म की ही देन है।

प्रवक्ता ओंकार नाथ त्रिपाठी ने बताया कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आज भगवान रामलला का वस्त्राधिवास के पश्चात भगवान की प्रतिमा अपने मूल स्थान पर स्थापित की गई। प्रतिमा के नीचे उनके आसन पर पांच प्रकार रत्न और सोना चांदी आदि पांच प्रकार की धातुएं रखी गईं। प्रारंभ में प्रभु श्रीरामलला को स्नान कराया गया। तत्पश्चात प्रभु को पीठासीन किया गया। इसके पश्चात पुष्पार्पण, माल्यार्पण, पूजन आदि करके न्यास प्रक्रिया से प्रभु के प्रत्येक अंगों में विशेष मंत्रों से प्राण पूर्णवत जागृत की गई। अन्त में पूजा आरती के पश्चात प्रसाद वितरण किया गया।

प्रवक्ता ने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के मुख्य यजमान दीप कुमार पांडे व उनकी पत्नी सुषमा पांडे हैं। मुख्य आचार्य उड़ीसा के भगवान त्रिपाठी, पं. जन्मेजय, पं. आशीष मिश्रा व मानस रंजन पूजा आरती-प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम सम्पन्न कराये। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन सायंकाल 3 बजे से 7 बजे तक नवनिर्मित उक्त श्रीरामलला मंदिर में श्रीमद्भागवत कथा 9 जुलाई तक प्रतिदिन चलती रहेगी। 10 जुलाई को गुरुपूर्णिमा के अवसर पर गुरुपूजा और चरणपादुका पूजन का कार्यक्रम प्रातः 9 बजे से होगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र