भारतीय संस्कृति एक सभ्य समाज की संस्कृति है - प्राे. ऋषिकांत पाण्डेय
-संवाद एवं परम्परा ही भारतीय संस्कृति के वाहक : रामाशीष
-भारतीयता को पुनः आत्मसात करने के लिए हुआ शंख का संवाद कार्यक्रम
प्रयागराज, 19 अक्टूबर (हि.स.)। भारत आज वैश्विक पटल पर आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है, उसमें विद्यार्थियों की सहभागिता महत्वपूर्ण है। उसी के साथ वरिष्ठ जनों का मार्गदर्शन भी उतना ही जरूरी है। भारत की संस्कृति एक सभ्य समाज की संस्कृति है और इससे श्रेष्ठ कोई भी वैश्विक संस्कृति नहीं है।
उक्त विचार मुख्य वक्ता एवं इविवि के प्राचार्य प्रो. ऋषिकांत पाण्डेय ने शनिवार को संगमनगरी में शंख संस्था के माध्यम से सिविल लाइंस स्थित एक होटल में '2024 में भारत की संकल्पना' विषय पर गोष्ठी एवं संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किया।
कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता एवं प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष ने कहा कि संवाद एवं परम्परा ही भारतीय संस्कृति के वाहक है। विश्व ने विकास का पैमाना अर्थ को माना है, किंतु वास्तविक मायने में राष्ट्र की संस्कृति के प्रति आग्रह एवं उसकी विशिष्टता ही विकास का परिचायक है। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि डॉ कीर्तिका अग्रवाल ने सभी को शुभकामनाएं प्रेषित की और विषय को संक्षेप में रखते हुए अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रदेश सरकार के अपर महाधिवक्ता प्रवीण कुमार गिरी ने कार्यक्रम की सफल शुरुआत के लिए आयोजक समिति को शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए कहा कि आज हम भारतीय विचारों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में इस प्रकार के बौद्धिक और संवाद कार्यक्रमों की काफी आवश्यकता है।
शंख संस्था के अध्यक्ष आलोक परमार ने बताया कि कार्यक्रम में आगामी वर्षों में भारत को पुनः वैश्विक पटल के सर्वोच्च पद स्थापित करने हेतु सार्थक चर्चा परिचर्चा की गई। इस दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कला संकाय पूर्व डीन प्रो संजय सक्सेना,अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष सुनील शर्मा, सहायक आचार्य अतुल नारायण सिंह, सर्वेश सिंह, अभाविप के पदाधिकारी व कार्यकर्ता एवं प्रयागराज के अन्य विद्वतजन की उपस्थिति रही।
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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र