बाल दिवस विशेष :आईएएस बनना चाहती है सबसे कम उम्र की ब्लागर व ’राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’ विजेता अक्षिता

 


प्रयागराज, 13 नवंबर (हि.स.)। 21वीं सदी टेक्नॉलाजी की है। आज के बच्चे मोबाइल व लैपटॉप पर हाथ पहले से ही चलाने लगते हैं। टेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल के चलते बच्चे कम उम्र में ही अनुभव और अभिरुचियों के विस्तृत संसार से परिचित हो जाते हैं। ऐसी ही प्रतिभा की धनी है भारत की सबसे कम उम्र की राष्ट्रीय बाल पुरस्कार विजेता नन्ही ब्लॉगर अक्षिता (पाखी)। ग्रेजुएशन के बाद अक्षिता आईएएस बनना चाहती है।

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ निवासी और कानपुर में जन्मी अक्षिता के पिता कृष्ण कुमार यादव पोस्टमास्टर जनरल हैं व मम्मी आकांक्षा एक कॉलेज में प्रवक्ता रही हैं। दोनों जन प्रख़्यात साहित्यकार व ब्लॉगर भी हैं। अक्षिता की आरम्भिक शिक्षा कानपुर, पोर्टब्लेयर, प्रयागराज, जोधपुर, लखनऊ, वाराणसी व अहमदाबाद में हुई। फिलहाल वह दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययनरत है। अक्षिता ने न सिर्फ हिंदी ब्लॉगिंग में नए कीर्तिमान स्थापित किया। वर्ष 2011 में केंद्र सरकार ने उसकी उपलब्धियों के मद्देनजर बाल दिवस पर उसे मात्र 4 साल 8 माह की आयु में आर्ट और ब्लॉगिंग के लिए ’राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’ से सम्मानित किया था। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री, केंद्र सरकार कृष्णा तीरथ ने उसे यह सम्मान प्रदान किया था। अक्षिता न सिर्फ भारत की सबसे कम उम्र की ’राष्ट्रीय बाल पुरस्कार विजेता’ है बल्कि केंद्र सरकार ने पहली बार किसी प्रतिभा को ब्लॉगिंग विधा के लिए सम्मानित किया।

अक्षिता को कई अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मेलन में भी सम्मानित किया जा चुका है। नई दिल्ली में अप्रैल 2011 में हुए प्रथम अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में अक्षिता को ’श्रेष्ठ नन्ही ब्लॉगर’ के सम्मान से उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ’निशंक’ ने सम्मानित किया था। काठमांडू, नेपाल में आयोजित तृतीय अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मलेन (2013) में भी अक्षिता ने एकमात्र बाल ब्लॉगर के रूप में भाग लिया था। उसकी नेपाल सरकार के पूर्व मंत्री तथा संविधान सभा के अध्यक्ष अर्जुन नरसिंह केसी ने भी प्रशंसा की थी। पंचम अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्रीलंका (2015) में भी अक्षिता को ’परिकल्पना कनिष्ठ सार्क ब्लॉगर सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है।

अक्षिता को ड्राइंग बनाना बहुत अच्छा लगता है। पहले तो उसके मम्मी-पापा ने ध्यान नहीं दिया, पर धीरे-धीरे उन्होंने अक्षिता के बनाए चित्रों को सहेजना आरम्भ कर दिया। इन चित्रों और अक्षिता की गतिविधियों को ब्लॉग के माध्यम से भी लोगों के सामने प्रस्तुत करने का विचार आया और 24 जून 2009 को ’पाखी की दुनिया’ नाम से अक्षिता का ब्लॉग अस्तित्व में आया। देखते ही देखते करीब एक लाख से अधिक हिन्दी ब्लॉगों में इस ब्लॉग की रेटिंग बढ़ती गई। बच्चों के साथ-साथ बडों में भी अक्षिता (पाखी) का यह ब्लॉग काफी लोकप्रिय हुआ। अक्षिता की कविताएं और ड्राइंग देश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुई हैं। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ ने प्रकाशित पुस्तक “और हमने कर दिखाया“ (देश के कुछ प्रतिभावान बच्चों की कहानियां) में भी ’नन्ही ब्लॉगर पाखी की ऊंची उड़ान’ शीर्षक से एक अध्याय शामिल किया गया है।

ग्रेजुएशन के बाद अक्षिता आईएएस ऑफिसर बनना चाहती है, पर सामाजिक सरोकारों के प्रति अभी से उसके मन में जज्बा है। गरीब बच्चों से लेकर अनाथों तक को कपड़े और पुस्तकें देकर वह इनके हित में सोचती है। पौधारोपण द्वारा पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आरम्भ “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ“ अभियान से अक्षिता काफी प्रेरित हुईं और इसके प्रति भी लोगों को सचेत किया।

नन्ही प्रतिभा अक्षिता (पाखी) को देखकर यही कहा जा सकता है कि प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं, बशर्ते उसे अनुकूल वातावरण व परिवेश मिले। अक्षिता को श्रेष्ठ नन्ही ब्लॉगर और सबसे कम उम्र में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार मिलना यह दर्शाता है कि बच्चों में आरंभ से ही सृजनात्मक शक्ति निहित होती है। उसे इग्नोर करना या बड़ों से तुलना करने की बजाय यदि उसे बाल मन के धरातल पर देखा जाय तो उसे पल्लवित-पुष्पित किया जा सकता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र