भारत की सांस्कृतिक परम्परा पूरे विश्व के लिए आकर्षण का केन्द्र: राज्यपाल
लखनऊ, 21 अगस्त (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल व राज्य विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने भारत की सांस्कृतिक परम्परा को पूरे विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र बताते हुए कहा कि हमारे अनेक महान रचनाकारों ने अध्यात्म, साहित्य, रस और सौंदर्य के माध्यम से भारतीय कला और दर्शन को अमृत प्रदान किया है।
राज्यपाल की अध्यक्षता में बुधवार को भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय का 14वां दीक्षांत समारोह संपन्न हुआ। समारोह में कुल 159 उपाधियों का वितरण किया गया। इनमें से स्नातक के 83 परास्नातक के 74 व पीएचडी के दो विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की गई। समारोह में कुल 22 विद्यार्थियों को 29 स्वर्ण, 10 रजत और 8 कांस्य सहित 47 पदकों का वितरण कुलाधिपति द्वारा किया गया। दीक्षांत समारोह में 31 छात्रों और 16 छात्राओं को पदक प्रदान किया गया। दीक्षांत समारोह के अवसर पर राज्यपाल द्वारा बटन दबाकर उपाधियों को डिजिलॉकर में अपलोड किया गया।
राज्यपाल ने उपाधि और पदक प्राप्तकर्ताओं के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए सभी को दीक्षांत समारोह की शुभकामनाएं दी। उन्होंने संगीत संस्थान की स्थापना में योगदान देने वाले पं. विष्णु नारायण भातखंडे को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए संगीत को जीवन का अभिन्न अंग बताया और कहा कि प्रकृति के कण-कण में संगीत है। जब वर्षा होती है, नदियां बहती हैं, हवाएं चलती हैं, पक्षी चहकते हैं इन सब में संगीत है।
राज्यपाल ने भारत की संस्कृति को अत्यंत समृद्ध और विविधता पूर्ण बताते हुए कहा कि यहाँ कलाओं की अनेक परंपराएं हैं। किसी भी देश की संस्कृति और परम्परा ये दो ऐसी महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं, जो राष्ट्र को विशेष पहचान देती हैं। राष्ट्र को संरक्षित करने के लिए संस्कृति को संरक्षित करना बहुत जरूरी है। भारत की सांस्कृतिक परम्परा को पूरे विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारे अनेक महान रचनाकारों ने अध्यात्म, साहित्य, रस और सौंदर्य के माध्यम से भारतीय कला और दर्शन को अमृत प्रदान किया है।
राज्यपाल ने कहा कि कला का जीवन से गहरा संबंध है और भारतीय संगीत की परम्परा के प्रमाण वैदिक काल से ही मिलते हैं। उन्होंने कला एवं संगीत के क्षेत्र के कुछ महान कलाकारों का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक इतिहास भव्य रहा है। ऐसे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इस विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति का अध्ययन, अध्यापन और शोध इसे विश्व में विशेष स्थान दिलाएगा।
राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्रीय जीवन से प्रेरित शिक्षा ही किसी भी देश के विकास में उचित योगदान दे सकती है। अपनी जड़ों से कटी हुई शिक्षा असफल होती है। शिक्षा को लोगों के सामाजिक और आर्थिक परिवेश से अलग नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को मिलने वाला प्रशिक्षण अस्तित्व के लिए संघर्ष में मददगार होना चाहिए।
राज्यपाल ने अपने संबोधन में वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना की सराहना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की पहल भारत की सांस्कृतिक विरासत को फिर से जीवंत करने की गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्य की पूर्ति में आप सभी अपना योगदान सुनिश्चित करें।
उन्होंने कहा कि जीवन के अतिरिक्त समाज और पर्यावरण के प्रति भी हमारी कुछ प्रतिबद्धताएं होनी चाहिए। मौसम चक्र में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि अध्ययन के साथ-साथ ऐसी चुनौतियों में भी विद्यार्थियों को अपना सहयोग प्रदान करते हुए देश के सहयोग में भागीदार बनना चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि ‘‘एक पेड़ माँ के नाम‘‘ जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के लिए कारगर सिद्ध होगा। उन्होंने जल संरक्षण और कम ऊर्जा खपत करने के भी निर्देश दिए।
राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि विश्वविद्यालय को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए कम से कम पांच गाँवों में जाकर वहाँ की महिलाओं और बच्चों से मिलना चाहिए। उन्होंने निर्देश दिया कि विश्वविद्यालय के छात्र और शिक्षक प्राइमरी स्कूलों में जाकर बच्चों को संगीत की शिक्षा प्रदान करें और साथ ही बच्चों में उनकी रुचियों की पहचान कर उन्हें उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें।
उन्होंने कहा कि गाँवों में कम से कम एक बार भाषण, लेखन, संगीत, या खेल प्रतियोगिता का आयोजन विश्वविद्यालयों द्वारा अवश्य कराया जाना चाहिए, ताकि वहाँ के बच्चों को विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिल सके। राज्यपाल ने 50 प्रतिशत हायर एजुकेशन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आंगनबाड़ी से शुरुआत करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि आंगनबाड़ियों में छोटे बच्चों को कौशल संबंधित शिक्षा प्रदान करना अनिवार्य है, ताकि वे शुरुआत से ही शिक्षा और कौशल विकास के महत्व को समझ सकें।
अपने संबोधन में राज्यपाल ने कहा, यदि भारत को समृद्ध बनाना है, तो हमें आंगनवाड़ी से ही शिक्षा की शुरुआत करनी होगी। विश्वविद्यालयों को इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी और उनके प्रयासों से ही शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ डिग्री प्राप्त करना नहीं है, बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना और उन्हें निभाना भी है।
इस अवसर पर कुलाधिपति ने विश्वविद्यालय की स्मारिका का विमोचन किया तथा प्राथमिक विद्यालय के छात्र-छात्राओं को स्कूल बैग व पाठ्य सामग्री प्रदान किया। राज्यपाल ने विश्वविद्यालय द्वारा गोद लिए गए गांव के विद्यालयों के मध्य आयोजित प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं को स्मृति स्वरूप भेंट देकर उन्हें सम्मानित किया। इसके साथ ही राज्यपाल ने जनपद उन्नाव की 200 आंगनबाड़ियों को किट प्रदान किया तथा राजभवन की तरफ से प्राथमिक स्कूल के प्रधानाध्यापकों को पुस्तक भेंट की।
हिन्दुस्थान समाचार / दीपक वरुण / Siyaram Pandey